
उदय मुनि महाराज
नीमच। संसार और परिवार की मोह माया के त्याग बिना मुक्ति का मार्ग नहीं मिलता है। परिवार के प्रति मोह ममता रहती है तो संयम जीवन का पालन नहीं होता है ।मां की ममता का भाव यदि दीक्षा के मध्य में एक पल भी रुक जाए तो मोक्ष नहीं हो सकता है ।संसार के भोग पाप का माध्यम है लेकिन फिर भी जीवन पर्यंत लोग पाप के भोग के रुचि को कम नहीं करते हैं चिंतन का विषय है।
यह बात प्रज्ञा महर्षि ज्ञान निधि पंडित रत्न उदय मुनि महाराज ने कही।वे वर्धमान जैन स्थानक भवन में मंगलवार सुबह धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मनुष्य सपने भी भोग विलासिता के ही देखता है। आत्म कल्याण और मोक्ष मार्ग के नहीं चिंता का विषय है क्योंकि भोग विलास राग द्वेष को बढ़ाते हैं और राग द्वेष के त्याग बिना आत्मा कल्याण नहीं होता है। वस्तु का त्याग ही मनुष्य को संयम का मार्ग दिखाता है। मनुष्य पांच इंद्रियों के भाव के कारण कर्म करता है और पाप में डूबता जाता है। मनुष्य निरंतर पाप कर्म में उलझ रहा है। पुण्य का फल अलग होता है ।पाप का फल दुर्गति होती है। पुण्य पाप के फल को थोड़ा कम कर सकता है मिटा नहीं सकता। चक्रवर्ती राजा को भी पाप कर्मों का फल सजा भोगना पड़ी थी ।मृत्यु के बाद करोड़ों के बंगले मकान यहीं रह जाएंगे साथ जाएगा तो सिर्फ पुण्य और पाप। हमें विचार करना चाहिए कि हम पाप और पुण्य में अंतर करना सीखें लोग रसेंद्रीय के पीछे वासना का कारण बढ़ाते है। स्वाद आहार का त्याग किया बिना आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता, 48 मिनट की तपस्या भी केवल ज्ञान का मार्ग प्रशस्त सकती है लेकिन लक्ष्य निर्धारित और शुद्ध होना चाहिए। परिवार और गृहस्थ में कार्य करते करते भी केवल ज्ञान को पा सकते हैं लेकिन लक्ष्य पवित्र होना चाहिए। पुण्य उदय से पुरुषार्थ हो तो फल मिलता है ।कोई भी पिता-पुत्र को कुछ भी प्रदान नहीं करता है। यह वह सब उसके पुण्य पुरुषार्थ का ही फल होता है कि बेटा अपने अपने कार्य क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। पुण्य का उदय होता है। बुरा होता है तो भाग्य को दोष देते हैं अच्छा होता है तो पुण्य का होता है। पाप कर्म से बुरा ही होता है। पुण्य कर्म सदैव अच्छा ही अच्छा करता है ।मनुष्य घाणी के बैल की तरह निरंतर संघर्ष कर रहा है लेकिन अपने आत्मा के कल्याण के लिए सजग नहीं है चिंता का विषय है
Published on:
31 May 2022 11:36 pm
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