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यौन संबंध और धोखे का ऐसा मामला, जिसे सुनकर जज ने भी पकड़ लिया माथा, अंत में दुष्कर्म के आरोपी को..

Delhi High Court: जज ने युवती से पूछा कि क्या वह पहले से जानती थी कि आरोपी शादीशुदा है? पीड़िता ने इसका हां में जवाब दिया। इसके साथ ही उसने कहा कि आरोपी ने उसे शादी का झांसा दिया था।

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Delhi High Court dismisses all charges rape victim Girl acquits accused

दिल्‍ली हाईकोर्ट ने रेप के आरोपी को बरी कर दिया।

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट में शादीशुदा युवक और एक युवती के बीच यौन संबंध और धोखे का एक ऐसा मामला पहुंचा, जिसे सुनकर जज ने भी अपना माथा पकड़ लिया। मामले को पूरी तरह सुनने के बाद जज ने दुष्कर्म के आरोपी को बा-इज्जत बरी कर दिया। इसके साथ ही इस मामले पर गंभीर टिप्पणी भी की। अदालत ने कहा कि युवती ने आरोपी के साथ अपनी इच्छा से यौन संबंध बनाए। इस बात में कोई दम नहीं है कि आरोपी ने शादी के झूठे वादे के आधार पर उसके साथ दुष्कर्म किया। जब महिला को पहले से ही आरोपी की वैवाहिक स्थिति की जानकारी थी, तब झूठे वादे के बल पर यौन संबंध बनाने वाला तर्क स्वीकार करने योग्य नहीं है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले पर क्या कहा?

दिल्ली हाईकोर्ट में यह आदेश शुक्रवार को न्यायमूर्ति रजनीश कुमार गुप्ता ने सुनाया। उन्होंने कहा कि महिला के बयानों में विरोधाभास हैं, जो अभियोजन पक्ष के पूरे मामले को कमजोर बनाते हैं। जस्टिस गुप्ता ने कहा "ये विरोधाभास दर्शाते हैं कि अभियोजन पक्ष की गवाह-3 (महिला) ने कथित घटना के बारे में सच नहीं बोला है और यह अभियोजन पक्ष के मामले के गुण-दोष को प्रभावित करता है।" इसके साथ ही अदालत ने आरोपी को सभी आरोपों से बरी कर दिया। यह फैसला भविष्य के उन मामलों के लिए भी मिसाल पेश कर सकता है, जहां सहमति और शादी के झूठे वादे के बीच फर्क समझना जरूरी है।

महिला की सहमति और रिश्ते की सच्चाई

कोर्ट में हुई गवाही और जिरह के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि महिला आरोपी से घटना से लगभग एक साल पहले से परिचित थी। दोनों के बीच अक्सर बातचीत होती थी और धीरे-धीरे संबंध गहरे हो गए। महिला ने खुद स्वीकार किया कि वह छह महीने तक हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में आरोपी के साथ रही। इस दौरान वे साथ रहते थे और घरेलू गतिविधियों में शामिल होते थे। इसके अलावा युवती ने आरोपी को उसके काम बेंत की कुर्सियां बनाने में मदद भी करती थी।

कोर्ट ने युवती के सभी आरोप खारिज किए

कोर्ट ने माना कि इतने लंबे समय तक साथ रहने और संबंध बनाए रखने के बाद महिला का यह कहना कि उसे धोखा दिया गया, विश्वसनीय नहीं लगता। अदालत ने कहा, "यह तथ्य कि महिला छह महीने तक अपीलकर्ता के साथ रही और उस दौरान उसने कभी कोई चिंता या विरोध नहीं जताया, यह स्पष्ट करता है कि वह अपने फैसले और उसके परिणामों से पूरी तरह अवगत थी।"

विवाह की संभावना पर सवाल

अदालत ने अपने फैसले में यह भी रेखांकित किया कि महिला को अच्छी तरह पता था कि आरोपी पहले से शादीशुदा है और उसके बच्चे भी हैं। ऐसे में यह दावा करना कि उसने शादी के वादे पर संबंध बनाए, वास्तविकता से परे है। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि विवाह की संभावना ही नहीं थी, इसलिए यह मान लेना कि आरोपी ने शादी के बहाने उसे प्रलोभन दिया, सही नहीं होगा।

अभियोजन पक्ष का तर्क और अदालत की प्रतिक्रिया

अभियोजन पक्ष ने दलील दी थी कि आरोपी ने महिला को शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाए और बाद में वादा तोड़ दिया। लेकिन अदालत ने पाया कि यह दावा परिस्थितियों और महिला के खुद के बयानों से मेल नहीं खाता। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि ऐसे मामलों में सहमति की स्थिति का गहराई से आकलन करना आवश्यक है। अगर महिला को तथ्यों की पूरी जानकारी होते हुए भी उसने संबंध बनाए, तो इसे धोखाधड़ी या बलात्कार नहीं कहा जा सकता।

इस फैसले से यह संदेश गया है कि बलात्कार के मामलों में सहमति और परिस्थितियों की भूमिका बेहद अहम है। अदालत ने यह भी संकेत दिया कि केवल शादी का झूठा वादा बता देना हर मामले में बलात्कार साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा, खासकर तब जब महिला को आरोपी की वास्तविक स्थिति की जानकारी हो और वह लंबे समय तक उसके साथ स्वेच्छा से संबंध बनाए रखे।