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Goa Nightclub Fire: दाऊद जैसे लूथरा भगोड़े अपराधियों को फिर भारत लाना कितना मुश्किल!

भारत में आर्थिक अपराधों के बढ़ने के साथ कई कारोबारी भी बड़े वित्तीय घोटालों के बाद विदेश भाग गए। ये मामले न सिर्फ बैंकिंग व्यवस्था के लिए चुनौती बने, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानूनी प्रणाली की कठिनाइयों को भी उजागर करते हैं।

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Goa Nightclub Fire

गौरव लूथरा और सौरभ लूथरा (फाइल फोटो)

Goa Nightclub Fire: गोवा बर्क बाय रोमियो लेन में आग की घटना के बाद इस क्लब के मालिक गौरव लूथरा और सौरभ लूथरा गिरफ्तारी से बचने के लिए बीती 7 दिसंबर को फ्लाइट पकड़कर फुकेट (थाईलैंड) भाग गए। इस तरह ये दाऊद इब्राहिम, विजय माल्या, संगीतकार नदीम, ललित मोदी जैसे कुख्यात अपराधियों की श्रेणी में शामिल हो गए जो यहां किसी बड़े अपराध में कथित रूप से शामिल होने के बाद देश से भाग गए ताकि उन्हें जेल में चक्की ना पिसनी पड़े। ये सच है कि इन शातिर अपराधियों को भागने में मदद करने में कुछ शक्तिशाली सरकारी अफसरों की भी भी भूमिका रहती है।

बेशक, भारत में अपराध कर विदेश भागना कोई नया घटनाक्रम नहीं है, लेकिन बदलते समय के साथ आर्थिक, संगठित और अंतरराष्ट्रीय अपराधों का दायरा बहुत बढ़ चुका है। बेशक, भगोड़ों की बात होगी तो पहला नाम दाऊद इब्राहिम का ही सबसे पहले लेना होगा। उन्होंने 1970–80 के दशक में क्राइम की दुनिया में कदम रखा, बाद में अपना गैंग बना लिया, जिसने सोना तस्करी, ड्रग–तस्करी तथा वसूली जैसे कई प्रकार के अपराध किए। जब मुंबई पुलिस ने उन पर हत्या और अन्य अपराधों के आरोप लगाए, तो उन्होंने 1986 के आस-पास भारत छोड़कर दुबई का रुख कर लिया। फिर वहां से कराची चले गए।

इस प्रकार दाऊद का नाम उन अपराधियों में आता है, जिन्होंने भारत से भागकर विदेश में अपनी गतिविधियां जारी रखी। उन्हीं की तरह इकबाल मिर्ची भी था। वो भी दाऊद का आदमी था। उसे अक्सर ड्रग–बारन कहा जाता था, क्योंकि उसके द्वारा एशिया, अफ्रीका और यूरोप में नशीली दवाओं की तस्करी की जाती थी। जब भारत में उस पर दबाव बढ़ा, तब उसने भारत छोड़ दिया — वो पहले दुबई, फिर लंदन में बस गया। भारत द्वारा गिरफ्तारी के प्रयास और प्रत्यर्पण की मांग के बावजूद, ब्रिटेन में उसकी कानूनी लड़ाई और सबूतों की कमी के चलते, उसने कई साल विदेश में गुजारे।

छोटा राजन भी भगोड़ा रहा है। उसका असली नाम राजेंद्र सदाशिव निकालजे है। वो शुरुआत में दाऊद के साथ था। लेकिन बाद में उनकी दूरी हुई और 1988 में वह भारत से भाग गया, दुबई आदि स्थानों में रहने लगे। इसके बाद उसने विभिन्न फर्जी पासपोर्टों का इस्तेमाल किया। हालांकि उसे 2015 में भारत प्रत्यर्पित किया गया, पर उसका नाम इस सूची में इसलिए महत्व रखता है क्योंकि उसने लम्बे समय तक विदेश में रहकर अपना नेटवर्क चलाया।

अब बात करते हैं रवि पुजारी की। वो जाना-माना गुंडा और वसूली एवं हत्या के मामलों में आरोपी रहा है। उसने अपने असली नाम के बजाय कई फर्जी पहचान–नाम और पासपोर्ट जैसे पहचान पत्र का इस्तेमाल किया। उसे 2019 में, पश्चिम अफ्रीकी देश सेनेगल में गिरफ्तार किया गया; फिर 2020 में उन्हें भारत प्रत्यर्पित किया गया।

