Success Story: कौन कहता है कि आसमां में छेद नहीं हो सकता जरा एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों…कवि दुष्यंत कुमार की कविता की ये लाइन हरियाणा के हिसार की रहने वाली एक कबाड़ी की 21 साल की बेटी पर बिल्कुल फिट बैठती हैं। उसने न सिर्फ अपने पिता का मान बढ़ाया है, बल्कि पढ़ाई के दरम्यान ही अपने जीवन का ऊंचा मुकाम हासिल कर पूरे गांव को गौरवान्वित किया है।
दरअसल, यह कहानी 21 साल की उस बेटी की है। जिसके पिता कबाड़ बीनकर महज 500-550 रुपये रोजाना कमाते हैं। उस बेटी को पढ़ाई के दरम्यान ही माइक्रोसॉफ्ट कंपनी में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर 55 लाख के सालाना पैकेज पर जॉब मिली है। बेटी की सफलता से पूरे गांव में जश्न का माहौल है। वहीं डबडबाई आंखों से माता-पिता कभी अपनी बेटी पर गर्व करते हैं तो कभी उसे दुलारने लगते हैं।
दरअसल, हरियाणा के हिसार जिले के बालसमंद गांव के रहने वाले राजेश कुमार कबाड़ी हैं। आसपास के क्षेत्र में घूमकर दिनभर में करीब 500-550 रुपये का कबाड़ खरीदते, बीनते और बेचते हैं। इस काम से राजेश कुमार का परिवार बमुश्किल गुजर-बसर करता है, लेकिन राजेश ने अपना पेट काटकर अपनी बेटी सिमरन की पढ़ाई-लिखाई पर ज्यादा ध्यान दिया। सिमरन रोज अपने पिता की मेहनत को देखती थी।
इसी के चलते उसने अपना पूरा फोकस पढ़ाई पर रखा और महज 17 साल की उम्र में JEE की परीक्षा पास की। पहले ही प्रयास में सिमरन की कामयाबी से पिता राजेश का उत्साह बढ़ा और उसने सिमरन का दाखिला आईआईटी मंडी में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर्स में कराया। हालांकि सिमरन की रुचि आईटी सेक्टर में थी। माइक्रोसॉफ्ट में काम करना उसका सपना था। यही सपना उसे पिता के संघर्षों के बीच ऊर्जा देता रहा और उसने एडिशनल सब्जेक्ट में कंप्यूटर साइंस की भी पढ़ाई की।
कॉलेज के दौरान ही सिमरन का सिलेक्शन माइक्रोसॉफ्ट की हैदराबाद ब्रांच में इंटर्नशिप के लिए हुआ। दो महीने की इंटर्नशिप के बाद 300 छात्रों में से वह ‘बेस्ट इंटर्न’ चुनी गई। अमेरिका से विशेष रूप से भारत आए माइक्रोसॉफ्ट के ओवरसीज हेड ने उसे सम्मानित किया। यह पल सिमरन के लिए ही नहीं, उसके पूरे परिवार और गांव के लिए गर्व का क्षण था। इसके बाद महज 21 साल की उम्र में माइक्रोसॉफ्ट जैसी विश्वविख्यात कंपनी में 55 लाख रुपए के सालाना पैकेज पर सिमरन को नौकरी का ऑफर मिला। इसकी सूचना सिमरन ने अपने पिता को दी। जो उस समय भी कबाड़ बीन रहे थे। महज 21 साल की उम्र में बेटी को मिली बड़ी कामयाबी से पिता की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े।
सिमरन के पिता राजेश कुमार आज भी गली-गली जाकर कबाड़ इकट्ठा करते हैं। इसके साथ ही गली-गली घूमकर बर्तन बेचते हैं। राजेश कहते हैं, "हर दिन तीन सौ से पांच सौ रुपये की कमाई होती है, उसी से घर चलता है। कभी नहीं सोचा था कि मेरी बेटी दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी में काम करेगी।" उनकी आंखों में गर्व और संतोष साफ झलकता है। सिमरन की मां कविता ने 7वीं तक खुद पढ़ाकर बेटी की नींव मजबूत की। वे कहती हैं, "मैंने बाहरवीं तक पढ़ाई की, लेकिन चाहती थी कि मेरी बेटी वहां पहुंचे जहां मैं नहीं पहुंच पाई।" अब वे चाहती हैं कि बाकी बेटियां भी सिमरन से प्रेरणा लें और अपने सपनों की उड़ान भरें।
सिमरन की कहानी सिर्फ एक नौकरी पाने की नहीं, बल्कि उम्मीद, मेहनत और आत्मविश्वास से अपने भाग्य को गढ़ने की कहानी है। यह संदेश है उन सभी लड़कियों के लिए जो कठिनाइयों से हार मान लेती हैं कि अगर ज़िद हो तो कोई भी सपना नामुमकिन नहीं। सिमरन की इस सफलता पर स्थानीय विधायक चंद्रप्रकाश ने भी बधाई दी। उन्होंने घोषणा की कि 4 जुलाई को बालसमंद गांव में सिमरन को सम्मानित किया जाएगा। उन्होंने कहा, "बेटियां अगर अवसर पाएं तो हर क्षेत्र में इतिहास रच सकती हैं।"
Updated on:
05 Jul 2025 11:38 am
Published on:
04 Jul 2025 04:22 pm