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महिला ट्रैफिक पुलिस से सेक्सुअल डिमांड…15 साल से चल रहे बड़े ट्रैफिक फ्रॉड का खुलासा

दिल्ली में 15 साल से चल रहे बड़े ट्रैफिक फ्रॉड का खुलासा हुआ है। इसमें शामिल गैंग फर्जी स्टिकर की मदद से कमर्शियल व्हीकल्स को चालान से बचाता था। साथ ही महिला ट्रैफिक पुलिस को भी परेशान करने के मामले सामने आए हैं।

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delhi police exposed traffic fraud gang due to fake sticker scam and challan settlement

दिल्ली में ट्रैफिक फ्रॉड करने वाले गिरोह का पर्दाफाश। महिला पुलिसकर्मियों का वीडियो बनाकर की थी सेक्सुअल डिमांड।

दिल्ली पुलिस ने प्रदूषण और यातायात नियमों का उल्लंघन करने वाले कमर्शियल वाहनों को चालान से बचाने वाले बड़े गैंग का पर्दाफाश किया है। यह गैंग पहले पुलिसकर्मियों को अपने गिरोह में शामिल करता था। उसके बाद स्टिकर का रंग बताकर पुलिसर्मियों पर वाहनों का चालान नहीं करने का दबाव बनाता था। खुलासा ये भी हुआ है कि यह गिरोह उन पुलिसकर्मियों को आर्थिक लाभ भी पहुंचाता था, जो वाहनों को चालान से बचाते थे। इसके अलावा जो पुलिसकर्मी इस गिरोह की बात नहीं मानता था, उसके वीडियो बनाए जाते थे। बाद में उन्हीं वीडियो के दम पर पुलिसकर्मियों को तोड़ा जाता था। गिरोह ने कई महिला पुलिसर्मियों के वीडियो बनाए थे, जिसके बदले उनसे सेक्सुअल डिमांड भी की गई।

पुलिसकर्मियों पर बनाया जाता अनैतिक दबाव

जांच में ये भी सामने आया है कि कुछ वाहन हजारों का चालान होने के बाद भी बिना रोक-टोक सालों तक दिल्ली की सड़कों पर दौड़ते रहे। हैरानी की बात ये है कि ट्रैफिक पुलिस जिन वाहनों का चालान करती थी, उन्हें यह गिरोह मामूली रकम में निपटवा देता था। इस पूरे सिस्टम में फर्जी स्टिकर, अलग-अलग इलाकों में सक्रिय गैंग और ट्रैफिक चेकपॉइंट शामिल बताए जा रहे हैं। इस गिरोह ने महिला ट्रैफिक पुलिसकर्मियों के वीडियो बनाकर उनपर अनैतिक दबाव बनाने की कोशिश भी की। यह मामला तब सामने आया, जब कुछ पुलिस कर्मचारियों ने शोषण की शिकायतें दर्ज करवाई। इसके बाद जांच शुरू की गई। अब तक जांच में तीन गिरोहों का पर्दाफाश किया जा चुका है और लगातार चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं।

30 हजार का चालान, सिर्फ 100-200 रुपये में क्लियर

जांच में सामने आया है कि यह गैंग पिछले 15 सालों से दिल्ली में सक्रिय था। यह गैंग कमर्शियल वाहनों के चालकों को फर्जी स्टिकर बेचता था और उन्हें भरोसा दिलाया जाता था कि उनकी गाड़ी का कोई चालान नहीं काटेगा। अगर उसके बाद भी चालान कट जाता तो ट्रैफिक पुलिस कर्मचारियों के कॉन्टैक्ट्स से चालान निपटवा दिए जाते थे। जानकारी के अनुसार कई मामलों में 30000 तक के चालान कटे हैं। ऐसे मामलों में यह गिरोह वाहन चालकों से पैसे लेकर लोक अदालत में सिर्फ 100 से 200 रुपये में चालान को क्लियर करवा देता था।

दिल्ली के अलग-अलग हिस्से में बंटा था नेटवर्क

दिल्ली पुलिस के अनुसार, इस पूरे गैंग को राजू और जीशान अली संभाल रहे थे। यह गैंग शहर के अलग-अलग हिस्से में सक्रिय था। ट्रांस-यमुना इलाके में सभी कमर्शियल वाहनों को राजू संभालता था। वहीं पश्चिमी दिल्ली में नेटवर्क जीशान के पास था और बाहरी दिल्ली वाले इलाके को रिंकू राणा संभालता था। यह तीनों आरोपी अपने-अपने इलाके में ड्राइवर और ट्रैफिक पुलिस के कॉन्टैक्ट में रहते थे और बड़ी साजिश को अंजाम देते थे।

पुलिस कर्मियों को अपने नेटवर्क में कैसे मिलाया?

