
दिल्ली हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी का मुकदमा खारिज कर दिया। (फोटोः पत्रिका गैलरी)
Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम और सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि लालच में अंधे होकर अवास्तविक मुनाफे के पीछे भागने वाले लोग जानबूझकर जोखिम उठाते हैं और उन्हें उसके नतीजे भी भुगतने पड़ते हैं। अदालत ने 24% सालाना रिटर्न का लालच देकर निवेशकों से करोड़ों रुपये ऐंठने के आरोप में दर्ज 2 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले को रद्द कर दिया।
जस्टिस अरुण मोंगा ने अपने 35 पन्नों के फैसले में साफ कहा कि ‘आसान पैसा’ दरअसल एक जाल है, जिसमें फंसने वाले लोग खुद अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते। उन्होंने कहा "जो लोग अवास्तविक वादों के पीछे भागते हैं, उन्हें अपने जोखिम खुद उठाने होंगे। लोग पहले लालच में आकर वित्तीय जाल में कूदते हैं और बाद में धोखा होने का रोना रोते हुए राज्य से मदद मांगने दौड़ते हैं। यह एक कड़वी, लेकिन जरूरी सच्चाई है कि अगर आप असाधारण मुनाफे की चाह रखते हैं तो असाधारण नुकसान के लिए भी तैयार रहें।"
जस्टिस मोंगा ने आगे कहा "लालच चुनने का मतलब है जोखिम चुनना और जोखिम चुनने का मतलब है परिणाम भुगतना। ऐसे लोग यह दिखावा नहीं कर सकते कि वे किसी जादू से ठगे गए हैं, जब उन्होंने खुद ही उस भ्रम में कदम रखा। हर उस व्यक्ति के लिए यह चेतावनी है, जो जल्दी अमीर बनने के सपने देखता है। आसान पैसा सिर्फ एक जाल है। अगर रिटर्न अविश्वसनीय लगता है तो यह मान लें कि आप अगले शिकार हैं।"
यह केस 2019 में दर्ज एक FIR से शुरू हुआ था। तीन शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने 1.5 करोड़ रुपये के निवेश पर छह महीने में 24% सालाना ब्याज देने का वादा किया। निवेशकों का आरोप था कि न तो उन्हें ब्याज मिला और न ही मूलधन वापस किया गया। इसके अलावा आरोपी ने शिकायतकर्ताओं को 43.66 लाख रुपये देकर एक कंपनी में 1.25% हिस्सेदारी खरीदने के लिए राजी किया, लेकिन यह पैसा भी वापस नहीं किया गया। इस मामले में IPC की धारा 420 (धोखाधड़ी) के तहत कार्रवाई शुरू की गई थी।
13 अगस्त को दिए गए अपने आदेश में मामले को रद्द करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि छह साल बीत जाने के बाद भी पुलिस चार्जशीट दाखिल करने में विफल रही। FIR में धोखाधड़ी साबित करने के जरूरी तत्व मौजूद नहीं हैं। यह मामला असल में एक सिविल विवाद है, जिसे आपराधिक रंग दिया गया। जज ने जांच एजेंसियों की भूमिका को घोर लापरवाही और उचित परिश्रम की कमी करार दिया।
जस्टिस मोंगा ने अपने फैसले में आगे कहा कि ऐसे गैर-टिकाऊ निवेश बाजार में असंतुलन पैदा करते हैं। उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा "लालच सिर्फ व्यक्तिगत कमजोरी नहीं है, यह व्यापक प्रभाव डालता है। जब निवेशक अवास्तविक योजनाओं में पैसा लगाते हैं तो वे बुलबुले को हवा देते हैं। इसका नुकसान असली उपभोक्ताओं और बाजार को उठाना पड़ता है। जब यह बुलबुला फूटता है तो वही लोग खुद को पीड़ित बताकर कानून से मदद की उम्मीद करते हैं, जबकि असल में उन्होंने खुद ही जिम्मेदारी से मुंह मोड़ा होता है।" इस फैसले ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि अवास्तविक और ‘जल्दी अमीर बनने’ वाली स्कीमों में फंसने वालों के लिए अदालत भी सहानुभूति नहीं दिखाएगी। लालच से बचना ही सुरक्षित निवेश का सबसे बड़ा नियम है।
Published on:
19 Aug 2025 11:52 am
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