
दिल्ली हाईकोर्ट
Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि नाबालिग विवाह और यौन शोषण जैसे गंभीर अपराधों को सिर्फ समझौते या बाद में हुई शादी के आधार पर माफ नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि अगर ऐसा किया गया तो यह गैरकानूनी कृत्य को वैधता देने जैसा होगा, जबकि संसद ने ऐसे अपराधों को रोकने के लिए ही कड़े कानून बनाए हैं। जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि यौन अपराधों में समझौते या विवाह को ‘ढाल’ बनाकर आरोपी को राहत नहीं दी जा सकती।
अदालत ने जोर दिया कि न्यायालय का रुख हमेशा साफ रहा है। किसी समझौते या शादी से अपराध समाप्त नहीं हो जाता। इस फैसले ने एक बार फिर यह संदेश दिया है कि नाबालिगों से जुड़े यौन अपराधों में किसी भी तरह का निजी समझौता न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर सकता। कानून का उद्देश्य बच्चों को शोषण से बचाना है और अदालत इस दिशा में समझौते या विवाह को ‘ढाल’ बनाने की अनुमति नहीं दे सकती।
यह मामला दो आरोपियों से जुड़ा था, जिन पर एक नाबालिग लड़की के अपहरण, बाल विवाह और यौन शोषण के आरोप लगे थे। दोनों आरोपियों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर मांग की थी कि चूंकि उन्होंने पीड़िता के साथ समझौता कर लिया है, इसलिए उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द कर दी जाए।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, लड़की के पिता ने दिसंबर 2023 में शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी 17 वर्षीय बेटी घर से लापता है और उसे दो लोगों ने अगवा कर लिया है। जांच में पुलिस ने लड़की को आरोपी नंबर 2 के पास से बरामद किया। मेडिकल परीक्षण से नाबालिग के साथ यौन शोषण और गर्भधारण की पुष्टि हुई।
पुलिस और अदालत के सामने दिए गए बयानों में लड़की ने बताया कि वह आरोपी नंबर 2 से पांच साल से रिश्ते में थी। हालांकि 2022 में उसके दादा ने उसकी शादी आरोपी नंबर 1 से करवा दी, जिससे वह गर्भवती हुई। उसने कहा कि दिसंबर 2023 में वह अपनी मर्जी से आरोपी नंबर 2 के साथ राजस्थान चली गई और वहां दोनों किराए के मकान में रहने लगे। जनवरी 2024 में पुलिस ने उसे वापस लाकर उसके परिवार को सौंप दिया।
मजिस्ट्रेट के सामने लड़की ने कहा कि वह अपने पति (आरोपी नंबर 1) के साथ रह रही है और वर्तमान में अपने दूसरे बच्चे के साथ गर्भवती है। उसने अदालत को यह भी बताया कि उसे किसी आरोपी के खिलाफ कार्रवाई से ऐतराज नहीं है और वह अपने पति के साथ वैवाहिक जीवन जारी रखना चाहती है।
हाईकोर्ट ने पीड़िता की वर्तमान परिस्थिति और उसके बयानों को ध्यान में रखते हुए भी एफआईआर रद्द करने से साफ इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि पॉक्सो एक्ट और बाल विवाह निषेध अधिनियम जैसे कानून नाबालिगों की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं, और व्यक्तिगत समझौता या विवाह इन कानूनों के प्रावधानों को कमजोर नहीं कर सकता।
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पीड़िता नाबालिग थी और उसके साथ बार-बार शारीरिक संबंध बनाए गए, जिससे वह गर्भवती हो गई। यह पॉक्सो एक्ट के तहत गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। अदालत ने दोहराया कि शादी कर लेना या बाद में किसी भी तरह से साथ रहना अपराध को खत्म नहीं कर सकता। इसलिए यह याचिका रद की जाती है। आरोपियों पर पॉक्सो के तहत मुकदमा चलेगा और उन्हें उचित सजा भी होगी।
Updated on:
03 Oct 2025 06:05 pm
Published on:
03 Oct 2025 05:53 pm
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