
शासकीय महात्मा गांधी महाविद्यालय में विद्यार्थियों को मधुमक्खी पालन की जानकारी देते हुए धाकड़।
नीमच. शासकीय महात्मा गांधी महाविद्यालय में परियोजना कार्य 'मधुमक्खी पालनÓ पर एक व्याख्यान का आयोजन रखा गया। इसमें बी-लव प्रोडक्ट के संचालक केलुखेड़ा वाले अनिल धाकड़ ने विस्तार में मधुमक्खी पालन के बारे में जानकारी दी।
चार प्रकार की पाली जाती हैं मधुमक्खियां
व्याख्यान में महाविद्यालय के विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित हुए। उन्होंने मधुमक्खी पालन के बारे में जानकारी प्राप्त कर उन्हें कैसे पाला जा सकता है इस बारे में सीखा। इस दौरान महाविद्यालय के प्राचार्य डा. डीएल अहीर, वरिष्ठ प्राध्यापक डा. एनके पाटीदार, डा. आरसी मेघवाल, डा. जेके मांदलिया, आयोजक संध्या डूंगरवाल, भारती तिवारी, समस्त महाविद्यालयीन स्टॉफ आदि उपस्थित रहे। संचालन भारती तिवारी के ने किया। आभार संध्या डूंगरवाल ने माना। धाकड़ ने बताया कि मधुमक्खी चार प्रकार की होती है। एपीस मेलीफेरा, जिसे मध्यप्रदेश और राजस्थान क्षेत्र में सबसे अधिक पाला जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि यह मधुमक्खी ठंड एवं गर्मी के तापमान को सहन करने की क्षमता रखती है। यह साइज में बड़ी होने कारण उत्पादन बहुत ही ज्यादा करती है। दूसरी एपीस डोरसटा, यह मधुमक्खी बहुत ही उग्र स्वभाव की होती है और इस के छत्ते की साइज एक मीटर के लगभग होती है। इसे उग्र स्वभाव के कारण नहीं डाला जा सकता क्योंकि यह एक मधुमक्खी को नुकसान होने पर भी सभी मधुमक्खियां झुंड के साथ आदमी पर हमला कर देती है जिससे आदमी की जान भी जा सकती है। तीसरी एपीस फ्लोरिया, यह मधुमक्खी छोटी छोटी झाडयि़ों में पाई जाती है और इससे शहद उत्पादन बहुत ही कम मात्रा में होता है इसलिए इसे कम पाला जाता है। चौथी एपीस सिराना, यह मधुमक्खी ठंडे प्रदेशों में पाई जाती है और मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे क्षेत्रों में गर्मी सहन करने की क्षमता इसमें नहीं होती है, इसलिए इसे मध्य प्रदेश व राजस्थान में नहीं पाला जाता है।
धरती के तीन चक्कर लगाने के बाद बनता है एक किलो शहद
धाकड़ ने विद्यार्थियों को बताया कि एक किलो ग्राम शहद बनाने के लिए मधुमक्खी को 90 हजार मील यानि धरती के तीन बार चक्कर लगाने के बराबर उडऩा पड़ता है, तब जाकर एक किलो शहद तैयार हो पाता है। मधुमक्खियां 25 से 30 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकती हैं। मधुमक्खियों की एक कॉलोनी में 50 हजार से 60 हजार मधुमक्खियां होती हैं जिनमे से एक रानी मधुमक्खी होती है। शहद निकालने के लिए मधुमक्खी को एक बार में 50 से 100 फूलों पर मंडरा कर रस निकालना होता है। ये नृत्य के जरिये आपस में बातचीत करती हैं। रानी मधुमक्खी की उम्र 5 साल तक होती है और यह एक मात्र मधुमक्खी है जो अंडे देती है। गर्मी के दिनों में एक रानी मधुमक्खी हर दिन 2500 अंडे देती है। पुरुष मधुमक्खियों का आकार काम करने वाली मक्खियों से बड़ा होता है, लेकिन इनके पास डंक नहीं होते और ये काम भी नहीं करते हैं। आयुर्वेद चिकित्सा में शहद को एक उत्तम औषधि माना गया है। यह गले की खराश, पाचन सम्बन्धी समस्याएं और त्वचा रोगों में अत्यधिक लाभकारी होता है। इसमें एंटीसेप्टिक के गुण पाए जाते हैं इसलिए इसका उपयोग जलने-कटने, और घावों को भरने में किया जाता है। मधुमक्खी के डंक के जहर का उपयोग कई बीमारियों के उपचार के रूप में किया जाता है, जिसमें गठिया और उच्च रक्तचाप शामिल हैं। शहद एकमात्र ऐसा खाद्य पदार्थ है जिसमें जीवन को बनाए रखने के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व पाए जाते हैं। शहद का रंग जितना गहरा होगा, उसमें एंटीऑक्सिडेंट गुणों की मात्रा उतनी ही अधिक होगी। मधुमक्खियां प्रति सेकंड 200 बार अपने पंखों को फडफ़ड़ाती हैं। मधुमक्खी एक बार डंक मारने के बाद मर जाती है। मधुमक्खी के शरीर में 2 पेट होते हैं। एक खाने के लिए और एक फूलों का रस एकत्रित करने के लिए। एक मधुमक्खी अपने पूरे जीवनकाल में केवल 1/12 चम्मच शहद का ही उत्पादन करती है। एक छत्ते में हर साल लगभग 25 से 45 किलो शहद का उत्पादन होता है। मधुमक्खी शहद को पहले ही पचा देती है इसलिए जब उसका (शहद का) सेवन किया जाता है तो मात्र 20 मिनट में ही शहद अपना असर दिखाना शुरू कर देता है। मधुमक्खी 24 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ती है और एक सेकंड में 200 बार और एक मिनट में करीब 12 हजार बार पंख हिलाती है।
Published on:
10 May 2022 12:08 am
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