
नोएडा। सबको सपनों की दुनिया में ले जाने वाली मीडिया और मनोरंजन इंडस्ट्री के अपने सपने और समस्याएं भी हैं। बजट के पहले और लोगों की तरह ये इंडस्ट्री भी सरकार से कुछ राहत की उम्मीद कर रही है। मीडिया और मनोरंजन सेक्टर में दखल रखने वाले समाजसेवी अशोक श्रीवास्तव के अनुसार, इंडस्ट्री चाहती है कि सरकार उसकी बौद्धिक संपदा को पहचान दे। मीडिया और मनोरंजन के क्षेत्र में जोखिम को कम करने के उपाय किए जाएं। फिल्में बनाने के लिए बैंकों से लोन मिले। सरकार को भी इसके लिए फंड की व्यवस्था करनी चाहिए। इंडस्ट्री अपनी आम समस्याओं से जल्दी निजात चाहती है। कोई भी काम करने के लिए जटिल कानूनी और रेगुलेटरी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। इन्हें कम किया जाए और क्लीयरेंस के लिए सिंगल विंडो सिस्टम की व्यवस्था की जाए। इंडस्ट्री को फिलहाल जीएसटी से बहुत उम्मीदें हैं, लेकिन इसकी बारीकियां सामने आने से पहले कई सवाल भी हैं, जिन पर बहुत कुछ निर्भर करता है।
चीन से अाने वाले उत्पादों पर लगे अधिक टैक्स
एमएसएमई इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह नाहटा कहते हैं कि देश की जीडीपी में एमएसएमई का योगदान 18 फीसदी है। सरकार को इस पर भी ध्यान देना होगा। छोटे उद्योग को बढ़ाए बिना देश का विकास संभव नहीं है। वहीं, एनईए के अध्यक्ष विपिन मल्हन कहते हैं कि नोटबंदी और जीएसटी की मार से जार-जार हुए उद्योगों को भी राहत मिलनी चाहिए। उन्होंने बताया कि सर्विस इंडस्ट्रीज को अब 50 लाख रुपये की सीमा तक छूट मिलनी चाहिए। यह अभी 20 लाख रुपये है। सरकार को एमएसएमई पर भी खास गौर करना चाहिए। इसके लिए चीन से अाने वाले उत्पाद पर अतिरिक्त टैक्स लगाना चाहिए, जिससे देश की छोटी इंडस्ट्रीज को भी राहत मिले और प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया का नारा भी सार्थक हो सके।
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जीएसटी को लेकर दिया यह सुझाव
एनईए के महासचिव वीके सेठ कहते हैं कि जीएसटी में अभी टैक्स के चार स्लैब हैं, उन्हें मर्ज कर एक किया जाना चाहिए। वह कहते हैं कि जीएसटी से अधिक परेशानी सिस्टम से है। उसका सारा काम एंटरप्रिन्योर्स पर ही पड़ रहा है। एचके गौतम कहते हैं कि महंगाई पर काबू पाने के लिए टैक्स स्ट्रक्चर में बदलाव बेहद जरूरी है।
Published on:
01 Feb 2018 09:54 am
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