
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना ने मंगलवार को कहा कि कोर्ट के अवकाश के कारण मुकदमों की सुनवाई किए बिना वेतन मिलने पर उन्हें अक्सर अपराध बोध होता है। उन्होंने कहा कि गर्मी की छुट्टियों के दौरान वेतन पाकर बहुत बुरा लगता है, क्योंकि मैं जानती हूं कि हमने उस दौरान काम नहीं किया है। जस्टिस नागरत्ना ने यह टिप्पणी मध्यप्रदेश के चार सिविल जजों को बर्खास्तगी काल का वेतन देने से इनकार करते हुए की जो सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद वापस बहाल कर दिए गए थे।
जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच में मध्यप्रदेश के छह सिविल जजों की बर्खास्तगी संबंधी मामले की सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी गौरव अग्रवाल ने सूचित किया कि चार जजों की बर्खास्तगी मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने रद्द कर दी है जबकि दो की बरकरार रखी गई है। इसके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बसंत ने चार जजों को बर्खास्तगी अवधि का वेतन दिलाने की मांग की।
जस्टिस नागरत्ना ने स्पष्ट किया कि चूंकि सिविल जजाें ने बर्खास्तगी के दौरान काम नहीं किया था, इसलिए उन्हें वेतन नहीं दिया जा सकता। हमारा विवेक इसकी इजाजत नहीं देता। बेंच ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह चारों जजों की ड्यूटी पर वापसी के आदेश शीघ्र जारी करे।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टों में शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन अवकाश सार्वजनिक क्षेत्र में बहस का मुद्दा बने रहते हैं। इन अदालतों में बड़ी संख्या में मुकदमों के लंबित रहने के कारण अवकाश के औचित्य पर सवाल उठाया जाता है कि अन्य सरकारी कार्यालयों की तरह इनमें अवकाश नहीं होना चाहिए। दूसरी ओर जजों के बड़े वर्ग के साथ देश के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ यह कह कर अवकाश के पक्ष में हैं कि जज छुट्टी के दिनों में भी कोर्ट का ही काम करते हैं।
Updated on:
04 Sept 2024 02:40 pm
Published on:
04 Sept 2024 07:45 am
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