
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि सरकारी विभागों और संस्थानों में स्वीकृत पदाें पर लंबे समय से संविदा पर काम कर रहे अस्थायी कर्मचारियों को इस आधार पर नौकरी में नियमित करने से नहीं रोका जा सकता कि उनकी प्रारंभिक नियुक्ति अस्थायी तौर पर की गई थी। कोर्ट ने कर्मचारियों को नौकरी के स्थायी लाभ देने से बचने के लिए सरकारों की ओर से संविदा पर अस्थायी नियुक्तियां करने के चलन की आलोचना भी की। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी.वराले की बेंच ने उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद नगर निगम में माली के पद पर 1999 से अस्थायी तौर पर काम कर रहे कर्मचारियों की याचिका पर यह फैसला दिया।
कोर्ट ने कहा कि भारतीय श्रम कानून स्थायी प्रकृति के काम वाले पद पर लगातार दैनिक वेतन या संविदा पर कर्मचारी रखने का विरोध करता है। अपीलकर्ता-कर्मचारी वर्षों से स्थायी कर्मचारियों के समान कार्य करते रहे हैं, लेकिन उन्हें उचित वेतन और लाभ से वंचित रखा गया। कोर्ट ने सरकार का यह तर्क भी खारिज कर दिया कि भर्ती पर रोक होने के कारण अस्थायी कर्मियों को नियमित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कर्मचारियों की अपील स्वीकार करते हुए नगर पालिका को छह माह के भीतर नियमितीकरण प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने निर्णय में कहा कि सुप्रीम कोर्ट का उमा देवी मामले में 2006 में दिया गया निर्णय दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को नियमितीकरण के लाभों से वंचित करके उनके शोषण को उचित नहीं ठहराता।उमा देवी मामले में कोर्ट ने कहा था कि दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी स्वीकृत पदों और जरूरी संवैधानिक औपचारिकताओं को पूरा किए बिना स्थायी रोजगार का दावा नहीं कर सकते।
पिछले कुछ सालों से राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ सहित विभिन्न राज्यों में सरकारी पदों पर भर्ती नहीं होने से हजारों कर्मचारी लंबे समय से विभागों व संस्थानों में संविदा पर अस्थायी तौर पर काम कर रहे हैं। ये कर्मचारी समय-समय पर आंदोलन करते रहे हैं और अदालतों में भी इनके मुकदमे चल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले से उन्हें राहत मिल सकती है।
Published on:
05 Feb 2025 08:29 am
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