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संसद में गूंजा सीमापार से नशीले पदार्थों की तस्करी का मुद्दा

सीमावर्ती इलाकों में बदल रही है डेमोग्राफी घनश्याम तिवाड़ी ने की राजस्थान को विशेष पुलिस बल के लिए वित्तीय सहायता की मांग

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सांसद घनश्याम तिवाड़ी। फोटो: एनआई

नई दिल्ली। राजस्थान में सीमा पार से ड्रोन के जरिए नशीले पदार्थों की बढ़ती तस्करी का मुद्दा मंगलवार को राज्यसभा में उठा। सांसद घनश्याम तिवाड़ी ने शून्यकाल के दौरान यह मुद्दा उठाते हुए राजस्थान को इसके लिए विशेष पुलिस बल के लिए वित्तीय सहायता देने की मांग की।

तिवाड़ी ने कहा कि राजस्थान में एक हजार किलोमीटर से लम्बी सीमा है और सीमा पार से ड्रोन के माध्यम से जरिए नशीले पदार्थ गिराए जा रहे हैं। जिसे कई बार पकड़ा गया। यह एक रूट बन गया है जिसके माध्यम से पाकिस्तान से होकर नशीले पदार्थ आते रहते हैं। इस कारण नशे की प्रवृति और उसकी तस्करी पर कड़ी पाबंदी लगाए जाने की आवश्यकता है। हालांकि बीएसएफ और सेना व स्थानीय पुलिस इस पर काम कर रही है। पर राजस्थान को सीमावर्ती क्षेत्रों में और अधिक पुलिस चौकियों के लिए संसाधनों की आवश्यकता है। रात्रि को गश्त करने वाले उपकरण की भी आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि सीमावर्ती कई गांवों की डेमोग्राफी में भी परिवर्तन आ रहा है। वहां कई ऐसे लोग भी रह रहे हैं जो इधर भी रहते हैं और उधर भी रहते हैं। जो तस्करी को बढ़ावा देते हैं। उनके गठजोड़ को तोड़ना है। इस पर नियंत्रण के लिए राजस्थान को अतिरिक्त सहायता मिले जिससे विशेष पुलिस बल का गठन किया जा सके ताकि अन्तरराष्ट्रीय सीमा से ड्रग्स की तस्करी रोकी जा सके और युवाओं को इस नशे की लत से बचाया जा सके।

राजस्थानी को मिले आधिकारिक भाषा का दर्जा

राज्यसभा नीरज डांगी ने राजस्थानी को राज्य में आधिकारिक भाषा का दर्ज दिलवाने की मांग करते हुए शून्यकाल में बताया कि राजस्थान विधानसभा से अगस्त 2003 में राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित कर केन्द्र को भिजवाया गया था। राजस्थान सरकार अन्य सरकारों की तरह अनुच्छेद 345 के तहत स्थानीय भाषा के रूप में राजस्थानी को आधिकारिक मान्यता देना चाहती है। राजस्थान में बोली जाने वाली राजस्थानी भाषा एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत वाली भाषा है। आधिकारिक दर्जा मिलने पर इसका संरक्षण हो सकेगा और शिक्षा, मनोरंजन, सरकारी व विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा होंगे। राजस्थानी को अनुच्छेद 345 के तहत आधिकारिक भाषा और आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।