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Shivraj Patil Passed Away: शिवराज पाटिल ने दिया था सांसदों को ये बेशकीमती तोहफा

देश के पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री और पूर्व लोकसभा स्पीकर शिवराज पाटिल का शुक्रवार को निधन हो गया। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान सांसदों को बेशकीमती तोहफा दिया था। जानिए इसकी पूरी कहानी...

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Shivraj Patil passes away

पूर्व गृह मंत्री शिवराज पाटिल। (फाइल फोटो- IANS)

Shivraj Patil passed away: शिवराज पाटिल ने लोकसभा के स्पीकर के रूप में संसद भवन परिसर में एक समृद्ध लाइब्रेरी देकर वास्तव में बहुत बड़ा उपकार किया। यह लाइब्रेरी शिवराज पाटिल के लोकसभा के स्पीकर (1991-1996) के दौर की खास उपलब्धि मानी जाएगी। संसद भवन परिसर में लाइब्रेयरी की परियोजना की प्रतियोगिता 1991 में हुई और प्रसिद्ध वास्तुकार राज रेवाल को विजेता घोषित किया गया। इस प्रतियोगिता पर शिवराज पाटिल खुद नजर रखे रहे थे। हालांकि निर्माण कार्य 2003 तक पूरा हुआ और उद्घाटन 7 मई 2002 को राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा किया गया, लेकिन इसकी नींव और डिजाइन चयन पाटिल के नेतृत्व में रखी गई।

वास्तुकली की दृष्टि से मील का पत्थर

बेशक, संसद भवन लाइब्रेरी की इमारत वास्तुकला की दृष्टि से एक मील का पत्थर है, बल्कि सांसदों को उनके दैनिक कार्यों में असीमित लाभ प्रदान करती है। राज रेवाल का डिजाइन दर्शन भारतीय परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संयोजन है। उन्होंने इस भवन को 'ज्ञान के घर' के रूप में कल्पित किया, जो संसद भवन की 'शक्ति' को पूरक बनाता है। उन्होंने एक बार बताया था कि संसद भवन लाइब्रेयरी का डिजाइन करते वक्त उन्हें कुछ प्राचीन मंदिरों के डिजाइन से प्रेरणा मिली। वे उस दौर में शिवराज पाटिल से सलाह-मशविरा करते रहते थे।

लाइब्रेरी भवन 55 हजार वर्ग मीटर में फैला हुआ

संसद भवन लाइब्रेरी भवन का क्षेत्रफल 55,000 वर्ग मीटर है। इसकी ऊंचाई पुराने संसद भवन के पोडियम स्तर तक ही सीमित रखी गई है, ताकि मूल संसद भवन की भव्यता प्रभावित न हो। केवल गुंबद ऊपर उभरते हैं। शिवराज पाटिल की सलाह पर इसकी बाहरी दीवारें लाल बलुओ पत्थर से ढकी हैं, जो आसपास के औपनिवेशिक भवनों से मेल खाती हैं। ज्यामितीय जाली पैटर्न प्राचीन भारतीय वास्तुकला की याद दिलाते हैं।

लाइब्रेरी सांसदों के लिए ज्ञान का भंडार

भाजपा के पूर्व जगमोहन कहते थे कि संसद भवन लाइब्रेरी सांसदों के लिए ज्ञान का एक विशाल भंडार है, जो उनके विधायी कार्यों को मजबूत बनाती है। डिजिटल लाइब्रेरी में मल्टीमीडिया और सैटेलाइट लिंक सुविधाएं हैं, जो सांसदों को वैश्विक सूचनाओं तक तत्काल पहुंच प्रदान करती हैं। उदाहरण के लिए, कोई सांसद पर्यावरण नीति पर बहस की तैयारी कर रहा हो, तो वह यहां से डेटा, रिपोर्ट और वीडियो सामग्री प्राप्त कर सकता है। स्कॉलर लाइब्रेरी सबसे बड़ा अध्ययन क्षेत्र है, जहां शांत वातावरण में गहन रिसर्च संभव है। गुंबदों से आने वाली प्राकृतिक रोशनी थकान कम करती है और एकाग्रता बढ़ाती है। खुशवंत सिंह, कुलदीप नैयर, प्रणव कुमार मुखर्जी सैयद शहाबुद्दीन वगैरह यहां पर सांसद ना रहने के बाद भी घंटों आकर बैठा करते थे।