वित्तीय धोखाधड़ी के आरोपी भगोड़े

भारत में आर्थिक अपराधों के बढ़ने के साथ कई कारोबारी भी बड़े वित्तीय घोटालों के बाद विदेश भाग गए। ये मामले न सिर्फ बैंकिंग व्यवस्था के लिए चुनौती बने, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानूनी प्रणाली की कठिनाइयों को भी उजागर करते हैं। यूबी ग्रुप और किंगफिशर एयरलाइंस के मालिक विजय माल्या पर भारतीय बैंकों का लगभग 9000 करोड़ रुपये बकाया होने का आरोप है।2016 में वह भारत छोड़कर यूके चले गए। इस बीच, हीरा कारोबारी नीरव मोदी पर PNB बैंक घोटाले (लगभग ₹13,000 करोड़) का आरोप है। वो 2018 में अमेरिका और फिर ब्रिटेन चला गया। मेहुल चोकसी भी पीएनबी घोटाले में आरोपी है। वो 2018 में भारत छोड़कर एंटीगुआ चला गया जहां उसने नागरिकता भी प्राप्त कर ली।

आतंकवाद और चरमपंथ से जुड़े भगोड़े

हिज़्ब-उल-मुजाहिदीन से जुड़े मसूद अज़हर को 1999 में IC-814 अपहरण मामले के बाद रिहा किया गया था। रिहाई के बाद वह पाकिस्तान में रहा और जैश-ए-मोहम्मद जैसा आतंकी संगठन स्थापित किया।1993 मुंबई धमाकों का प्रमुख आरोपी टाइगर मेमन भी भारत से भागकर पाकिस्तान चला गया।

कैसे अपराधी विदेश भाग जाते हैं

जब इन बड़े गिरोह के सरगनाओं पर कानून का शिकंजा कसता है, तो ये पहले दुबई या दूसरे मध्य-पूर्वी देशों की ओर भागते हैं — वहां से वे फिर अपनी गतिविधियाँ ड्रग्स, तस्करी, वसूली या आतंकवादी षड्यंत्रों का संचालन करने लगते हैं। कुछ अपराधी फर्जी पहचान, नकली पासपोर्ट, और अन्य दस्तावेजों का इस्तेमाल करते हैं। यह उन्हें कई देशों में घूमने और नया जीवन शुरू करने में मदद करता है।अंतरराष्ट्रीय कानून प्रवर्तन नेटवर्क, जैसे इंचरपोल और प्रत्यर्पण संधियाँ बहुत अहम होती हैं; इनकी मदद से भारत कई भगोड़ों को वापस लाता रहा है।

हाल के सालों में सीबीआई और अन्य एजेंसियों ने कई भगोड़ों को विदेशों से भारत वापस लाने की कोशिश तेज की है। उदाहरण के लिए, 2023 तक की रिपोर्ट के अनुसार, 184 भगोड़ों की लोकेशन पता लग चुकी है।

2020–2025 की अवधि में लगभग 134 भगोड़ों को विदेशों से भारत लाया गया है — यह पिछले दशक की तुलना में दोगुनी दर बताता है।

फिर भी, प्रत्यर्पण की प्रक्रिया जटिल होती है। कई देशों के कानूनी ढांचे, पासपोर्ट धोखाधड़ी, प्रमाण जुटाने में कठिनाई, और राजनीतिक/कूटनीतिक समझौतों की वजह से अपराधियों को पकड़ना मुश्किल हो जाता है।

भगोड़ों को पकड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता जरूरी होती है। जैसे कि रवि पुजारी का मामला दिखाता है। उसे सेनेगल और दक्षिण अफ्रीका में संयुक्त प्रयासों के बाद पकड़ा गया। अगर देशों के बीच सहयोग नहीं होगा, तो भगोड़े कई सालों तक सुरक्षित रह सकते हैं।

भारत से भागकर विदेश में शरण लेने वाले अपराधियों की कहानी लम्बी, जटिल और खतरनाक रही है। चाहे वो ड्रग्स-तस्करी हो, वसूली, गिरोह, या आतंकवाद — अपराधियों ने सीमाएँ पार की हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, अंतरराष्ट्रीय सहयोग, कानूनी प्रक्रिया, प्रत्यर्पण समझौतों और एफोर्समेंट एजेंसियों की कोशिशों की वजह से कई भगोड़े वापस भारत लौटाए गए हैं। यह दिखाता है कि यदि पड़ोसी देशों और अंतरराष्ट्रीय पक्षों के साथ सहयोग मजबूत हो, तो अपराधियों को बचने का रास्ता मुश्किल हो जाता है। अब सवाल उठता है कि क्या गौरव और सौरभ लूथरा अपने आप भारत वापस जाते हैं या उन्हें लाने के लिए लंबी कवायद करनी होगी?