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केरल के पूर्व मुख्यमंत्री V.S. अच्युतानंदन का निधन, 101 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

V.S. Achuthanandan death: वरिष्ठ मार्क्सवादी नेता और केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन का सोमवार को निधन हो गया है।

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केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन फोटो -एएनआई

V.S. Achuthanandan Death: वरिष्ठ मार्क्सवादी नेता और केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन का सोमवार को निधन हो गया है। 101 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली है। पार्टी ने सोमवार को इसकी जानकारी दी है। पूर्व वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता वी.एस. अच्युतानंदन की हालत गंभीर बनी हुई थी। बता दें कि वीएस अच्युतानंदन का 23 जून को हृदयाघात के बाद पिछले महीने से तिरुवनंतपुरम के एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था।

सीएम विजयन और माकपा नेता गए थे अस्पताल

सोमवार को मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन और माकपा नेता उनसे मिलने अस्पताल गए थे। मुख्यमंत्री के अलावा, वित्त मंत्री के.एन. बालगोपाल और राज्य सचिव सहित पार्टी के कई नेता सोमवार दोपहर अच्युतानंदन से मिलने अस्पताल गए थे।

वी.एस. अच्युतानंदन: पढ़ाई छोड़ करनी पड़ी थी मजदूरी

वी.एस. अच्युतानंदन (वेल्लिकाकाथ शंकरन अच्युतानंदन) केरल की राजनीति में एक ऐसी कद्दावर और ईमानदार छवि के नेता रहे, जिन्होंने सामाजिक न्याय और मजदूर अधिकारों के लिए आजीवन संघर्ष किया। उनका जन्म 20 अक्टूबर 1923 को अलप्पुझा जिले के पुन्नपरा में हुआ था। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में जन्मे अच्युतानंदन ने पढ़ाई बीच में छोड़कर मजदूरी करनी शुरू की और यहीं से उनके अंदर मजदूरों और गरीबों के अधिकारों की लड़ाई का बीज पड़ा।

जनआंदोलनों से मुख्यमंत्री पद तक का सफर

अच्युतानंदन ने 1939 में ट्रेड यूनियन आंदोलन के माध्यम से सक्रिय राजनीति में कदम रखा। वे 1964 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की स्थापना करने वाले उन नेताओं में शामिल रहे जिन्होंने विभाजित कम्युनिस्ट पार्टी से अलग होकर एक नई दिशा दी। 1980 से 1992 तक वे 12 वर्षों तक माकपा के राज्य सचिव रहे और पार्टी की जड़ों को मजबूत किया। उन्होंने जमीन अधिग्रहण, श्रमिक अधिकार, भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम जैसी जनहित योजनाओं के लिए सक्रियता दिखाई।

सात बार रहे विधायक

सात बार विधायक रहे अच्युतानंदन ने अपने राजनीतिक जीवन में 10 चुनाव लड़े, जिनमें से केवल तीन में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2006 में वे केरल के मुख्यमंत्री बने और 2011 तक इस पद पर रहते हुए राज्य में भ्रष्टाचार और भूमि माफिया के खिलाफ सख्त कदम उठाए। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण और ई-गवर्नेंस जैसी पहलों को भी आगे बढ़ाया। उनके नेतृत्व में एलडीएफ ने 2011 में 68 सीटें जीतीं, हालांकि बहुमत से दो सीटें कम रहने के कारण वे सत्ता में वापसी नहीं कर पाए।

93 साल की उम्र में जीता विधानसभा चुनाव

2016 में 93 वर्ष की उम्र में भी उन्होंने मालमपुझा से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से पार्टी ने मुख्यमंत्री पद पिनाराई विजयन को सौंपा। अक्टूबर 2019 में स्ट्रोक आने के बाद से वे सार्वजनिक जीवन में सक्रिय नहीं रहे, लेकिन उनके विचार और उनके द्वारा किए गए जनहित कार्य केरल की राजनीति में प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।