20 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

आखिर क्यों 1:30 को डेढ़ और 2:30 को कहते हैं ढाई? जानें साढ़े एक और साढ़े दो ना बोलने की ख़ास वजह

बचपन में हमेशा जब हमसे कोई वक्त पूछता था तो हम 1:30 को 'साढ़े एक' और 2:30 को 'साढ़े दो' बताते थे, जो की भारतीय गिनती सिस्टम के हिसाब से बिल्कुल गलत होता है। हिन्दी भाषा में हम 1:30 के लिए 'डेढ़' और 2:30 के लिए 'ढ़ाई' का इस्तेमाल करते हैं।

2 min read
Google source verification
 Why do we say 'dedh' for 1:30 and 'dhai' 2:30 instead of 'Sade ek' and 'Sade do' in Hindi?

Why do we say 'dedh' for 1:30 and 'dhai' 2:30 instead of 'Sade ek' and 'Sade do' in Hindi?

बचपन में जब घड़ी देखना सीखाया जाता था तब उस वक्त दोपहर में 1:30 या 2:30 बजे के आसपास कोई टाइम पूछता था तो शायद आप भी उन्हें मजाक में साढ़े एक या साढ़े दो बता देते होगें। मगर उस वक्त ये बात भी बहुत कंफ्यूज करती थी कि आखिर जब 11:30 को साढ़े ग्यारह और 12:30 साढ़े बारह कहा जाता है तो 1:30 को डेढ़ और 2:30 को ढ़ाई क्यों कहा जाता है? इन्हें भी बाकी वक्तों की तरह 'साढ़े एक' और 'साढ़े दो' क्यों नहीं बोला जाता? तो चलिए आपको बताते हैं इसके पीछे की वजह।

दरअसल, ये शब्द भारतीय गिनती की ही देन है। भारत में जो गिनती का सिस्टम (Indian Counting System) चला आ रहा है, उसमें डेढ़ और ढाई के अलावा सवा, पौने वगैरह का भी इस्तेमाल किया जाता है। ये शब्द फ्रैक्शन में चीजों को बताते हैं। पहले के समय में लोगों को कई तरह के फ्रैक्शनल शब्द पढ़ाए जाते थे। जैसे कि 1/4 को पाव, 1/2 को आधा, 3/4 को पौन और 3/4 को सवा कहा जाता है।

इन्हीं शब्दों को घड़ी में भी इस्तेमाल किया जाने लगा, और इसका सबसे बड़ा कारण है समय की बचत। आप ही बताईए कि ‘साढ़े एक’ से ज्यादा आसान ‘डेढ़’ या ‘ढाई’ कहना है या नहीं। वैसे हीं ‘5 बजकर 15 मिनट’ कहने से ज्यादा आसान है ‘सवा पांच’ कहना, या फिर ‘3 बजने में 15 मिनट बाकी’ कहने से आसान है ‘पौने तीन’ कहना। सीधे तौर पर कहे तो एक छोटे शब्द के इस्तेमाल से सब कुछ क्लियर हो जाता है। इसलिए हिन्दी के गणित के शब्दों को घड़ी के लिए भी इस्तेमाल किया जाने लगा।

इसी तरह रुपयों-पैसों के हिसाब या लेनदेन में हम इन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। जैसे 150 और 250 को डेढ़ सौ रुपये या ढाई सौ रुपये, तौल-माप में डेढ़ किलो, ढाई किलो, डेढ़ मीटर, ढाई मीटर, डेढ़ लीटर, ढाई लीटर वगैरह बोला जाता है। अलग-अलग देशों में फ्रैक्शन को लिखने के तरीके भी अलग-अलग रहे हैं। फ्रैक्शन का आधुनिक ढंग भी भारत की ही देन है। समय में, रुपये-पैसे में, तौलने में फ्रैक्शन के इस्तेमाल के पीछे कोई रॉकेट साइंस नहीं है। यह एक तरह से इंडियन स्टैंडर्ड और ट्रेंड का मामला है।

यह भी पढ़ें: इन काले Dots के पीछे छिपा है एक सीक्रेट मैसेज, जीनियस हैं तो देकर दिखाएं सही जवाब