
Subhash Chandra Bose
Subhash Chandra Bose: साल 1931 में अक्टूबर का महीना और 11 तारीख। सुभाष चंद्र बोस जूट मिल के मजदूरों को संबोधित करने जा रहे थे। बगावत की आग न भड़क जाए, इस डर से ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें रास्ते में ही रोक लिया। उन्हें पश्चिम बंगाल के उत्तर 24-परगना में नाओपाड़ा थाने में बिठाया गया। शाम का वक्त था। थाने के इंचार्ज ने बोस के लिए चाय की प्याली मंगवाई, लेकिन नेता जी ने उसे छुआ तक नहीं। वह कुछ घंटे उसी थाने में रहे। बाद में डीएम के दखल देने के बाद रात को उन्हें छोड़ा गया।
नाओपाड़ा पुलिस स्टेशन में कुछ घंटों के लिए सुभाष चन्द्र बोस का रुकना आज भी इस थाने में काम करने वालों के लिए गर्व का विषय है। वह कप-प्लेट, जिसमें नेता जी को चाय दी गई थी, आज भी यादगार के रूप में थाने में रखी हुई है। हर साल 23 जनवरी (नेता जी के जन्मदिन) को इस थाने में नेता जी की जयंती गर्व के साथ मनाई जाती है।
सुभाष चन्द्र बोस के पिता जानकी नाथ बोस वकील थे। 14 भाई-बहनों में सुभाष का नंबर नौवां था। 1909 में वह आरएस कॉलेजियट स्कूल में पढ़ने गए। 1993 में वहां से मैट्रिक की परीक्षा सेकंड डिविजन से पास करने के बाद वह प्रेसीडेंसी कॉलेज गए। वहां एक प्रोफेसर ओटेन हुआ करते थे। एक बार उन्होंने कोई भारत विरोधी बात कह दी। सुभाष को यह नागवार गुजरा। उन्होंने प्रोफेसर पर हमला बोल दिया। इसकी कीमत उन्हें कॉलेज से निष्कासित होकर चुकानी पड़ी। बाद में वह स्कॉटिश चर्च कॉलेज गए और वहीं से 1918 में तर्कशास्त्र से बीए किया।
1941 में जब विश्व युद्ध शुरू हुआ तो सुभाष चन्द्र बोस 40 दिन तक ‘कैद’ रहे थे। उन पर पहरा लगा दिया गया था। 40 दिन तक वह किसी से नहीं मिले थे। लेकिन, 41वें दिन आधी रात के वक्त मौलवी का वेश धर कर वह भाग गए थे। उन्होंने अपना छद्म नाम ऑरलेंडो मजोटा रखा और इतालवी कूटनयिक पासपोर्ट के जरिए जर्मनी पहुंच गए। बर्लिन में ही उन्होंने पहली बार इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) की स्थापना की थी। इस सेना में ब्रिटिश फौज के लिए लड़ने वाले वे भारतीय सैनिक थे जिन्हें युद्धबंदी बनाया गया था।
जनवरी 1902 में जब सुभाष चन्द्र बोस का स्कूल में दाखिला हुआ तो वह काफी खुश थे। लेकिन पहले ही दिन उनके साथ हादसा हो गया। स्कूल ले जाने के लिए गाड़ी आई तो वह बैठने के लिए दौड़े। इस दौरान गिर कर चोटिल हो गए और स्कूल नहीं जा सके। उनका सारा उत्साह, सारी खुशी निराशा में बदल गई। बोस ने अपनी आत्मकथा ‘द इंडियन पिल्ग्रिम’ में स्कूल का एक और किस्सा दर्ज किया है। यह उनकी अंग्रेजी से जुड़ा है। उनका स्कूल मिशनरी स्कूल था। लेकिन जब वह स्कूल गए थे तो उन्हें अंग्रेजी के अक्षर छोड़, और कुछ नहीं आता था। वह अंग्रेजीमें एक भी शब्द बोल नहीं सकते थे। एक दिलचस्प किस्सा बताते हुए उन्होंने लिखा है कि उन्हें स्लेट-पेंसिल दी गई। कहा गया कि लिखने से पहले स्लेट को चमका लें। सुभाष के एक चाचा भी उनकी ही क्लास में पढ़ते थे। उन्होंने चाचा से अच्छी अपनी स्लेट चमकाई और टीचर को खुशी से बताते हुए कहा- ‘Ramedra mot I shor’। यह कह कर उन्होंने सोचा कि अंग्रेजी बोली है। हालांकि बाद में उनकी अंग्रेजी इतनी अच्छी हो गई थी कि वह अंग्रेजी लेखन की लगभग हर प्रतियोगिता में अव्वल आया करते थे।
सुभाष चन्द्र बोस ने एक बार एक निबंध लेखन प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था। तब वह स्कूल में थे। निबंध किंग जॉर्ज पंचम के राज्यारोहण पर लिखना था। आम तौर पर ऐसी प्रतियोगिताओं में फ़र्स्ट आने वाले बोस इस प्रतियोगिता में पिछड़ गए थे। अपनी आत्मकथा में उन्होंने इसकी वजह बताई है। उनका कहना है कि उस उम्र तक उनके अंदर राजनीतिक समझ नहीं बनी थी, जिस वजह से ऐसा हुआ। राजनीतिक विषयों की ओर उनका रुझान कैसे बढ़ा यह बताते हुए उन्होंने इस घटना का जिक्र किया है। बोस ने लिखा है- दिसंबर 1911 तक मैं राजनीतिक रूप से इतना अपरिपक्व था कि किंग जॉर्ज पंचम के राज्यारोहण से जुड़ी निबंध प्रतियोगतिया में ईनाम नहीं पा सका। क्रिसमस की छुट्टी में परिवार के साथ मैं कलकत्ता गया। उस दौरान किंग जॉर्ज पंचम कलकाता आए थे। वहां से लौटने के बाद उनका मानसिक स्तर काफी ऊपर हो गया था। फिर 1912 में एक हमउम्र के संपर्क में आने के बाद उनका राजनीतिक और सामाझिक मुद्दों की तरफ रुझान और बढ़ने लगा था।
Updated on:
26 Jan 2025 08:33 am
Published on:
26 Jan 2025 07:18 am
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