
नेपाल में युवाओं का प्रदर्शन (Photo: IANS)
Nepal Unemployment: नेपाल में भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ युवाओं का गुस्सा सड़कों पर फट पड़ा है। ‘जेन-जेड’ के नेतृत्व में हुए हिंसक प्रदर्शनों ने संसद, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति भवन को आग के हवाले कर दिया, जिसके बाद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। दूसरी ओर, 900 किलोमीटर दूर ओडिशा में नेपाली युवा नौकरियों की तलाश में कतारों में खड़े हैं।
प्रदर्शन तब भड़के जब ओली सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाया। सरकार ने इसे सुरक्षा कारणों से उचित ठहराया, लेकिन युवाओं ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना। प्रदर्शनकारियों ने नाखू जेल पर धावा बोलकर पूर्व उप-प्रधानमंत्री रवि लामिछाने को रिहा करवाया, जो वित्तीय अनियमितताओं के आरोप में हिरासत में थे। सोमवार और मंगलवार को हिंसक झड़पों में करी दो दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों घायल हुए हैं। प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन, नेपाली कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय और नेताओं के घरों को आग लगा दी। मंगलवार रात तक सरकार ने सोशल मीडिया प्रतिबंध हटा लिया, लेकिन आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा।
नेपाल में बेरोजगारी लंबे समय से एक गंभीर समस्या रही है, खासकर युवाओं के लिए। विश्व बैंक के अनुसार, 2024 में 15-24 आयु वर्ग में बेरोजगारी दर 20.8% थी। कई परिवार विदेशों से भेजे गए धन पर निर्भर हैं, जो 2024 में नेपाल के जीडीपी का 33.1% था। युवा प्रदर्शनकारी भ्रष्टाचार और नेताओं के बच्चों की शानदार जीवनशैली पर गुस्सा जता रहे हैं। एक प्रदर्शनकारी ने एनडीटीवी से कहा, नेता अपने बच्चों को विदेश पढ़ने भेजते हैं, लेकिन हमारे लिए नौकरियां नहीं हैं।
जब काठमांडू में युवा सड़कों पर हैं, तब 3,000 नेपाली युवा, खासकर लड़कियां, ओडिशा स्पेशल आर्म्ड पुलिस 2nd बटालियन मुख्यालय के बाहर केवल 135 नौकरियों के लिए कतार में हैं। ये नौकरियां नेपाली लड़कियों और भारतीय गोरखाओं के लिए आरक्षित हैं। एक नेपाली युवक ने कहा, कोई नौकरी नहीं, कोई आय नहीं हमें यहां आना ही पड़ता है। बेरोजगारी ने कई युवाओं को भारत की ओर पलायन करने को मजबूर किया है।
ओली के इस्तीफे के बाद नेपाल संवैधानिक संकट का सामना कर रहा है। 2015 के संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल को संसद में बहुमत वाली पार्टी से नया प्रधानमंत्री नियुक्त करना होगा। यदि कोई पार्टी बहुमत साबित नहीं कर पाती, तो 30 दिनों के भीतर विश्वास मत हासिल करना होगा, वरना संसद भंग हो सकती है। प्रदर्शनकारी स्थापित दलों पर भरोसा नहीं करते। पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज बलराम केसी ने प्रदर्शनकारियों से बातचीत के लिए एक टीम बनाने और नागरिक समाज व सेना को शामिल करने की सलाह दी है।
Published on:
10 Sept 2025 09:49 pm
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