
मुंबई। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election) की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही है, महायुति और महा विकास अघाड़ी के साझेदारों के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं। अब हर साझेदार दल खुद ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की कोशिश में जुट गया है। मौजूदा हालात में किसी एक गठबंधन के बहुमत का आंकड़ा 145 पार करने की संभावना न के बराबर लग रही है। ऐसे में हर दल अब इस कोशिश में है कि 23 नवंबर को अपने गठबंधन में सबसे बड़ा दल वही बने ताकि सीएम की कुर्सी पर उसका दावा रहे। इसके लिए बागियों और निर्दलीयों को अंदरखाने शह की खबरें आम हैं।
महायुति में चाहे भाजपा हो या शिंदे सेना या एनसीपी अजित तथा एमवीए में कांग्रेस हो या उद्धव सेना या एनसीपी शरद हरेक का कार्यकर्ता उन्हीं इलाकों में मेहनत कर रहा है, जहां उनकी खुद की पार्टी का प्रत्याशी मैदान में है। यहां तक कि इन दलों के बड़े नेता भी अपने सहयोगी दलों के प्रत्याशियों वाले इलाकों में प्रचार करते दिखाई नहीं दे रहे हैं। इस वजह से सहयोगी दलों के उम्मीदवार वाले इलाकों में उनके कार्यकर्ता उतने सक्रिय नहीं हो रहे। ऐसे में गठबंधन के सहयोगी को वोटों के हस्तांतरण पर संशय गहरा हो गया है।
इन नए हालात में सबसे सहज स्थिति में भाजपा लग रही है, क्योंकि हर क्षेत्र में बूथ लेवल तक उसके कार्यकर्ता तो हैं ही, हिंदुत्व के एजेंडे को सफल करने के लिए आरएसएस इन चुनावों में पूरी शिद्दत से भाजपा के लिए काम कर रहा है। लेकिन ये मेहनत उन्हीं सीटों पर हो रही है जहां भाजपा के प्रत्याशी मैदान में हैं। भाजपा और आरएसएस में यह बात अब काफी मुखर है कि कम सीट वाले एकनाथ शिंदे का फिर से मुख्यमंत्री बनना स्वीकार नहीं है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कहने वाले भाजपा नेता उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस के विपरीत केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अब यह कहना शुरू कर दिया है कि मुख्यमंत्री का फैसला नतीजे आने के बाद होगा। चुनावी मुद्दों को लेकर भी भाजपा, अजित पवार और शिंदे में तालमेल का अभाव साफ दिखाई दे रहा है। एनसीपी को 'बटेंगे तो कटेंगे' से समस्या है तो शिंदे और भाजपा में मराठा आरक्षण के मुद्दे पर एकराय नहीं है।
खींचतान के लिहाज से महा विकास अघाड़ी में वैसे हालात थोड़े से सहज हैं क्योंकि इसमें शामिल दलों ने महाराष्ट्र के अलग-अलग संभागों में एक-दूसरे के प्रभाव को स्वीकार करते हुए सीटों का बटवारा किया है। लेकिन सबसे बड़ा दल बनने की होड़ यहां भी तेज हो चुकी है। गठबंधन में साझेदार के प्रत्याशियों को जिताने की नहीं तो कम से कम हराने की कोशिश भी नहीं हो रही है। महाराष्ट्र की राजनीति के धुरंधर शरद पवार कांग्रेस और शिवसेना उद्धव के बीच तालमेल बनाए रखने के लिए पूरी मशक्कत कर रहे हैं। अब वे कितने सफल हो पाते हैं यह नतीजे आने के बाद स्पष्ट होगा, क्योंकि महाराष्ट्र में असली लड़ाई 23 नवंबर से शुरू होगी।
Published on:
14 Nov 2024 06:40 pm
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