
New CJI Justice BR Gavai: देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना अपने छह माह का कार्यकाल पूरा कर मंगलवार को सेवानिवृत्त हो गए है। उनके स्थान पर जस्टिस बीआर गवई बुधवार को नए सीजेआइ पद की शपथ लेंगे। जस्टिस गवई देश के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश हैं। 24 नवंबर 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति भूषण गवई तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई (1929–2015), जिन्हें उनके अनुयायी और प्रशंसक “दादासाहेब” कहते थे, एक प्रसिद्ध अंबेडकरवादी नेता और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) के संस्थापक थे। अमरावती से लोकसभा सांसद रहे वरिष्ठ गवई ने 2006 से 2011 के बीच बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल के रूप में कार्य किया, जब केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सत्ता में थी।
गवई को बचपन से ही समाज सेवा के माहौल में ढाला गया। जब वे शिशु अवस्था में थे, उनकी मां जब सैकड़ों आगंतुकों के लिए भाकरियां बनाती थीं, तो वे पास ही लेटे रहते थे। चूंकि सामाजिक कार्यों के चलते उनके पिता लंबे समय तक घर से बाहर रहते थे, उन्हें डर था कि उनके बच्चे भी राजनीतिज्ञों के बच्चों की तरह बिगड़ न जाएं। ऐसे में उनकी मां कमलताई ने पूरी जिम्मेदारी ली और छोटे गवई को घर के कामों में मदद करने की आदत डाली—खाना बनाना, बर्तन धोना, खाना परोसना, खेतों में काम करना और देर रात बोरवेल से पानी खींचना तक।
कमलताई कहती हैं, शायद बड़े होने के कारण वह शुरू से ही परिपक्व बच्चा था। 1971 के बांग्लादेश युद्ध के समय आर्थिक हालात खराब होने के बावजूद सैनिक उनके छोटे से घर में भोजन करते थे और उस समय भी भूषण मां की मदद करते थे।
न्यायमूर्ति गवई ने अमरावती के फ्रीज़रपुरा स्लम में बचपन बिताया, जहां वे कक्षा 7 तक एक नगरपालिका मराठी स्कूल में पढ़े। इसके बाद उन्होंने मुंबई, नागपुर और अमरावती में शिक्षा प्राप्त की। अमरावती के व्यवसायी रूपचंद खंडेलवाल, जो उनके पड़ोसी और सहपाठी थे, बताते हैं कि उस समय उसकी एक छोटी झोपड़ी थी, जो बाद में पुनर्निर्मित होकर परिवार द्वारा बेची गई।
B.Com की पढ़ाई के बाद गवई ने अमरावती विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की और 1985 में 25 वर्ष की आयु में वकालत शुरू की। मुंबई और अमरावती में प्रारंभिक कार्य के बाद वे नागपुर चले गए, जहां बॉम्बे हाईकोर्ट की एक पीठ है। वहाँ उन्होंने अपर लोक अभियोजक (क्रिमिनल मामलों में) और बाद में सरकारी वकील (सिविल मामलों में) के रूप में सरकार का प्रतिनिधित्व किया।
एक स्वतंत्र सोच वाले वकील के रूप में उन्होंने अपनी टीम खुद चुनने की शर्त पर सरकारी वकील की भूमिका स्वीकार की थी। उनके चयनित सहायक वकीलों में से दो जस्टिस भारती डांगरे और अनिल एस. किलोर आगे चलकर बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश बने।
जब एक बार मुख्य सचिव ने एक सहायक सरकारी वकील को हटाने की मांग की, तो न्यायमूर्ति गवई ने सख्ती से जवाब दिया— आप मेरे मुवक्किल हैं और मैं उम्मीद करता हूं कि आप वैसा ही व्यवहार करें। मुवक्किल निर्देश देते हैं, आदेश नहीं। अगर आपको एजीपी हटाना है, तो पहले मुझे हटाइए। यह बात जस्टिस किलोर ने याद करते हुए बताई।
गवई ने अपने कानूनी करियर को किसी एक फोरम या विधिक क्षेत्र तक सीमित नहीं किया। वे सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, जिला न्यायालय और यहां तक कि तहसीलदार जैसे राजस्व अधिकारियों के समक्ष भी मुकदमे लड़ते थे। समाज के वंचित वर्गों के लिए काम करने की पारिवारिक पृष्ठभूमि और विविध कानूनी अनुभव ने उनके न्यायिक दृष्टिकोण को आकार दिया।
2001 में उन्हें हाईकोर्ट में न्यायाधीश बनने का प्रस्ताव मिला, लेकिन प्रक्रिया में दो साल से अधिक लग गए। इस देरी से हताश होकर वे अपनी सहमति वापस लेने की सोच रहे थे, पर उनके पिता ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी। अंततः 2003 में वे बॉम्बे हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश बने और 2005 में स्थायी नियुक्ति मिली। 2015 में अपने बीमार पिता की देखभाल के लिए उन्होंने मुंबई से नागपुर पीठ में स्थानांतरण मांगा। जुलाई 2015 में उनके पिता का निधन हो गया।
अमरावती और नागपुर बार के वकील उनके लोगों से जुड़ाव की प्रशंसा करते हैं। न्यायमूर्ति नितिन डब्ल्यू. सांब्रे कहते हैं, वे आम आदमी की परेशानियों को समझते हैं। पैसे उनके लिए प्राथमिकता नहीं थी। जब वे वकील थे, तब भी उनका 50–60% काम प्रो बोनो (निःशुल्क) होता था। एक बार घर खरीदने के लिए पैसे कम पड़ने पर उन्होंने अपनी कार बेच दी और एक साल तक दोपहिया वाहन से अदालत आते रहे।
वरिष्ठ अधिवक्ता फिरदौस मिर्ज़ा बताते हैं, वे जूनियर वकीलों को सहज महसूस कराते थे। हाईकोर्ट में वे अवकाशकालीन बेंच के दौरान वरिष्ठ वकीलों को पेश नहीं होने देते थे ताकि जूनियर वकीलों को बहस करने का मौका मिल सके।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में अपने छह महीने के छोटे कार्यकाल में न्यायमूर्ति गवई को गंभीर चुनौतियों का सामना करना होगा। न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। दो हाईकोर्ट न्यायाधीशों—इलाहाबाद के न्यायमूर्ति शेखर यादव (VHP सभा में दिए विवादास्पद बयान के कारण) और दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा (जिनके आवास से आग लगने के बाद बेहिसाब नकदी बरामद हुई)—के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। CJI के रूप में वे 15 मई को एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करेंगे, जिसमें वक्फ अधिनियम में किए गए विवादास्पद संशोधनों को चुनौती दी गई है।
Updated on:
14 May 2025 08:24 am
Published on:
13 May 2025 09:52 am
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