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Jharkhand: CBI-ED जांच की मांग वाली जनहित याचिका पर हाईकोर्ट के आदेश को हेमंत सोरेन सरकार ने दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

locationनई दिल्लीPublished: Jun 14, 2022 01:19:01 pm

Submitted by:

Archana Keshri

झारखंड सरकार ने हाईकोर्ट के एक आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। राज्य सरकार ने शेल कंपनियों में कथित निवेश के मामले की CBI-ED जांच की मांग के लिए याचिका सुनवाई योग्य नहीं होने की बात कहते हुए आपत्ति दर्ज कराई है।

Jharkhand: CBI-ED जांच की मांग वाली जनहित याचिका पर हाईकोर्ट के आदेश को हेमंत सोरेन सरकार ने दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

Jharkhand: CBI-ED जांच की मांग वाली जनहित याचिका पर हाईकोर्ट के आदेश को हेमंत सोरेन सरकार ने दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

झारखंड सरकार ने हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जिसमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ खनन पट्टे के अनुदान में कथित अनियमितता और उनके परिजनों व सहयोगियों के द्वारा शेल कंपनियों में कथित निवेश के मामले की जांच की मांग के लिए याचिका दाखिल की गई थी। इस याचिका को सुनवाई के लिए हाईकोर्ट ने स्वीकार भी कर लिया था। 3 जून को, झारखंड हाई कोर्ट ने कहा था कि ये रिट याचिकाएं सुनवाई योग्य हैं।
राज्य सरकार ने वकील ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की अवकाशकालीन पीठ को बताया कि तत्कालिकता है, साथ ही इसे रजिस्ट्रार के सामने मंगलवार को इसका उल्लेख करने के लिए भी कहा। झारखंड हाईकोर्ट ने शुक्रवार 3 जून को कहा था कि उसकी सुविचारित राय है कि रिट याचिकाओं को रखरखाव के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है और मेरिट के आधार पर मामलों की सुनवाई के लिए आगे बढ़ाया जाएगा।
झारखंड हाईकोर्ट की बेंच ने कहा, “यह अदालत तैयार किए गए मुद्दे का जवाब देने के बाद और यहां ऊपर की गई चर्चाओं के आधार पर अपने विचार को सारांशित कर रही है और यह माना जाता है कि रिट याचिकाओं को रखरखाव के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है।” हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में SLP दाखिल की। राज्य ने झारखंड हाई कोर्ट के 3 जून के आदेश का विरोध किया है, जिसमें आर रंजन और सुजीत नारायण प्रसाद की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि उनके आदेश में जनहित याचिकाओं पर सुनवाई होगी क्योंकि ये मामला सुनवाई योग्य है।
झारखंड हाई कोर्ट ने कहा, “यह अदालत, यहां ऊपर की गई चर्चाओं को देखते हुए इस विचार का विचार है कि संहिता या दंड प्रक्रिया की धारा 154, 154 (3) और 156 (3) के तहत उपलब्ध उपाय को समाप्त किए बिना इस न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का मुद्दा वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में उपलब्ध नहीं है। इस मामले में सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग जैसी स्वतंत्र एजेंसी के माध्यम से जनता के धन की हेराफेरी की जांच के लिए निर्देश मांगा गया है और इस तरह के आदेश पूर्वोक्त प्रावधानों के तहत पारित नहीं किए जा सकते हैं। इसके मद्देनजर बिना रुकावट के इस न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से संबंधित मुद्दे दंड प्रक्रिया संहिता के तहत उपलब्ध उपाय पर विचार करने योग्य नहीं है। इस लिए इसे खारिज किया जाता है।”

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आपको बता दें, इससे पहले, 24 मई को, सर्वोच्च अदालत ने झारखंड हाईकोर्ट को मामले में जांच की मांग करने वाली जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई को लेकर उठायी गयी प्रारंभिक आपत्तियों पर पहले सुनवाई करने को कहा था। वहीं जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की अवकाश पीठ ने राज्य की आपत्तियों को खारिज करते हुए प्रवर्तन निदेशालय द्वारा सीलबंद लिफाफे में पेश किए गए दस्तावेजों को स्वीकार करने के हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली झारखंड राज्य की याचिका पर आदेश पारित किया था।
बैंच ने कहा, “हम निर्देश देते हैं कि हाई कोर्ट द्वारा सूचीबद्धता की अगली तारीख पर रखरखाव के मुद्दे को निपटाया जाना चाहिए। कार्यवाही की स्थिरता पर आपत्तियों के परिणाम के आधार पर, एचसी उसके बाद कानून के अनुसार आगे बढ़ सकता है।” बता दें, अदालत अब इस मामले में 17 जून को अगली सुनवाई करेगी। अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के बाद इस मामले में 17 जून की तिथि निर्धारित की है।

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