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UAPA के आरोपी की अवैध हिरासत पर सुप्रीम कोर्ट हैरान, जज बोले-यह बहुत भयावह स्थिति

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में एक यूएपीए मामले की सुनवाई के दौरान बड़ा खुलासा हुआ। एक व्यक्ति को बिना चार्जशीट सबमिट किए दो साल तक जेल में रखा। इसके बाद अदालत ने जांच एजेंसी के काम करने के तरीके पर सवाल उठाए। कोर्ट ने एजेंसी की लापरवाही पर कड़ा रुख अपनाया।

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Supreme Court Expresses Shock At 2-Year Custody Of UAPA Accused Without Chargesheet Grants Bail

असम में पकड़े गए UAPA के आरोपी के मामले में NIA पर भड़का सुप्रीम कोर्ट।

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने अदालत को भी हैरान कर दिया। साथ ही देश की प्रमुख जांच एजेंसी की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर दिया है। दरअसल, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत एक आरोपी को एजेंसी ने दो साल से ज्यादा समय तक हिरासत में रखा। इस दौरान कोर्ट में चार्जशीट भी दाखिल नहीं की। यूएपीए जैसे सख्त कानून का मामला होने के बाद भी जांच एजेंसी ने चार्जशीट दाखिल करने की समय सीमा का पालन नहीं किया। इसपर सुप्रीम कोर्ट में मौजूद जज भी हैरान रह गए। शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीर लापरवाही बताया। बेंच ने कहा कि कठोर कानून होने का मतलब यह नहीं कि किसी की आजादी और उसके अधिकारों को नजरअंदाज किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार

दरअसल, इस मामले में आरोपी की जमानत याचिका पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही थी। इस दौरान जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने मामले की पूरी फाइल देखी तो दोनों जज चौंक पड़े। केस रिकॉर्ड देखने के बाद अदालत को पता चला कि असम पुलिस ने यूएपीए के तहत कार्रवाई तो शुरू की, लेकिन तय समय सीमा के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं की। इस पर जस्टिस मेहता ने असम सरकार के वकील से सख्त सवाल पूछे। साथ ही कोर्ट ने साफ कहा कि आरोपी को इतने लंबे समय तक बिना चार्जशीट जेल में रखना पूरी तरह अवैध है। जस्टिस मेहता ने नाराजगी जताते हुए कहा "चाहे कानून कितना ही कठोर क्यों न हो, UAPA अवैध हिरासत की अनुमति नहीं देता। यह स्थिति बिल्कुल भयावह है! दो साल बीत गए, आप चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाए और एक व्यक्ति आपकी हिरासत में है! आप अपने आपको देश की एक प्रमुख जांच एजेंसी समझते हैं?”

रिकॉर्ड में सामने आई पूरी कहानी

लाइव लॉ के अनुसार, आरोपी को असम पुलिस ने 23 जुलाई 2023 को गिरफ्तार किया था। पुलिस का दावा था कि उसके पास से 3.25 लाख रुपये बरामद हुए थे। बाद में उसे एक दूसरे मामले में प्रोडक्शन वारंट के जरिए कोर्ट में पेश किया गया और फिर पुलिस हिरासत में ले लिया गया। जांच एजेंसी बार-बार कहती रही कि जांच तेजी से चल रही है, लेकिन चार्जशीट दाखिल करने में तय समय सीमा से कहीं ज्यादा देर हो गई। अंत में चार्जशीट 30 जुलाई 2025 को दाखिल की गई, यानी गिरफ्तारी के बाद चार्जशीट दाखिल करने में लगभग दो साल का समय लिया गया।

हाई कोर्ट ने पहले रद कर दी थी याचिका

आरोपी के खिलाफ यूएपीए के दो और मामले दर्ज थे और उन मामलों में निचली अदालतों ने उसे डिफॉल्ट जमानत दे दी थी। इसके बाद आरोपी इस केस में जमानत के लिए गुवाहाटी हाई कोर्ट पहुंचा, लेकिन वहां उसकी याचिका खारिज कर दी गई। हाई कोर्ट ने कहा कि आरोपी अवैध तरीके से भारत में आया था, इसलिए वह यूएपीए की धारा 43D(7) के तहत डिफॉल्ट जमानत का हकदार नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी ने अपने पक्ष में कोई ऐसी असाधारण वजह नहीं दी, जिस पर उसे राहत दी जा सके।

क्या है चार्जशीट दाखिल कराने की समय सीमा?

सुनवाई के दौरान जस्टिस मेहता ने कहा कि साधारण मामलों में सीआरपीसी की धारा 167 के तहत चार्जशीट दाखिल करने की समय सीमा 90 दिन होती है। हालांकि, UAPA जैसे सख्त और खास कानूनों में जांच एजेंसी अगर 90 दिनों में जांच पूरी नहीं कर पाती तो अदालत से अनुमति लेकर इस समय को बढ़ाकर ज्यादा से ज्यादा 180 दिन किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जांच एजेंसी की लापरवाही के चलते आरोपी की जेल में रहने का समय जरूरत से ज्यादा बढ़ गया और यह व्यक्ति के स्वतंत्रता के अधिकार का सीधा उल्लंघन है। इसलिए अदालत ने उसे जमानत के आदेश दे दिए।