
पूर्व सैनिक रमेश गणपत खरमाले ने बना दिए 70 जल ढांचे और ऑक्सीजन पार्क
Green Campaign: महाराष्ट्र के पुणे जिले के जुन्नर तालुका की तपती पहाड़ियों पर हर सप्ताहांत एक छोटी-सी फौजी टुकड़ी चढ़ाई करती है। यह टुकड़ी बमों या तोप-बंदूकों से नहीं, वरन फावड़े और कुदालों से लैस होती है। टुकड़ी की अगुवाई कर रहे होते हैं पूर्व सैनिक रमेश गणपत खरमाले और बाकी सिपाही होते हैं उनकी पत्नी स्वाति और दो बच्चे मयूरेश व वैष्णवी। शहर-कस्बों के बाकी परिवारों के लिए जहां सप्ताहांत सैर-सपाटे, घर से बाहर मौज-मस्ती का दिन होता हैं, वहीं खरमाले परिवार के लिए हर शनिवार-रविवार प्रकृति की सेवा और पर्यावरण संरक्षण अभियान के दिवस होते हैं, वह भी बिना वेतन व सुविधा के, पर एक अडिग संकल्प के साथ। रमेश 17 वर्षों तक सेना में सेवा के बाद घर लौटे तो बन गए पर्यावरणीय योद्धा। हरित अभियान का जुनून ऐसा कि अपने गांव धामनखेल के पास खांडोबा मंदिर की पहाड़ियों पर उन्होंने अपने जन्मदिन के उपलक्ष में 70 जल-संरक्षण खाइयां (बावड़ियां) खोद डालीं, जिनमें हर वर्ष 8 लाख लीटर वर्षा जल संग्रहित हो सकता है। इसके लिए उन्होंने परिवार सहित दो महीने तक रोज सुबह चार घंटे पहाड़ी पर खुदाई की। उनकी पत्नी स्वाति शिवाजी युगीन बावड़ियों से विनाशक खरपतवार हटाती हैं तो दोनों बच्चे धरा पर बीज छिटकाते हैं।
खरमाले ने जुन्नर के वडाज गांव में डेढ़ एकड़ बंजर जमीन पर ऑक्सीजन पार्क तैयार किया। इस पार्क में पीपल, महोगनी, नीम, वंशलता जैसे 200 से अधिक देशी वृक्ष रोपे गए हैं, चार छोटे तालाब बनाए गए हैं और पशुओं से रक्षा के लिए खाइयां खोदी गई हैं। पेड़ बड़े होने पर कभी का यह नीरव इलाका अब पक्षियों की चहचहाहट से गूंजता है।
रमेश का अभियान परिवार तक ही सीमित नहीं रह कर जन-जन की चेतना बने इसलिए खरमाले ठाणे, कोल्हापुर, बारामती सोलापुर, पुणे, सांगली जिलों के 400 से अधिक स्कूलों में अपने खर्चे पर जाकर पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता और जल-प्रबंधन पर संवाद कर चुके हैं। उनकी प्रेरणा से सैकड़ों छात्र वृक्षारोपण, बीजारोपण और कचरा मुक्त पर्यटन में भागीदारी कर रहे हैं। उनका यूट्यूब चैनल और सोशल मीडिया अकाउंट पर्यावरण के स्कूल बन चुके हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने मासिक रेडियो संवाद मन की बात की 123वीं कड़ी में रमेश खरमाले के प्रेरक कार्य का जिक्र करते हुए उनके अभियान को सराहा।
पर्यावरण के साथ-साथ खरमाले जुन्नर की सांस्कृतिक धरोहर के भी प्रहरी हैं। उन्होंने 12 भूमिगत मार्गों, सात प्राचीन गजलक्ष्मी मूर्तियों और ऐतिहासिक स्थलों को फिर से जनमानस से जोड़ा है।
रमेश की तपस्या को सम्मान भी मिला है। उन्हें ‘शिवनेरी भूषण’ पुरस्कार मिल चुका है। पुणे विश्वविद्यालय ने उनके जीवन पर 'कपल फॉर द एनवॉयरमेंट' डॉक्यूमेंट्री बनाई है, जिसे एनसीईआरटी के शिलांग सम्मेलन में सर्वश्रेष्ठ शैक्षणिक फिल्म चुना गया।
Updated on:
30 Jun 2025 09:39 am
Published on:
30 Jun 2025 09:22 am
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