
Justice Swaminathan Impeachment: भारत में राजनीति और न्यायपालिका के बीच टकराव (Political vs Judiciary) के हालात पैदा हो गए हैं। मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जी.आर. स्वामीनाथन (Justice Swaminathan Impeachment) की ओर से 1 दिसंबर को दिए गए एक आदेश से राजनीतिक तूफान आ गया है। इस आदेश के तहत, उन्होंने मदुरै के तिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी पर स्थित एक हिंदू मंदिर में दीप जलाने की अनुमति दी थी। इसके बाद विपक्षी दलों (INDIA Alliance) ने उनके इस निर्णय पर कड़ी आपत्ति जताई और अब 100 से अधिक सांसदों ने जस्टिस स्वामीनाथन (Justice Swaminathan) को हटाने की मांग की है। इन सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को एक नोटिस (Impeachment Notice) सौंपा है, जिसमें उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की अपील की गई है।
जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन ने यह आदेश तमिलनाडु के मदुरै जिले के तिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी पर दीप जलाने की "परंपरा" को पुनर्जीवित करने के लिए दिया था। इस आदेश के बाद से राज्य में सत्तारूढ़ डीएमके ने इसका विरोध किया और आरोप लगाया कि यह आदेश विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के उद्देश्य से दिया गया है। उनकी नजर में न्यायमूर्ति स्वामीनाथन का यह निर्णय संविधान के धर्मनिरपेक्षता सिद्धांत के खिलाफ माना जा रहा है, क्योंकि यह आदेश विशेष रूप से हिंदू धर्म से जुड़ा हुआ था और राज्य के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश की जा रही थी।
डीएमके ने दावा किया है कि जस्टिस स्वामीनाथन का आदेश राजनीति से प्रेरित है और यह राज्य में धार्मिक विवाद को बढ़ावा दे सकता है। वहीं, विपक्ष ने आरोप लगाया है कि न्यायमूर्ति ने एक विशेष समुदाय और धार्मिक विचारधारा के पक्ष में फैसला दिया है, जो न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता को सवालों के घेरे में डालता है।
महागठबंधन की ओर से जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को नोटिस सौंपने से संसद का माहौल गर्माने की संभावना है। क्यों कि इस नोटिस पर 100 से अधिक सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें प्रमुख विपक्षी दलों के नेता भी शामिल हैं। अगर इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाया जाता है, तो इसे लोकसभा में 100 और राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है। इसके बाद यह प्रस्ताव संसद में पेश किया जाएगा और सदन का पीठासीन अधिकारी यह तय करेगा कि इसे स्वीकार किया जाए या नहीं।
महाभियोग प्रक्रिया के तहत यदि प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता है तो एक तीन-सदस्यीय जांच समिति का गठन किया जाता है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय का एक न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होते हैं। समिति आरोपों की जांच करती है और अपनी रिपोर्ट पेश करती है। यदि रिपोर्ट में आरोप सही पाए जाते हैं, तो इसे संसद में चर्चा और बहस के लिए रखा जाता है। प्रस्ताव को पारित करने के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत होने की आवश्यकता होती है, और यदि इसे पारित कर दिया जाता है, तो राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
न्यायमूर्ति स्वामीनाथन का यह आदेश केवल एक प्रशासनिक आदेश नहीं था, बल्कि यह भारतीय न्यायपालिका के धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण पर एक गंभीर सवाल था। स्वामीनाथन ने यह आदेश दिया था कि तिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी पर दीप जलाने की परंपरा वापस बहाल की जाए, जो हिंदू धार्मिक प्रथा का हिस्सा है। उन्होंने यह भी कहा था कि इस आदेश के पालन में किसी भी अवरोध को सहन नहीं किया जाएगा और द्रमुक सरकार की ओर से किसी भी प्रकार की अवहेलना को गंभीरता से लिया जाएगा।
जस्टिस स्वामीनाथन ने यह भी कहा था कि इस मामले में धार्मिक अनुष्ठानों को बढ़ावा देने के लिए अदालत का आदेश जरूरी था। उन्होंने तर्क दिया कि यह आदेश न्यायपालिका की शक्ति और अधिकार को बनाए रखने के लिए आवश्यक था। उनके फैसले में हिंदू धार्मिक प्रथाओं और परंपराओं का सम्मान करते हुए राज्य के तटस्थता और प्रशासनिक सुविधाओं पर सवाल उठाया गया था।
जस्टिस स्वामीनाथन के आदेश ने न केवल तमिलनाडु, बल्कि पूरे देश में राजनीतिक और न्यायिक हलचल मचा दी है। विपक्षी दलों का आरोप है कि यह आदेश संविधान के धर्मनिरपेक्षता सिद्धांतों के खिलाफ है, क्योंकि यह विशेष रूप से एक धार्मिक समुदाय की प्रथा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है।
अब यह मामला केवल एक न्यायिक आदेश का विवाद नहीं है, बल्कि भारतीय राजनीति और न्यायपालिका के बीच एक गहरे संघर्ष का प्रतीक बन गया है। सवाल यह है कि क्या यह विवाद आगे बढ़ेगा? क्या यह मामला भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता को चुनौती देगा? इन सवालों का जवाब आने वाले दिनों में ही मिलेगा।
बहरहाल, जस्टिस स्वामीनाथन के आदेश पर उठे विवाद ने यह बात साफ कर दी है कि भारतीय न्यायपालिका में धार्मिक और राजनीतिक विचारधाराएं अक्सर टकराती रहती हैं। इस केस में विपक्षी दलों की ओर से उठाई गई महाभियोग की मांग, स्वामीनाथन के आचरण पर गंभीर सवाल उठाती है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या यह विवाद संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों को बचाए रखेगा या फिर यह न्यायपालिका के कार्यों पर राजनीतिक दबाव बढ़ाएगा? यह समय ही बताएगा।
Published on:
09 Dec 2025 05:59 pm
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