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सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर पर भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में नहीं हुई सुनवाई, शीर्ष अदालत बोली- ध्वस्त हो गया है सिस्टम

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने लखनऊ में विवादित भूमि के संबंध में यूपी के विधायक अब्बास अंसारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामलों को दाखिल करने और सूचीबद्ध करने की ध्वस्त प्रणाली पर चिंता व्यक्त की।

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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को लखनऊ में विवादित भूमि के संबंध में उत्तर प्रदेश के विधायक अब्बास अंसारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामलों को दाखिल करने और सूचीबद्ध करने की ध्वस्त प्रणाली पर चिंता व्यक्त की। शीर्ष ने हाईकोर्ट में चल रहे काम को चिंताजनक बताया और यह जानने के बाद यह टिप्पणी की कि अंसारी की उस याचिका पर एक बार भी सुनवाई नहीं हुई जिसमें उन्होंने अपने भूखंड पर निर्माण पर रोक लगाने की मांग की थी। इसके बारे में राज्य का दावा है कि वह निष्कासित भूमि है, जबकि शीर्ष अदालत ने अक्टूबर 2024 में आउट ऑफ टर्न सुनवाई का निर्देश दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने की इलाहाबाद हाईकोर्ट की खिंचाई

न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह उन उच्च न्यायालयों में से एक है जिसके बारे में हम चिंतित हैं। पीठ ने विवादित भूमि पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया, जब तक कि उच्च न्यायालय मामले को नहीं ले लेता। पीठ में न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि फाइलिंग ध्वस्त हो गई है, लिस्टिंग ध्वस्त हो गई है। कोई नहीं जानता कि कोई मामला कब सुनवाई के लिए आएगा।

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न्यायमूर्ति शेखर कुमार ने मुश्किल समुदाय पर की थी टिप्पणी

न्यायमूर्ति कांत ने बताया कि उन्होंने हाल ही में इन मुद्दों पर चर्चा करने के लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और रजिस्ट्रारों से मुलाकात की थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इर्द-गिर्द हाल ही में हुए विवादों के मद्देनजर यह मामला महत्वपूर्ण हो गया है। इसके एक न्यायाधीश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने 8 दिसंबर को प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में भाग लिया था और मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाते हुए टिप्पणी की थी। उन्होंने समान नागरिक संहिता के तहत तीन तलाक और हलाला को समाप्त करने का समर्थन किया था और हिंदू शासक के अधीन देश में बहुसंख्यकों द्वारा शासन किए जाने की वकालत की थी।

शीर्ष कोर्ट ने यादव को किया था तलब

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति कांत सहित चार वरिष्ठ न्यायाधीशों सहित सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने पिछले महीने न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव को तलब किया था और उन्हें सार्वजनिक बयानों के बारे में चेतावनी दी थी। इसके साथ ही हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से रिपोर्ट मांगी थी। यादव की टिप्पणियों के कारण 55 राज्यसभा सदस्यों ने महाभियोग प्रस्ताव पेश किया था।