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Supreme Court ने राष्ट्रपति के लिए समयसीमा की तय, कहा- 3 महीने के भीतर बिल पर लेना होगा फैसला

Supreme Court: कोर्ट ने माना कि राष्ट्रपति के लिए कोई समयसीमा संविधान में निर्धारित नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह अनिश्चितकाल तक निष्क्रिय रह सकते हैं।

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भारत

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Ashib Khan

Apr 12, 2025

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में राष्ट्रपति के लिए बिलों पर निर्णय लेने की समयसीमा तय की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपालों द्वारा भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। इसके साथ ही, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति के पास बिलों पर "पॉकेट वीटो" का अधिकार नहीं है, और उनके फैसलों की न्यायिक समीक्षा हो सकती है।

वेबसाइट पर अपलोड किया गया फैसला

जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने 8 अप्रैल को 415 पृष्ठों के फैसले में 10 विधेयकों को मंजूरी दी थी। फैसला करने के चार दिन बाद, 415 पृष्ठों का निर्णय शुक्रवार को रात 10.54 बजे शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया गया।

राष्ट्रपति को 3 महीने के अंदर निर्णय लेना आवश्यक

कोर्ट ने कहा कि हम गृह मंत्रालय द्वारा निर्धारित समयसीमा को अपनाना उचित समझते है और निर्धारित करते हैं कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा उनके विचार के लिए आरक्षित विधेयकों पर संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन महीने की अवधि के भीतर निर्णय लेना आवश्यक है।

देरी होने पर कारण करना होगा स्पष्ट

कोर्ट ने माना कि राष्ट्रपति के लिए कोई समयसीमा संविधान में निर्धारित नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह अनिश्चितकाल तक निष्क्रिय रह सकते हैं। अगर फैसला लेने में देरी होती है, तो इसका कारण भी स्पष्ट करना होगा। वहीं कोर्ट ने कहा कि निर्धारित समयसीमा के अंदर कोई कार्रवाई नहीं होती है तो संबंधित राज्य कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।

‘संविधान में समयसीमा तय नहीं’

कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 201 का जिक्र करते हुए कहा कि जब कोई विधेयक राष्ट्रपति के पास राज्यपाल भेजता है, तो उस विधेयक पर राष्ट्रपति को सहमति देनी होती है या फिर असहमति जतानी होती है। हालांकि संविधान में इस प्रक्रिया के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की गई है।

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राष्ट्रपति के निर्णय की जा सकती है समीक्षा

कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 201 के अनुसार राष्ट्रपति के निर्णय की न्यायिक समीक्षा भी की जा सकती है। अगर केंद्र सरकार के निर्णय को बिल में प्राथमिकता दी गई हो तो अदालत मनमानी के आधार पर बिल की समीक्षा करेगा।