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राजस्थान के 97 साल के बाबा, तीनों भाषाओं में कंठस्थ हैं इनको पहाड़े, देखें वीडियो

राजेश शर्मा. उम्र करीब 97 वर्ष से ज्यादा हो गई, लेकिन आज भी गणित के कठिन से कठिन सवाल वे बिना केलकुलेटर कर लेते हैं। बीस साल के बच्चे को जितने पहाड़े याद हैं, उससे ज्यादा पहाड़े इनको अभी भी याद हैं। खास बात यह है कि अंग्रेजी मीडियम में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चों को […]

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रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. घासीराम वर्मा

राजेश शर्मा.

उम्र करीब 97 वर्ष से ज्यादा हो गई, लेकिन आज भी गणित के कठिन से कठिन सवाल वे बिना केलकुलेटर कर लेते हैं। बीस साल के बच्चे को जितने पहाड़े याद हैं, उससे ज्यादा पहाड़े इनको अभी भी याद हैं। खास बात यह है कि अंग्रेजी मीडियम में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चों को हिन्दी में पहाड़े नहीं आते और हिन्दी माध्यम में पढने वाले अधिकतर बच्चों को अंग्रेजी में अच्छी तरीके से पहाड़े नहीं आते। लेकिन गणितज्ञ के नाम से प्रसिद्ध रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. घासीराम वर्मा ऐसे व्यक्ति हैं जिनको अंग्रेजी व हिन्दी के साथ-साथ शेखावाटी की भाषा में भी सौ से ज्यादा तक के पहाड़े कंठस्थ याद हैं। इसके अलावा सवा, डेढ, ढाई के पहाड़े भी याद हैं। उनका कहना है कि हिन्दी व शेखावाटी की भाषा के पहाड़ों में लय है, जिसे कोई भी भूल नहीं सकता, जबकि अंग्रेजी के पहाड़ों में लय नहीं है।

पहली बार हेमसिंह राठौड़ ने पहचानी प्रतिभा

डॉ. वर्मा ने बचपन की यादें ताजा करते हुए बताया कि उस समय उनके गांव राजस्थान के झुंझुनूं जिले के सीगड़ी में सरकारी स्कूल नहीं था। पढाई के लिए वाहिदपुरा गांव जाते थे। वे तीसरी क्लास में पढ़ते थे। उस दौरान नवलगढ़ ठिकाने के तत्कालीन बड़े अफसर हेमसिंह राठौड़ स्कूल में आए। वे बड़े बच्चों से गणित के सवाल पूछ रहे थे। वे जवाब नहीं सके तो मैंने उनका जवाब दे दिया। इसके बाद उन्होंने गणित के कई सवाल पूछे और घासीराम ने सभी जवाब दे देए। वे गणित से प्रभावित हुए। प्रधानाध्यापक व परिजनों से कहा इस बच्चे को पढाई करने के लिए पिलानी भेजो। वर्मा ने बताया हेमसिंह ने मेरे लिए हर माह ढाई रुपए की छात्रवृति भी मंजूर करवाई। इसके बाद वे पिलानी पढ़ने लगे वहां ट्यूशन भी करवाने लगे। उन्होंने कहा कि मैंने गरीबी देखी है, इसलिए चाहता हूं कि गरीबी के कारण कोई बालक पढाई नहीं छोड़े, इसलिए शिक्षा पर करोड़ों रुपए दान कर चुके।

एमआईटी के प्रोफेसर फ्रेडरिक्स ने भी सराहा

डॉ. वर्मा ने बताया कि जब वे पिलानी में पढ़ते थे तब पिलानी के कॉलेज (वर्तमान में बिट्स) व विश्व प्रसिद्ध मैसाचुसेट्स इन्स्टिट्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी(एमआईटी) अमरीका के बीच कोलोब्रेशन था। पिलानी के प्राफेसरएमआईटी जाते थे और एमआईटी के प्रोफेसर पिलानी आते थे। तब एमआईटी के प्रोफेसर फ्रेडरिक्स पिलानी आए। वे घासीराम की गणित से काफी प्रभावित हुए। उनको अमरीका बुलाया। इसके बाद डॉ वर्मा अमरीका चले गए। वहां उन्होंने पहले न्यूयॉर्क के कुराटइंस्टीट़्यट में पढाई की और फिर अमरीका के अनेक विवि में गणित के प्रोफेसर रहे।