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भिखारियों पर नेशनल डेटाबेस तैयार करने के लिए केंद्र ने कसी कमर, कानूनों को खत्म करने पर जोर

भिखारियों और ट्रांसजेंडरों के पुनर्वास के लिए राष्ट्रीय योजना की शुरुआत में मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस ने "भिखारी के अपराधीकरण" पर जोर दिया।

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Centre gearing up to create national database on beggars

Centre gearing up to create national database on beggars

केंद्र सरकार ने अब बिखरियों पर एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। इसके लिए केंद्र नगर पालिकाओं द्वारा संचालित राज्य-स्तरीय सर्वेक्षणों के माध्यम से भिखारियों के आँकड़े एकत्रित करेगी। शनिवार को भिखारियों और ट्रांसजेंडरों के पुनर्वास के लिए राष्ट्रीय योजना की शुरुआत में मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस ने "भिखारी के अपराधीकरण" पर जोर दिया। केंद्र सरकार मौजूदा राज्य कानूनों को खत्म करने के लिए एक केन्द्रीय कानूनों की आवश्यकता पर भी फोकस कर रही है। सरकार का उद्देश्य भिखारियों को मुख्यधारा से जोड़ना है।

कानून में परिवर्तन पर जोर

वास्तव में भीख मांगना राज्य का विषय है और वर्तमान में इसके नियंत्रण के लिए कोई केन्द्रीय कानून नहीं है। करीब 20 राज्यों में कुछ ऐसे कानून हैं जो भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में रखते हैं। अधिकांश राज्यों में ये कानून बॉम्बे प्रीवेन्शन ऑफ बेगिंग ऐक्ट, 1959 पर आधारित हैं। ऐसे में मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस भीख मांगने को अपराधीकारण के दायरे में रखने वाले राज्य अधिनियमों में आवश्यक परिवर्तन करने पर भी विचार कर रही है।

केंद्र सरकार लेकर या रही योजना

केंद्रीय योजना 'SMILE (सपोर्ट फार मार्जिनलाईज्ड इनडिविजुअल्स फार लाइवलीहुड एंड इंटरप्राइज) शुरू हो रही है और मानकीकृत सर्वेक्षण प्रारूप नगरपालिकाओं को भीख मांगने में शामिल लोगों की पहचान करने में सक्षम बनाने के लिए तैयार है।

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स्माइल योजना से क्या होगा?

स्माइल योजना के तहत भिखारियों और भिक्षावृत्ति में लगे लोगों का पूरी तरह से पुनर्वास किया जाएगा। इसके अलावा अगले 10 साल तक उनके खाने-पीने, रहने, स्वास्थ्य, पढ़ाई और स्किल ट्रेनिंग का पूरा खर्चा भी मंत्रालय उठाएगा।

भिखारियों के पुनर्वास पर जोर

मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस भिखारियों के पुनर्वास के लिए केंद्रीय कानून पर जोर देने की योजना बना रहा है। इसका उद्देश्य भीख मांगने वाले लोगों को मुख्यधारा से जोड़ना है। इस पर एक ड्राफ्ट बिल मंत्रालय द्वारा पहले कैबिनेट को भेजा जा चुका है।

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क्या कहते हैं आँकड़े?

संसद में पेश किये गए आंकड़ों के अनुसार, सबसे कम भिखारी लक्षद्वीप में हैं जोकि केवल दो है। पूर्वोत्तर राज्यों में भी इनकी संख्या काफी कम है।

अरुणाचल प्रदेश में 114, नगालैंड में 124 और मिजोरम में केवल 53 भिखारी ही थे, जबकि संघ शासित प्रदेश दमन और दीव में 22 भिखारी थे।

वहीं, उत्तर प्रदेश में भिखारियों की कुल संख्या 65,838 भिखारी थी, इनमें 41,859 पुरुष और 23,976 महिलाएं थीं। वहीं बिहार में 29,723 भिखारी थे, जिनमें14,842 पुरुष और 14,881 महिलाएं थीं।

असम, मणिपुर और पश्चिम बंगाल में महिला भिखारियों की संख्या पुरुषों से अधिक पाई गई थी।