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राहुल गांधी ने 10 साल पहले अगर नहीं फाड़ा होता ऑर्डिनेंस, तो आज नहीं जाती सांसदी

Rahul Gandhi's Disqualifiaction As MP: सूरत कोर्ट द्वारा मानहानि के मामले में दोषी करार दिए जाने की वजह से आज राहुल गांधी की सांसद भी नहीं बची। मानहानि मामले में दोषी होने की वजह से राहुल गांधी की लोकसभा सांसद की सदस्यता आज रद्द हो गई है। इस मामले को अब 10 साल पहले हुए वाकये से जोड़ा जा रहा है जब राहुल ने इसी मामले पर आए ऑर्डिनेंस को सबके सामने फाड़ दिया था। अगर राहुल ने 10 साल पहले ऑर्डिनेंस को नहीं फाड़ा होता तो आज स्थिति कुछ और ही होती।

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काँग्रेस (Congress) के नेता, पूर्व अध्यक्ष और वायनाड से सांसद (Member of Parliament from Waynad) राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के लिए कल और आज के दिन अच्छे नहीं रहे। कल गुरुवार, 23 मार्च को राहुल को सूरत कोर्ट ने पहला झटका दिया, जब उन्हें 2019 मानहानि मामले में दोषी करार करते हुए 2 साल की सज़ा सुनाई।

इस सज़ा से तो राहुल जमानत के ज़रिए बच गए, पर दूसरा झटका उन्हें आज शुक्रवार, 24 मार्च को लगा। लोकसभा सचिवालय (Lok Sabha Secretariat) ने मानहानि मामले में राहुल के दोषी पाए जाने की वजह से उनकी सांसदी रद्द कर दी।

हालांकि इस मामले में राहुल सेशन कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं, पर वहाँ से राहत न मिलने पर राहुल अगले 8 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। इनमें 2024 ओर 2029 के लोकसभा चुनाव शामिल हैं। राहुल पर आज आए इस फैसले की वजह राहुल खुद ही हैं।


अगर 10 साल पहले अगर नहीं फाड़ा होता ऑर्डिनेंस, तो आज नहीं जाती सांसदी

राहुल की सांसदी जाने की वजह खुद राहुल ही हैं। 2019 मानहानि मामले में दोषी पाया जाना तो राहुल की सांसदी रद्द होने की वजह बनी। पर यह बच भी सकती थी अगर राहुल ने 10 साल पहले इस मामले से जुड़ा ऑर्डिनेंस फाड़ा नहीं होता।

दरअसल 2013 में मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) के देश के प्रधानमंत्री रहते यूपीए सरकार (UPA Government) ने एक ऑर्डिनेंस पेश किया गया था। इस ऑर्डिनेंस के अनुसार दागी नेता यानी कि ऐसे नेता जिन्हें कोर्ट से दो साल या उससे ज़्यादा साल की की सज़ा मिली हो, उनकी विधायकी या सांसदी रद्द नहीं की जानी चाहिए। पर राहुल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इस ऑर्डिनेंस को बकवास बताते हुए इसकी एक कॉपी को फाड़ दिया था।

इतना ही नहीं, राहुल ने मनमोहन को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने तक की बात कर दी थी। मनमोहन उस समय अमरीका दौरे पर थे। सितंबर, 2013 में राहुल ने इस ऑर्डिनेंस की कॉपी को फाड़ा था। इसके बाद अक्टूबर, 2013 में यूपीए सरकार ने इस ऑर्डिनेंस को वापस ले लिया था।

ऐसे में आज राहुल की सांसदी रद्द होने पर करीब 10 साल पहले उनका इस विषय में फाड़े गए ऑर्डिनेंस का वाक्या फिर से ताज़ा हो गया। क्योंकि अगर राहुल ने 10 साल पहले यूपीए सरकार के ऑर्डिनेंस को नहीं फाड़ा होता, तो आज उनकी लोकसभा सांसद के तौर पर सदस्यता बरकरार रहती।

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लिली थॉमस मामला भी बना राहुल की मुसीबत की वजह

दागी नेताओं की विधायकी या सांसदी रद्द होने के खिलाफ पहले जनप्रतिनिधित्व कानून 1952 की धारा 8 (4) थी। इस धारा को असंवैधानिक घोषित करने के लिए वरिष्ठ वकील लिली थॉमस ने 2003 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दर्ज की थी।

लिली थॉमस की इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने दो बार खारिज कर दिया था पर इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और 2012 में तीसरी बार सुप्रीम कोर्ट में फिर से याचिका लगाई। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने लिली थॉमस की याचिका को स्वीकार कर लिया और जनप्रतिनिधित्व कानून 1952 की धारा 8 (4) को असंवैधानिक घोषित करते हुए फैसला सुनाया कि ऐसे जनप्रतिनिधि जिन्हें कोर्ट से दो या इससे ज़्यादा साल की सज़ा मिलती है, उनकी विधायकी और सांसदी तत्काल रूप से रद्द हो जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद ही यूपीए सरकार ने ऑर्डिनेंस पेश करते हुए जनप्रतिनिधित्व कानून 1952 की धारा 8 (4) को बरकरार रखने की कोशिश की थी। लेकिन राहुल गांधी के विरोध और उस ऑर्डिनेंस की कॉपी को फाड़ने के बाद यूपीए सरकार को इस ऑर्डिनेंस को वापिस लेना पड़ा और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार जनप्रतिनिधित्व कानून 1952 की धारा 8 (4) असंवैधानिक रही।

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