दरअसल, नोएडा स्टेडियम में गेट नंबर-7 के पास शहर का एक मात्र रैन बसेरा नोएडा प्राधिकरण ने बनवाया है। जो एक दिसम्बर से शुरू हो गया है। इस रैन बसेरे में करीब 100 लोगों के सोने की व्यवस्था है। यहां कंबल, पानी और शौचालय की भी व्यवस्था है और आग से बचाव ने लिए अग्निशमन यंत्र लगा हुआ है। जबकि नियमों के मुताबिक हर एक लाख की आबादी पर एक रैन बसेरा होना चाहिए। 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को आदेश जारी किए थे कि शहरों में जनसंख्या के आधार पर रात्रिकालीन आश्रय स्थलों का निर्माण किया जाए. वहां कंबल, पानी, दवाइयां, शौचालय और बिजली आदि की भी नि:शुल्क सुविधा भी मुहैया की जानी चाहिए. बहरहाल इस प्रकार कई सुविधा इस रैन बसेरे में नजर नही आई।
रात को जब पत्रिका की टीम रियल्टी जांच के लिए सड़कों पर निकली तो कई कड़वी सच्चाईयों का सामना करना पड़ा। रैन बसेरा सिर्फ बेघर लोगों के लिए ही सिर छुपाने का आश्रय स्थल नहीं है। यहाँ वे लोग भी रात बिताने आते हैं जिनका भरा पूरा परिवार है। एक ऐसे ही शख्स बी.पी भक्त रैन बसेरे में मिले जिनके परिवार में तीन भाई और तीन बेटे हैं। वह खुद भी डीयू से लाइब्रेरियन के पद से रिटायर्ड हैं और 20 हज़ार रुपये की पेंशन भी मिलती है। वह बताते हैं कि घर में झगड़ा हुआ तो परिवार वालों ने उन्हें निकाल दिया। पिछले एक हफ्ते से वह रैन बसेरे में ही रात बिताने आ रहे हैं। जबकि वाई.एस राणा पेशे से होटल के सेफ हैं। उत्तराखंड से नौकरी की तलाश में आए थे। शाप्रिक्स मॉल में नौकरी मिल गई है। लेकिन, रेस्टोरेन्ट में निर्माण का काम चल रहा है तो दो दिन के लिए रुकने के लिए उन्होंने रैन बसेरे का सहारा लिया।