
नवनीत मिश्र
नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचंड बहुमत से जीतने के बाद भाजपा किसे मुख्यमंत्री बनाएगी, इसको लेकर मंथन का दौर चल रहा है। यों तो यह फैसला भाजपा की संसदीय बोर्ड की बैठक में होगा, लेकिन कुछ कसौटियां ऐसी हैं, जिस पर दावेदार चेहरों को कसने का सिलसिला चल रहा है। भाजपा को तलाश ऐसे चेहरे की है, जिसके जरिए दिल्ली ही नहीं देश भर में संदेश जाए। भले ही दिल्ली की राजनीति में कॉस्ट से ज्यादा क्लास चलती हो, लेकिन पार्टी दोनों को साधना चाहती है। और अगर किसी चेहरे के जरिए चुनावी राज्य बिहार और पंजाब तक समीकरण सध जाएं तो सोने पर सुहागा। लो-प्रोफाइल और पॉवर सेंटर से दूर रहने वाले चेहरे को वरीयता मिल सकती है। क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों को साधने के लिए दो उपमुख्यमंत्री भी पार्टी बना सकती है। आइए जानते हैं कि मुख्यमंत्री चुनने में भाजपा किन फैक्टर का ख्याल कर सकती है।
देश में महिला वर्ग बड़ा वोटबैंक बन चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, महिला बिल के जरिए इस वर्ग को साधने की बड़ी कोशिश कर चुके हैं। एनडीए शासित 20 राज्यों में कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं है, ऐसे में भाजपा किसी महिला को आगे कर देश में बड़ा संदेश दे सकती है। सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित और आतिशी के रूप में सेट हो चुके ट्रेंड को भाजपा आगे बढ़ा सकती है।
वैश्य और व्यापारी वर्ग भाजपा का अटूट कोर वोटर रहा है। दिल्ली में भी इनका वर्चस्व है। चुनावी राज्य बिहार में भी वैश्य आबादी अच्छी खासी है। अगर इन सब समीकरणों को पार्टी ने देखा तो वैश्य वर्ग के चेहरे को मौका देकर पूरे देश में इस वर्ग में अपनी पकड़ और मजबूत बना सकती है।
भाजपा पंजाब में मजबूत नहीं हो सकी है। सिखों के भी एक बड़े वर्ग को करीब लाने में सफलता नहीं मिली है। अगर भाजपा दिल्ली से लेकर पंजाब तक के समीकरणों को साधना चाहेगी तो किसी पंजाबी चेहरे को कमान मिल सकती है। दिल्ली में पंजाबी और सिख समुदाय को मिलाकर करीब 30 प्रतिशत बताई जाती है। भाजपा इस बार एक छोड़ सभी पंजाबी मतदाता बहुल सीटें जीतने में सफल रही है। ऐसे में इस वर्ग से ताल्लुक रहने वाले किसी नेता की लॉटरी लग सकती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीत के बाद संबोधन में पूर्वांचल के मतदाताओं का विशेष आभार जताया। पुर्वांचल बहुल सीटें भाजपा जीतने में सफल रही। चूंकि साल के आखिर में बिहार में चुनाव है तो भाजपा किसी पूर्वांचली चेहरे को भी कुर्सीं सौंपने का दांव चल सकती है।
दिल्ली में 17 प्रतिशत से अधिक दलित आबादी है। आरक्षित 12 में से सिर्फ 4 सीटें ही जीतने में पार्टी सफल हुई। दूसरी तरफ, जिस तरह से विपक्ष संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा को देश भर में घेरने की कोशिश करता है, उससे भाजपा किसी दलित चेहरे के जरिए भी देश में संदेश दे सकती है।
Published on:
10 Feb 2025 02:30 pm
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