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पति की प्रेमिका से पत्नी मांग सकती है हर्जाना…शादी को नुकसान पहुंचाने पर हाईकोर्ट का अहम फैसला

Delhi High Court: जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह अधिनियम सहित भारत के पारिवारिक कानून केवल पति-पत्नी और फैमिली कोर्ट की कार्यवाही तक सीमित हैं।

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Delhi High Court important decision on husband girlfriend causing harm to Wife marriage

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक प्रेमिका के चलते पति-पत्नी के रिश्ते में आई दरार को लेकर अहम टिप्पणी की।

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए कहा है कि यदि कोई तीसरा व्यक्ति जानबूझकर वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप करता है और उसकी वजह से पति-पत्नी का रिश्ता प्रभावित होता है, तो पीड़ित जीवनसाथी उस व्यक्ति पर हर्जाने का मुकदमा कर सकता है। अदालत का यह फैसला उस समय आया जब एक महिला ने अपने पति की कथित प्रेमिका पर चार करोड़ रुपये का दावा करते हुए शिकायत दर्ज कराई। उसने आरोप लगाया कि इस महिला की वजह से उसका वैवाहिक जीवन बर्बाद हुआ है।

क्या है 'एलियनएशन ऑफ अफेक्शन'?

‘एलियनएशन ऑफ अफेक्शन’ (Alienation of Affection) एक सिविल कानून से जुड़ा सिद्धांत है, जिसे ‘हार्ट बाम टॉर्ट’ भी कहा जाता है। इसका उद्भव पुरानी एंग्लो-अमेरिकन कॉमन लॉ व्यवस्था से हुआ है। इसके तहत यदि कोई तीसरा पक्ष पति-पत्नी के बीच के प्यार और स्नेह को खत्म करने या शादी तोड़ने का जिम्मेदार ठहराया जाता है, तो प्रभावित जीवनसाथी उस पर आर्थिक मुआवजे का दावा कर सकता है। हालांकि, भारत के किसी भी विवाह कानून में इस सिद्धांत को संहिताबद्ध (Codified) रूप से शामिल नहीं किया गया है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने की गंभीर टिप्पणी

जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह अधिनियम सहित भारत के पारिवारिक कानून केवल पति-पत्नी और फैमिली कोर्ट की कार्यवाही तक सीमित हैं। इनमें किसी तीसरे पक्ष के खिलाफ सीधे कार्रवाई का प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर वैवाहिक संबंध में दखल देता है और नुकसान पहुंचाता है, तो पीड़ित जीवनसाथी को सिविल कोर्ट में मुआवजे का दावा करने का अधिकार है।

अदालत ने यह भी कहा कि तलाक की कार्यवाही चल रही हो, तब भी अलग से हर्जाने का दावा सिविल कोर्ट में किया जा सकता है। जस्टिस कौरव ने टिप्पणी की, “किसी भी वैवाहिक कानून में तीसरे पक्ष के खिलाफ कानूनी उपचार का प्रावधान नहीं है। जब कोई वैधानिक रोक नहीं है, तो पीड़ित जीवनसाथी को यह अधिकार है कि वह तीसरे व्यक्ति के हस्तक्षेप से हुए नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति की मांग करे।”

अब जानिए पूरा मामला क्या है?

मामला एक ऐसे दंपति से जुड़ा है जिनकी शादी 2012 में हुई थी। 2018 में उन्हें जुड़वां बच्चे हुए। पति की कंपनी में एक महिला विश्लेषक (Analyst) के रूप में शामिल हुई और पति से नजदीकियां बढ़ाईं। पत्नी का आरोप है कि वह जानती थी कि उसका पति शादीशुदा है, फिर भी उसने संबंध बनाए। 2023 में पति ने क्रूरता (Cruelty) के आधार पर तलाक की अर्जी दी। इसके बाद पत्नी ने हाईकोर्ट का रुख किया और पति की प्रेमिका से 4 करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा।

पत्नी के वकील ने दी जबरदस्त दलीलें

पत्नी की ओर से वकील मालविका राजकोटिया ने दलील दी कि शादीशुदा जीवन में पत्नी का अपने पति के प्यार और साथ (Affection and Companionship) पर वैधानिक अधिकार है, जिसे जानबूझकर उससे छीन लिया गया। वहीं पति के वकील प्रभजीत जौहर ने कहा कि यह मुकदमा केवल तलाक की कार्यवाही के खिलाफ एक “जवाबी हमला” है। दूसरी ओर, प्रेमिका की ओर से वकील केसी जैन ने तर्क दिया कि वह महिला (पत्नी) उनसे कोई हर्जाना नहीं मांग सकती क्योंकि पति से संबंध रखना उनका कानूनी दायित्व नहीं था।

अदालत ने अंतरंगता और सहचर्य को संरक्षित हित बताया

हाईकोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि भले ही किसी व्यक्ति को अपनी निजी जिंदगी और रिश्तों को चुनने की स्वतंत्रता है, लेकिन यदि उसका आचरण किसी और की वैवाहिक जिंदगी को नुकसान पहुंचाता है तो इसके नागरिक परिणाम (Civil Consequences) हो सकते हैं। अदालत ने अमेरिकी न्यायविद वेस्ली न्यूकॉम्ब होहफेल्ड का हवाला देते हुए कहा कि यदि विवाह के साथ अंतरंगता और सहचर्य को एक संरक्षित हित माना जाता है तो तीसरे पक्ष पर यह दायित्व है कि वह उसमें जानबूझकर दखल न दे।

जानें फैसले का क्या होगा असर?

इस फैसले ने भारतीय न्याय व्यवस्था में एक नई बहस को जन्म दिया है। अब पति या पत्नी को यह अधिकार मिल सकता है कि वे अपने वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप करने वाले तीसरे व्यक्ति से क्षतिपूर्ति मांगें। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जहां जीवनसाथी की मर्जी से संबंध बने हों, वहां तीसरे पक्ष की देनदारी खत्म हो जाएगी। यह फैसला न केवल पीड़ित जीवनसाथियों को नया कानूनी रास्ता देता है, बल्कि समाज में वैवाहिक रिश्तों की गरिमा और पवित्रता को भी एक नया महत्व प्रदान करता है।