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रैन बसेरा: नर सेवा-नारायण सेवा का मंत्र क्यों नहीं अपनाते…, देखें वीडियो

locationनोएडाPublished: Dec 10, 2019 03:03:54 pm

Submitted by:

Ashutosh Pathak

Highlights:
-कुछ शहरों में स्थिति यह है कि रैन बसेरों पर ताला लटका है और लोग बाहर खुले में सोने को मजबूर हैं
-कहीं स्थिति ऐसी है कि रैन बसेरे सिर्फ नाम के हैं
-उनमें ठहरने वालों के लिए न कंबल की व्यवस्था है और न ही शौचालय की

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आशुतोष पाठक

नोएडा। दिसंबर का महीना शुरू हो चुका है और ठंड ने भी दस्तक दे दी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई शहरों में रात का पारा दस डिग्री से भी नीचे पहुंच गया है। ऐसे में उन लोगों के लिए परेशानी बढ़ गई है, जिन्हें रात में अलग-अलग वजहों से घर से बाहर रुकना पड़ रहा है। इसमें गरीब बेघर, महिलाएं और बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे ही लोगों को घर या होटल जैसी सुरक्षित सुविधा देने के लिए हर शहर में रैन बसेरे बनाए गए हैं, जो निगम और प्रशासन की देखरेख में चलते हैं। लेकिन, हैरानी की बात यह है कि कई शहरों में प्रशासन अभी भी गहरी नींद में सो रहा है।
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कुछ शहरों में स्थिति यह है कि रैन बसेरों पर ताला लटका है और लोग बाहर खुले में सोने को मजबूर है। कहीं स्थिति ऐसी है कि रैन बसेरे सिर्फ नाम के हैं। उनमें ठहरने वालों के लिए न कंबल की व्यवस्था है और न ही शौचालय की। इस वजह से लोग रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर रात गुजार रहे हैं। कुछ रैन बसेरों में तो आवारा पशु भी घूम रहे हैं। यह स्थिति वाकई चिंताजनक है। वह भी तब जब सरकार ने हर तरह से इसके लिए अलग व्यवस्था की है। जगह निर्धारित है। बजट निर्धारित किया है। लेकिन अधिकारियों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह व्यवस्था सुचारू तरीके से अमल में लाई जाए या नहीं।
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देखा जाए तो यह मुद्दा जितना जिम्मेदारीपूर्ण है उतना ही मानवीय भी। यह व्यवस्था लोगों की जिंदगी और मौत से जुड़ी है। ऐसे में जरूरतमंदों को बेहतर व्यवस्था और सुकून देने में अधिकारियों को क्या परेशानी है। सुप्रीम कोर्ट भी कई बार इसमें दखल दे चुका है कि ठंड में गरीब-बेघर लोगों को ठहरने के लिए अच्छी व्यवस्था के साथ रैन बसेरे चलाए जाएं। बेहतर होगा कि ठंड में प्रत्येक शहर में अधिक से अधिक से अधिक रैन बसेरे बनाए जाएं। इनमें महिलाओं, पुरुषों और बच्चों के सोने की व्यवस्था अलग-अलग हो। सोने के लिए गद्दे या पुवाल की समुचित व्यवस्था हो। ओढऩे के लिए कंबल भी पर्याप्त हों, इसके लिए विभिन्न एनजीओ से मदद ली जा सकती है।
रैन बसेरों में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के इंतजाम हों। सीसीटीवी कैमरे लगे हों। रैन बसेरे लोगों की पहुंच में हों, जैसे रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और बड़े अस्पतालों के पास खोले जाने चाहिए। यह भी जरूर ध्यान दिया जाए कि हर रैन बसेरे में पानी, बिजली और शौचालय की पुख्ता व्यवस्था हो, जिससे स्वच्छता अभियान का उद्देश्य पूर्ण हो सके। हर किसी को इस व्यवस्था को सही ढंग से लागू करने के लिए आगे आना चाहिए, क्योंकि नर सेवा ही नारायण सेवा मानी जाती है।
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