
कबाड़ में से खड़ा किया ३ हजार से अधिक पुस्तकों का खजाना।
मुकेश सहारिया, नीमच. व्यवसाय कोई छोटा बड़ा नहीं होता। एक शिक्षित व्यक्तिबाड़ में से भी खजाना ढूंढ लेता है। ऐसे हैं नीमच के हरीश मंगल। वर्षों से कबाड़ का व्यवसाय कर रहे हैं। आज उनके पास कबाड़ से संग्रहित करीब 3 हजार से अधिक पुस्तकों का साहित्यिक खजाना है। कबाड़ ने उन्हें साहित्य के अनमोल खजाने का मालिक बना दिया है। नीमच के इतिहास से जुड़ी दुर्लभ पुस्तकें भी उनके संग्रह में शामिल है।
नीमच में 122 साल पहले छपी थी पहली पुस्तक
मंगल के अनमोल संग्रह में वर्ष 1909 में प्रकाशित ‘हिस्ट्री ऑफ मेवाड़’ पुस्तक भी है। नीमच के इतिहास से जुड़ी सबसे दुर्भल पुस्तक जो वर्ष 1901 में नीमच से प्रकाशित हुई थी वो भी उनके संग्रह में है। इस पुस्तक का नाम था नवीन सदाबहार। यह पुस्तक छपी भी नीमच में ही थी। उपलब्ध दस्तावेजों के मान से यह पुस्तक नीमच में छपी पहली पुस्तक है जो यहीं से प्रकाशित हुई थी। मुल्तानमल प्रिटिंग प्रेस छावनी नीमच से यह पुस्तक मुद्रित हुई थी। पुस्तक के आवरण पृष्ठ पर बाबू दीपचंद जैन मैनेजर अंकित है। यह पुस्तक अनजान व्यक्ति रद्दी के भाव उन्हें बेच गया था। पुस्तक की स्थिति देख कोई नहीं कह सकता कि यह 122 वर्ष पुरानी होगी। उसका एक-एक पृष्ट अच्छी स्थिति में है। उसमें लिखी हर पंक्ति आसानी से पढ़ी जा सकती है। पुस्तक में विभिन्न प्रकार की गजलें, गीत, भजन, लावणी सहित अनेक कविताओं का समावेश किया गया है। पुस्तक में कुल 150 पृष्ठ है और पुस्तक आज भी पढऩे लायक स्थिति में है।
125 वर्ष से अधिक पुरानी पांडुलीपियां
हरीश के पास संग्रहित साहित्य के खजाने में करीब 1२५ वर्ष से अधिक पुरानी कुल 32 हस्तलिखित पांडुलिपियां हैं। सभी पांडुलिपियां बरू की मदद से साफ अक्षरों में लिखी गई हैं। अधिकांश पांडुलिपियों में मालवी और मारवाड़ी भाषा का समावेश मिलता है। कुछ पांडुलिपियां संस्कृत में भी लिखी हुई हैं। इनका मोल कोई नहीं निकाल सकता। आश्चर्य यह कि सभी पांडुलिपियां कबाड़ में रद्दी के भाव मिली। जिन्हें उन्होंने साहित्य के खजाने में शामिल कर लिया। हरीश ने अपने घर में एक कमरे में अनमोल खजाना संग्रहित कर रखा है। इस खजाने का मोल केवल साहित्यकार व इतिहासकार ही निकाल सकते हैं। कोई इन्हें चुरा नहीं सकता। खजाने में करीब 3 हजार से अधिक पुस्तकें जिनमें उपन्यास, नाटक, कहानी संग्रह, व्यंग, कविता संग्रह, निबंध, ख्यात लोगों की जीवनियां, बाल साहित्य आदि शामिल हैं। खजाने में भारत सहित विश्व के कई ख्यातनाम साहित्यकारों की पुस्तकें जिनमें प्रेमचंद, टॉल्सटॉय, जयशंकर प्रसाद, मैथिलीशरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, ओशो, रामधारीसिंह दिनकर, बालकवि बैरागी, भीष्मसाहनी, अमृता प्रीतम इत्यादि साहित्यकारों की अनमोल कृति शामिल हैं। संग्रह में हिन्दी के अतिरिक्त संस्कृत एवं अंग्रेजी भाषा का साहित्य भी है। प्रेमचंद के लभगभ सभी उपन्यास भी मंगल के खजाने में हैं। पुस्तक संग्रह में मंगल के पास गीता का मारवाड़ी अनुवाद भी है। करीब 55 वर्ष पुरानी इस पुस्तक में गीता के सभी श्लोकों का मारवाड़ी अनुवाद किया गया है। इसकी व्याख्या भी मारवाड़ी में बड़ी ही कुशलता से की गई है। इसमें वर्तनी की कही भी त्रुटि नजर नहीं आती।
सूरसागर की प्रथम आवृत्ति
सूरदास का प्रसिद्ध गं्रथ सूरसागर काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने पहली बार वर्ष 1947 में प्रकाशित किया था। इससे पूर्व सूरसागर केवल हस्तलिखित पुस्तक के रूप में ही उपलब्ध था। मंगल के पास संग्रहित पुस्तकों में सूरसागर की यही प्रथम आवृत्ति भी शामिल है। जो दो खंडों में उपलब्ध है। अच्छी व पढऩे योग्य स्थिति में है। इस पुस्तक को प्रसिद्ध साहित्यकार आचार्य नंददुलारे वाजपेयी ने संपादित किया है। 3 हजार पुस्तकों के संग्रह में दो पुस्तकें या यूं कहें शब्दकोष भी ऐसे हैं जो ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। एक शब्दकोष इंग्लैंड में तो दूसरा अमेरिका में छपा था। इंग्लैंड में छपा शब्दकोष वर्ष 1937 में प्रकाशित हुआ था। इस मान से 86 वर्ष पुराना है। इस शब्दकोष में कई शब्दों का सचित्र अर्थ लिखा हुआ है। इसी प्रकार अमेरिका में प्रकाशित शब्दकोष लगभग 59 वर्ष पुराना है। इस शब्दकोष में अंग्रेजी के कुछ चुनिंदा शब्दों का 21 विदेशी भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
रद्दी में देने के बजाय सुपात्र को दें
पुस्तकें हैं तो उन्हें पढ़ें। रद्दी में देने की बजाय किसी सुपात्र को दान करें। पुस्तकों में दर्ज पुराने ज्ञान को न व्यर्थ जाने दें और न ही नष्ट होने दें। मेरे यहां कबाड़ में आई पुस्तकों से मैंने 3 हजार से अधिक पुस्तकों का संग्रहण किया है। शहर में कई कबाड़ की दुकानें हैं। अब अंदाजा लगा लें कि कितना साहित्य यूं की कबाड़ में रद्दी के भाव बिक गया। साहित्य का मोल पहचानें। संग्रहित करें या उसका मूल समझने वाले को दान कर दें।
- हरीश मंगल, संस्कृत भारती के जिला संयोजक
Published on:
20 Jul 2023 12:13 pm
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