शुरुआत में गैंग ने इलाके के कुछ ट्रैफिक पुलिस को स्टिकर के रंग के बारे में बता दिया और उन्हें उस रंग के स्टिकर वाली गाड़ियों के चालान नहीं काटने के लिए कमीशन देने की बात कही। इसके साथ ही उन्हें अपने नेटवर्क में शामिल कर लिया। अगर किसी पुलिसकर्मी ने कमीशन के लिए मना कर दिया तो उनके खिलाफ साजिश रची जाती थी। उन लोगों के खिलाफ ड्राइवरों से रिश्वत ऑफर करवाई जाती और उसका वीडियो बना लिया जाता। उसके बाद उन वीडियों के जरिए पुलिसकर्मियों को धमकाया और ब्लैकमेल किया जाता था। कुछ मामलों में तो वीडियो लाक करने की धमकी देकर उनसे पैसे भी लिए गए।

महिला पुलिसकर्मियों से बदसलूकी के बाद हुआ खुलासा

यह मामला तब और गंभीर हो गया, जब राजू मीणा ने महिला ट्रैफिक पुलिसकर्मियों का चालकों से रिश्वत लेने का वीडियो बना लिया। इसके बाद वह वीडियो दिखाकर उनसे यौन संबंध बनाने की मांग कर डाली। कुछ महिला पुलिसकर्मियों ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को मामले की जानकारी देकर मदद की गुहार लगाई। इसके बाद इस मामले में जांच-पड़ताल शुरू हो गई। जांच के दौरान इस गैंग से जुड़े कम से कम 14 मामले सामने आए। दिल्ली पुलिस ने इन सभी मामलों को क्राइम ब्रांच के हवाले कर दिया। इसके बाद इसकी परतें खुलने लगीं।

सब-इंस्पेक्टर से भी वसूले 1.5 लाख रुपये

डीसीपी (क्राइम) संजय कुमार यादव ने बताया कि आरोपी दो लेवल पर काम कर रहे थे। एक तरफ वह 2000 से 5000 तक कीमत में फर्जी स्टिकर बेच रहे थे और दूसरी तरफ ट्रैफिक पुलिसकर्मियों को रिश्वत ऑफर करवाकर उनका वीडियो रिकॉर्ड कर रहे थे। बाद में उन्हें ब्लैकमेल कर उनसे पैसे वसूले जाते थे। जांच में सामने आया कि राजू मीणा ने वीडियो लीक करने की धमकी देकर एक ट्रैफिक सब-इंस्पेक्टर से 1.5 लाख रुपये वसूल लिए। कुछ पुलिसकर्मियों ने ये आरोप भी लगाया कि उन्हें धमकाकर घुटनों पर बैठाया गया और वीडियो लीक नहीं करने के लिए जबरदस्ती रिक्वेस्ट करवाई गई।

फ्रॉड में शामिल तीन गैंग का हुआ पर्दाफाश

पुलिस ने इस हफ्ते तीन अलग-अलग गैंग का पर्दाफाश किया है और 8 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। जीशान अली के गैंग से उसके सहयोगी चंदन कुमार चौधरी, दिलीप कुमार और दीना नाथ चौधरी को पकड़ा गया है। यह सभी स्टिकर बांटने और फील्ड ऑपरेशन संभालते थे। दूसरे और तीसरे गैंग के सरगना रिंकू राणा और सोनू शर्मा को संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर से गिरफ्तार किया गया। पुलिस के अनुसार, सोनू शर्मा एक व्हाट्सएप ग्रुप चलाता था, जिसमें ड्राइवरों को यह जानकारी दी जाती थी कि कौन से रास्तों और चेकपॉइंट्स से नियमों को बायपास किया जा सकता है। राजू के गैंग का एक और सदस्य भी गिरफ्तार किया गया है, जो ट्रांसपोर्टरों और पुलिस अधिकारियों के बीच मिडिलमैन की भूमिका निभाता था। साथ ही वह राजू के साथ दो मामलों में शामिल भी रहा।