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हर साल रामनवमी पर रामलला का तिलक करेंगे सूर्यदेव, छह मिनट का होगा अद्भुत दर्शन

Ram Mandir : नवनिर्मित भव्य राम मंदिर में वैज्ञानिकों ने अनोखा 'सूर्यतिलक' सिस्टम बनाया। हर साल भगवान के जन्मदिन रामनवमी पर सूर्यदेव रामलला के भाल पर तिलक करेंगे।

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Ram Mandir Surya Tilak: नवनिर्मित भव्य राम मंदिर में हर साल भगवान के जन्मदिन रामनवमी पर सूर्यदेव रामलला के भाल पर तिलक करेंगे। इस सूर्यतिलक के लिए वैज्ञानिकों ने खास उपकरण डिजाइन किया है। मिरर और लेंस से बनाए गए इस उपकरण से राम नवमी के दिन दोपहर में सूर्य की किरणें सीधे रामलला की मूर्ति के माथे पर पड़ेंगी। रूड़की स्थित सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआई ) के डायरेक्टर डॉ प्रदीप कुमार रामनचरला के अनुसार गर्भ गृह और ग्राउंड फ्लोर में लगाए जाने वाले उपकरण बन चुके हैं। एक गियरबॉक्स, रिफ्लेक्टिव मिरर और लेंस की व्यवस्था इस तरह की गई है कि मंदिर के शिखर के पास तीसरी मंजिल से सूर्य की किरणों को गर्भ गृह तक लाया जाएगा। इसमें सूर्य के पथ बदलने के सिद्धांतों का उपयोग किया जाएगा।


वैज्ञानिकों ने बनाया 'सूर्यतिलक' सिस्टम

इसमें बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (आइआइए ) से तकनीकी मदद ली गई है। राम नवमी की तारीख चंद्र कैलेंडर से निर्धारित होती है। शुभ अभिषेक निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हो, इसके लिए 19 गियर-बेस्ड सूर्य तिलक मैकेनिज्म में बिजली, बैटरी या लोहे का उपयोग नहीं किया गया है। पेरिस्कोप जैसी डिवाइस से बंद गर्भ गृह में सूरज की किरणें लाने के लिए तकनीकी कौशल का उपयोग किया गया है।

छह मिनट का होगा अद्भुत दर्शन

हर साल भगवान राम के जन्मदिन पर रामलला के माथे पर विशेष 'सूर्य तिलक' लगाया जाएगा।
12 बजे दोपहर में राम नवमी के दिन सूर्य की किरणें सीधे 'रामलला' की मूर्ति के माथे पर पड़ेंगी।
6 मिनट तक सूर्य की किरणें भगवान राम की मूर्ति के माथे पर पड़ेंगी।
100 प्रतिशत सूर्यतिलक तकनीक से होगा।

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ऐसे होगा सूर्यतिलक

- मंदिर के शिखर के पास तीसरी मंजिल से सूर्य की किरणों को गर्भ गृह तक लाया जाएगा।
- तीसरी मंजिल पर स्थापित किए जाने वाले ऑप्टोमैकेनिकल सिस्टम में हाई क्वालिटी मिरर (एम1 और एम2), एक लेंस (एल1) और विशिष्ट कोणों पर लगे लेंस (एल2 और एल3) के साथ वर्टिकल पाइप शामिल हैं।
- ग्राउंड फ्लोर पर दर्पण (एम3 और एम4) और एक लेंस (एल4) है।
- सूरज की रोशनी एम1 पर पड़ती है और एल1, एम2, एल1, एल2, एम3 (गर्भगृह के बाहर स्थापित) से होकर गुजरती है और अंत में एम4 पर जाती है, जिससे मूर्ति के माथे पर सूर्यकिरण से 'तिलक' लगेगा।

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