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जानिए जज लोया की मौत के बहुचर्चित मामले की पूरी कहानी

सीबीआई जज बीएच लोया की मौत साल 2014 में हुई थी। जानिए, क्या है पूरा मामला?

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BH loya

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जज लोया केस में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि बीएच लोया की मौत की जांच SIT नहीं करेगी। एससी ने स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिका को खारिज करते यह फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साफ कहा कि एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका में दम नहीं है। इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि चारों जजों के बयानों पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है। चारों जज लगातार जस्टिस लोया के साथ थे। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि जज लोया की मौत प्राकृतिक है।

साल 2014 में हुई थी जस्टिस लोया की मौत

नवंबर 2014 के आखिरी में सीबीआई जज बीएच लोया अपने परिचित के यहां शादी में शरीक होने के लिए नागपुर गए थे। लेकिन, 1 दिसंबर 2014 को उनकी मौत हो गई थी। उस वक्त उनकी मौत का कारण दिल का दौरा बताया गया था। वहीं, मौत के बाद उनकी डेड बॉडी को लातूर भेज दिया गया था। हालांकि, उस वक्त उनके साथ चार जज भी मौजूद थे।

तीन साल बाद फिर चर्चा में आया मामला

तीन साल बाद नवंबर 2017 में यह मामला एक बार फिर चर्चा में आ गया। जब उनकी बहन ने लोया की मौत पर शक जताया और उनकी मौत का तार गुजरात के चर्चित सोहराबुद्दीन एनकाउंटर से जोड़ा गया। दरअसल, एक मैगजीन ने जज बृजमोहन लोया की बहन और उनके पिता से बात करके ये दावा किया था कि जज लोया की मौत संदेहों के घेरे में है और इस मौत को दबाने की कोशिश की गई है। इसके बाद यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया।

महाराष्ट्र सरकार ने किया था विरोध

जब मामले की छानबीन शुरू हुई तो महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले में स्वतंत्र जांच का विरोध किया था। राज्य सरकार का कहना था कि ये याचिकाएं राजनीति से प्रेरित हैं और किसी एक शख्स को निशाने पर रखकर दायर की गई हैं। वहीं, जिन लोगों ने याचिका दायर की थी, उनका कहना था कि लोया मामले में जिस तरह का घटनाक्रम हुआ, उसमें निष्पक्ष जांच कराने की जरूरत है।

चार लोगों ने याचिका दायर कर निष्पक्ष जांच की मांग की

जिन चार लोगों ने याचिका दायर कर इस मामले में निष्पक्ष जांच कराने की मांग की, उनमें कांग्रेसी नेता तहसीन पूनावाला, महाराष्ट्र के पत्रकार बीएस लोने, बांबे लॉयर्स एसोसिएशन और अन्य शामिल हैं।

इन जजों ने सुनवाई पर उठाए थे सवाल

गौरतलब है कि 12 जनवारी 2018 को सुप्रीम कोर्ट के चार जजों जस्टिस जे चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, कुरियन जोसेफ और एमबी लोकुर ने प्रेस वार्ता कर इस मामले पर सवाल उठाया था। इन सब ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा पर काम का बंटवारा सही से नहीं करने का आरोप लगाया था। उनका कहना था कि जस्टिस लोया का केस किसी सीनियर जज के पास जाना चाहिए था, लेकिन इसे जूनियर जज की बेंच के पास भेजा गया। फिलहाल, इस केस की सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच कर रही है।

लोया ने की थी सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस की सुनवाई

यहां आपको बता दें कि सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस को साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र की ट्रायल कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया था। इस केस की सुनवाई जज जेटी उत्पत कर रहे थे, लेकिन 2014 में उनका ट्रांसफर हो गया। इसके बाद इस केस की सुनवाई जज बीएच लोया ने की।

बता दें कि सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह , राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया, राजस्थान के बिजनेसमैन विमल पाटनी, गुजरात पुलिस के पूर्व चीफ पीसी पांडे, एडीजीपी गीता जौहरी, गुजरात पुलिस के ऑफिसर अभय चुडासम्मा और एनके अमीन आरोपी थे, जिन्हें बरी किया जा चुका है। लेकिन, अब भी पुलिस अफसरों समेत कुल 23 आरोपियों के खिलाफ इस मामले में जांच चल रही है।