सिद्धू के खिलाफ पंजाब सरकार और पीड़ित परिवार की ओर से केस दर्ज करवाया गया था। लेकिन वर्ष1999 में सेशन कोर्ट से सिद्धू को राहत मिली और केस को खारिज कर दिया गया। यानी सिद्धू इस केस से बरी हो गए थे।
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सिद्धू के खिलाफ केस को खारिज करने को लेकर कोर्ट का कहना था कि आरोपी के खिलाफ पक्के सबूत नहीं हैं और ऐसे में सिर्फ शक के आधार पर केस नहीं चलाया जा सकता।
तीन साल बाद यानि वर्ष साल 2002 में पंजाब सरकार ने सिद्धू के खिलाफ एक बार फिर कदम उठाया। सरकार ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में अपील की। इसके बाद 1 दिसम्बर 2006 को हाईकोर्ट बेंच ने सिद्धू और उनके दोस्त को दोषी माना।
कोर्ट ने दोषी मानने के साथ ही 6 दिसम्बर को फैसला सुनाते हुए सिद्धू और उनके दोस्त रुपिंदर को 3-3 साल की सजा सुनाई। इसके साथ ही एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया।
इसके अलावा इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए 10 जनवरी 2007 तक का समय दिया गया। दोनों आरोपियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई और 11 जनवरी को चंडीगढ़ की कोर्ट में सरेंडर किया गया।
इसके बाद 12 जनवरी 2007 को सिद्धू और उनके दोस्त को शीर्ष अदालत से जमानत मिल गई। सर्वोच्च न्यायालय ने सजा पर रोक लगा दी। इसके बाद शिकायतकर्ता भी कोर्ट पहुंचे और सिद्धू को दोषी करार दिए जाने की मांग की।
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