
Supreme Court on Creamy Layer
Creamy Layer: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसले में अनुसूचित जाति-जनजाति (SC-ST) आरक्षण के बावजूद आगे बढ़ने से वंचित दलित एवं आदिवासी समाज की विभिन्न जातियों को आरक्षण का लाभ सुनिश्चित करने का रास्ता खोल दिया। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 2004 में ईवी चिनैया मामले में दिए पांच जजों की बेंच के अपने उस फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि एससी-एसटी के आरक्षण के लिए सब कैटेगरी नहीं बनाई जा सकती। संविधान में अनुसूचित जातियों के लिए 15 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था है। इस कोटे में कई राज्यों ने सब-कोटा जोड़ा दिया था। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में 23 याचिकाएं दायर की गई थीं। इन पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की अगुवाई वाली सात जजों की संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से फैसला सुनाया।
फैसले में पीठ के चार जजों ने एससी में भी क्रीमीलेयर लागू करने की बात कही है। अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले जस्टिस बीआर गवई ने पहले क्रीमीलेयर व्यवस्था लागू करने की आवश्यकता बताई जबकि तीन अन्य जजों जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मिथल एवं जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने उनसे सहमति जताई है। जस्टिस गवई ने अलग से लिखे अपने फैसले में कहा कि राज्यों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की तरह एससी-एसटी में क्रीमीलेयर की पहचान करनी चाहिए। इन वर्गों के लिए भी क्रीमीलेयर की व्यवस्था होनी चाहिए। आरक्षण का फायदा पा चुके लोगों को इससे बाहर कर वंचितों को मौका दिया जाना चाहिए। अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले जस्टिस गवई ने कहा, राज्यों को एससी-एसटी से क्रीमीलेयर की पहचान के लिए नीति बनानी चाहिए। जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि क्रीमीलेयर को बाहर करने के मानदंड OBC पर लागू मानदंडों से अलग हो सकते हैं। जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि अगर परिवार में किसी भी पीढ़ी ने आरक्षण का लाभ उठाकर उच्च दर्जा प्राप्त किया है तो यह लाभ तार्किक रूप से दूसरी पीढ़ी के लिए नहीं बनता।
जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी का फैसला अलग रहा। उन्होंने कहा कि जब जाति के आधार पर ही एससी-एसी कोटा मिलता है तो उसमें बंटवारा करने की जरूरत नहीं है। कार्यपालिका या विधायी शक्ति के अभाव में राज्य एससी-एसटी के सभी लोगों के लिए आरक्षित लाभों को उप-वर्गीकृत नहीं कर सकते। उप-वर्गीकरण अनुच्छेद 341(2) के तहत राष्ट्रपति की अधिसूचना के साथ छेड़छाड़ के समान होगा।
मंडल कमीशन की सिफारिश के आधार पर तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार ने 1991 में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को आरक्षण दिया था। इंदिरा साहनी ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 1991 में दिए फैसले में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण के फैसले का समर्थन किया, लेकिन उसने कहा कि ओबीसी की पहचान के लिए जाति को पिछड़ेपन का आधार बनाया जा सकता है। लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया था कि ओबीसी में क्रीमी लेयर को आरक्षण नहीं दिया जाएगा। यह फैसला 1992 में लागू हो गया। कुछ राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट की बात यह कहते हुए नहीं मानी की उनके यहां ओबीसी में क्रीमी लेयर नहीं है। इसके बाद 1999 में क्रीमी लेयर का मुद्दा फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अदालत ने अपना फैसला बरकरार रखा। इस पर सरकार ने 1993 में ओबीसी में क्रीमी लेयर तय करने के लिए अधिकतम सालाना आय की सीमा तय करते हुए नॉन-क्रीमी लेयर सर्टिफिकेट की व्यवस्था की। सरकार ने 1 लाख रुपए से ज्यादा की सालाना आमदनी वाला ओबीसी परिवार क्रीमी लेयर घोषित किया था। इसे 2004 में ढाई लाख, 2008 में साढ़े चार लाख, 2013 में छह लाख और 2017 में आठ लाख रुपए कर दिया गया।
Published on:
02 Aug 2024 12:08 pm
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