सांसदों संग करते थे अनौपचारिक चर्चाएं

शिवराज पाटिल जब भी राजधानी आते तो वे संसद भवन लाइब्रेरी में आकर अवश्य अध्ययन करते थे। यहां सांसद अनौपचारिक चर्चाएं कर सकते हैं, जो विधेयकों पर आम सहमति बनाने में मदद करता है। एम्फीथिएटर में सेमिनार और व्याख्यान आयोजित होते हैं, जो सांसदों को विशेषज्ञों से सीखने का अवसर देते हैं। शिवराज पाटिल यहां के स्टाफ को बताते भी थे कि उन्हें कौन-कौन सी किताबें रखनी चाहिए। वे जब देश के गृह मंत्री थे तब वे यहां पर घंटों बैठकर अध्ययन करते थे। संसद में किसी विषय पर जब उन्हें अपना वक्तव्य देना होता ते यहां पर देर रात तक बैठकर काम करते थे।

राज रेवाल का यह डिजाइन न केवल वास्तुकला की कृति है, बल्कि एक कार्यात्मक संरचना जो भारतीय लोकतंत्र की सेवा करती है। शिवराज पाटिल के कार्यकाल में शुरू हुई यह परियोजना आज सांसदों के लिए एक अमूल्य संपदा है, जो ज्ञान, सहयोग और दक्षता को बढ़ावा देती है। ऐसे में, यह भवन भारतीय वास्तुकला और संसदीय प्रक्रिया का एक आदर्श उदाहरण है।

बता दें कि राज रावेल ने सबसे पहले वास्तुकला की दुनिया में अपनी उपस्थिति प्रगति मैदान के हॉल ऑफ़ नेशंस के डिजाइन से दर्ज कराई थी। उन्होंने तब हॉल ऑफ़ फेम और नेहरू केंद्र को डिजाइन किया था। वह साल था 1972। इस दोनों के आकर्षक डिजाइन ने तुरंत देखने वालों को आकर्षित किया था। निस्संदेह, राज रेवाल स्वतंत्र भारत की पहली पीढ़ी के सर्वश्रेष्ठ वास्तुकारों में से एक हैं। उन्होंने पहली बार हॉल ऑफ़ नेशंस और प्रगति मैदान में नेहरू केंद्र के अपने डिजाइनों से कला जगत का ध्यान अपनी ओर खींचा। दुख की बात है कि प्रगति मैदान के पुनर्विकास के हिस्से के रूप में दोनों को ध्वस्त कर दिया गया था।

आधुनिक विरासत के शक्तिशाली प्रतीक

ये राजधानी की आधुनिक विरासत के शक्तिशाली प्रतीक थे, और उनके विध्वंस ने वास्तुकार समुदाय और कला प्रेमियों का दिल तोड़ दिया। उनके डिजाइन न्यूयॉर्क और पेरिस के कला संग्रहालयों में प्रदर्शित किए गए थे।इन्हें ध्वस्त किए जाने पर रेवाल हुए थे। 91 साल के रेवाल को जब शिवराज पाटिल के निधन का समाचार मिला तो वे उदास हो गए। निश्चित रूप से इन दोनों ने भारत के संसद भवन को एक बेहद खास उपहार दिया है। महत्वपूर्ण है कि शिवराज पाटिल ने कभी यह क्रेडिट लेने की कोशिश नहीं की कि संसद भवन लाइब्रेरी के निर्माण में उनकी भी कोई भूमिका थी।