
हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
Madras High Court: मद्रास हाईकोर्ट ने भगवद् गीता को ‘नैतिक विज्ञान’ और भारतीय सभ्यता का अभिन्न हिस्सा बताते हुए इसे धार्मिक ग्रंथ मानने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने वेदांत को पूर्वजों द्वारा विकसित शुद्ध दर्शन और योग को सार्वभौमिक अभ्यास बताया। अदालत ने कहा कि योग को केवल धर्म के चश्मे से देखना घोर अन्याय होगा। जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन की पीठ ने गृह मंत्रालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें अर्श विद्या परंपरा ट्रस्ट के विदेशी चंदा (नियमन) अधिनियम (FCRA) के तहत रजिस्ट्रेशन आवेदन को धार्मिक संगठन बताकर खारिज किया गया था।
अर्श विद्या परंपरा ट्रस्ट ने वर्ष 2021 में FCRA पंजीकरण के लिए आवेदन किया था। गृह मंत्रालय ने सितंबर 2021 में यह कहते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि— ट्रस्ट ने बिना पूर्व अनुमति के विदेशी फंड प्राप्त किया और उसे दूसरी संस्था को दान कर दिया। ट्रस्ट की गतिविधियां भगवद् गीता के संदेश के प्रसार से जुड़ी होने के कारण धार्मिक प्रकृति की हैं। इसके बाद ट्रस्ट ने मद्रास हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और आदेश रद्द कर रजिस्ट्रेशन मंजूर करने की मांग की।
कोर्ट ने कहा कि भगवद् गीता किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नैतिक विज्ञान है और भारतीय सभ्यता की आधारशिला है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए इसे ‘राष्ट्रीय धर्मशास्त्र’ भी बताया गया।
वेदांत पर कोर्ट ने कहा कि यह हमारे पूर्वजों का विकसित किया हुआ शुद्ध दर्शन है। योग को लेकर अदालत ने स्पष्ट किया कि इसे धर्म से जोड़ना गलत है, क्योंकि योग सार्वभौमिक है। एक अमेरिकी अदालत के फैसले का जिक्र करते हुए कहा गया कि योग शारीरिक लचीलापन बढ़ाने, दर्द कम करने और तनाव घटाने का एक धर्मनिरपेक्ष माध्यम है। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि आध्यात्मिकता और धर्म एक नहीं होते।
अदालत ने पाया कि गृह मंत्रालय के आदेश में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है। आवेदन पर 2021 से अक्टूबर 2024 तक निर्णय न लेना भी कोर्ट ने ‘अच्छे शासन’ के सिद्धांतों के खिलाफ बताया। संविधान के अनुच्छेद 51A (b) और (f) का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा कि नागरिकों का कर्तव्य है कि वे राष्ट्रीय आदर्शों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण करें।
कोर्ट ने गृह मंत्रालय का आदेश रद्द करते हुए मामला दोबारा FCRA प्राधिकरण को भेज दिया है। प्राधिकरण को निर्देश दिया गया है कि यदि नई नोटिस जारी की जाए, तो वह स्पष्ट, प्रासंगिक और ठोस आधार पर हो।
Updated on:
23 Dec 2025 09:01 pm
Published on:
23 Dec 2025 08:56 pm
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