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‘सर तन से जुदा’ का नारा देने वाले आरोपी पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, नहीं मिलेगी राहत

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह नारा कुरान या किसी प्रामाणिक इस्लामी ग्रंथ में नहीं मिलता, फिर भी कुछ लोग इसके अर्थ और प्रभाव को समझे बिना इसका इस्तेमाल करते हैं, जिससे समाज में वैमनस्य फैलता है।

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कोर्ट। फाइल फोटो

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'गुस्ताख-ए-नबी की एक सजा, सर तन से जुदा' नारे को भारत की संप्रभुता, अखंडता और कानूनी व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती बताते हुए बरेली हिंसा के एक आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी। जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की सिंगल बेंच ने कहा कि यह नारा पैगंबर के अपमान पर सिर कलम करने की सजा का प्रावधान करता है, जो भारतीय दंड संहिता (BNS) में निर्धारित सजाओं के विपरीत है और सशस्त्र विद्रोह को उकसाता है।

सितंबर 2025 में बरेली में हुई हिंसा की पृष्ठभूमि

मामला सितंबर 2025 में उत्तर प्रदेश के बरेली में हुई हिंसा से जुड़ा है। इत्तेफाक मिन्नत काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा और उनके सहयोगी नदीम खान पर आरोप है कि उन्होंने मुस्लिम समुदाय को अधिकारियों के खिलाफ प्रदर्शन के लिए उकसाया। नमाज के बाद इस्लामिया इंटर कॉलेज में करीब 500 लोग जमा हुए, जहां धारा 163 BNSS के तहत प्रदर्शन पर प्रतिबंध के बावजूद भड़काऊ नारे लगाए गए। भीड़ ने पुलिस पर हमला किया, पत्थरबाजी की, पेट्रोल बम फेंके और सार्वजनिक-निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। कई पुलिसकर्मी घायल हुए।

आरोपी रेहान समेत सात गिरफ्तार, CCTV और गवाहों के आधार पर FIR

पुलिस ने घटना के बाद 25 नामजद और 1700 अज्ञात लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की। BNS की धाराओं 109 (हत्या का प्रयास), 118(2) (खतरनाक हथियार से चोट पहुंचाना), 121(1) (सार्वजनिक सेवक को ड्यूटी से रोकना) सहित अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज हुआ। मौके से सात लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें आरोपी रेहान भी शामिल है। CCTV फुटेज, गवाहों के बयान और केस डायरी में पर्याप्त सबूत मिले।

कोर्ट की टिप्पणी - नारे का कुरान या इस्लामी ग्रंथों में कोई आधार नहीं

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह नारा कुरान या किसी प्रामाणिक इस्लामी ग्रंथ में नहीं मिलता, फिर भी कुछ लोग इसके अर्थ और प्रभाव को समझे बिना इसका इस्तेमाल करते हैं, जिससे समाज में वैमनस्य फैलता है। जज ने पैगंबर मोहम्मद के ताइफ वाले किस्से का जिक्र किया, जहां एक गैर-मुस्लिम पड़ोसी ने उन्हें नुकसान पहुंचाया, लेकिन पैगंबर ने दया दिखाई और सिर कलम करने की बात नहीं की। कोर्ट ने कहा कि 'अल्लाहु अकबर' जैसे धार्मिक नारे सम्मानजनक हैं, लेकिन अगर इरादा दूसरों को डराना हो तो अपराध बन जाते हैं।

संविधान की धारा 19 की सीमाएं, राज्य के खिलाफ अपराध

हाईकोर्ट ने संविधान की धारा 19 (अभिव्यक्ति और सभा की स्वतंत्रता) की सीमाओं का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे नारे राज्य के खिलाफ अपराध हैं और BNS की धारा 152 के तहत दंडनीय। आरोपी पर गंभीर आरोप साबित होने और जांच जारी होने के कारण जमानत खारिज की गई। यह फैसला धार्मिक नारों के दुरुपयोग पर सख्त संदेश देता है और कानून के शासन को मजबूत करता है।