
प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर। (फोटो- ANI)
कलकत्ता हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि नाबालिग लड़की के साथ सहमति से शारीरिक संबंध बनाना भी माफ करने लायक अपराध नहीं है।
जस्टिस राजशेखर मंथा और जस्टिस अजय कुमार गुप्ता की डिवीजन बेंच ने निचली अदालत के उस पहले के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
दरअसल, निचली अदालत में एक मामला का चल रहा था। जिसमें आरोपी पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 64 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) एक्ट की धारा 6 के तहत आरोप लगाए गए थे। इस मामले में आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
बाद में, आरोपी ने हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में सजा को चुनौती दी। पूरे मामले के बारे में यह पता चला है कि आरोपी का 2014 में एक नाबालिग के साथ लव अफेयर था। नवंबर 2016 में उसने उसके साथ फिजिकल रिलेशन बनाए।
उस समय नाबालिग सिर्फ 14 साल की थी। उसके बाद, आरोपी ने शादी का वादा करके नाबालिग द्वारा ऐतराज जताने के बावजूद कई बार शारीरिक संबंध बनाए।
मामला तब उजागर हुआ, जब 2017 में पीड़िता प्रेग्नेंट हो गई। आरोपी और उसके परिवार ने नाबालिग व उसके होने वाले बच्चे की जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया। इसके बाद, नॉर्थ कोलकाता के नारकेलडांगा पुलिस स्टेशन में आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।
कोर्ट ने कहा कि वह इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि आरोपी पीड़िता के बच्चे का पिता नहीं है। पीड़िता के बयान और डीएनए रिपोर्ट समेत कई साइंटिफिक सबूतों से यह साफ हुआ कि आरोपी ने पीड़िता के साथ कई बार फिजिकल रिलेशन बनाए थे।
इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा गया है कि अगर नाबालिग का बयान भरोसेमंद है, तो इस तरह के मामले में किसी और सबूत की जरूरत नहीं है।
आरोपी के वकील ने दावा किया कि पीड़िता की उम्र साफ तौर पर साबित नहीं हुई थी। कोर्ट ने दोहराया कि उसकी उम्र साबित करने के लिए बर्थ सर्टिफिकेट दिखाया गया था, और साथ ही आरोपी ने ट्रायल प्रोसेस के दौरान नाबालिग की उम्र पर कोई आपत्ति नहीं जताई।
इस सवाल पर कि एफआईआर देर से क्यों दर्ज की गई, कोर्ट ने कहा कि नाबालिग ने शादी के वादे पर विश्वास कर लिया था। जब उसे पता चला कि वह प्रेग्नेंट है तो उसने अपने माता-पिता को बताया।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। कलकत्ता हाई कोर्ट ने स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी को 15 दिनों के अंदर 1,80,000 रुपये देने को भी कहा और आरोपी को पीड़िता को 2 लाख रुपये और मुआवजा देने को कहा गया है। अगर आरोपी बेल पर बाहर है, तो उसे तुरंत सरेंडर करने का आदेश दिया गया है और उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।
Published on:
11 Dec 2025 12:26 pm
बड़ी खबरें
View Allबिहार चुनाव
राष्ट्रीय
ट्रेंडिंग
