26 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

ग्रामीणों को नौकरी में आरक्षण की उठी मांग, RTI से सामने आए लोगों के कई अधिकार

Highlights: -नोवरा का एक प्रतिनिधिमंडल विधायक पंकज सिंह से मिला -इस दौरान उन्हें आवश्यक प्रावधानों की जानकारी सबूत समेत दी गई -जिस पर विधायक ने प्राधिकरण से बात करने का आश्वासन दिया

2 min read
Google source verification
ss.jpg

नोएडा। प्राधिकरण अपने द्वारा बनाये गए कानूनों के जाल में फंसता नजर आ रही है। कुछ दिन पहले नोएडा प्राधिकरण ने औद्योगिक प्लाट मालिकों को नोटिस जारी किया और फिर वह मामला उद्योगपतियों के दबाव में रफा दफा कर दिया गया, जबकि ग्रामीण जिनकी ज़मीन लेकर उद्योग स्थापित हुए हैं, उनके अधिकारों का हनन जारी है। यह कहना है कि समाजसेवी एवं नोवरा (नोएडा विलेज रेसिडेंट्स एसोसिएशन) के अध्यक्ष रंजन तोमर का।

यह भी पढ़ें : नोएडा में काली गाड़ी से चलेंगे पुलिस कमिश्नर, DM का पदनाम भी किया जा सकता है चेंज

दरअसल, बुधवार को नोवरा का एक प्रतिनिधिमंडल नोएडा विधायक पंकज सिंह से मिला और उन्हें आवश्यक प्रावधानों की जानकारी सबूत समेत दी। जिस पर विधायक ने कहा कि वह इस मुद्दे पर नोवरा और ग्रामीणों के साथ हैं और उन्हें उनके अधिकार मिलेंगे। इसके लिए वह पहले प्राधिकरण से लिखित में जवाब मांगेंगे और जरूरत पड़ने पर मुख्यमंत्री से भी इस बाबत बात करेंगे।

पांच प्रतिशत नौकरी का अधिकार दिलाती है धारा 20

रंजन तोमर का कहना है कि उन्होंने एक आरटीआई डाली थी। जिसमें पहला सवाल था कि प्लाट आवंटन के दौरान प्राधिकरण एवं आवंटी के बीच होने वाले करार की धारा 20 की फोटोकॉपी प्रदान की जाए। इसके जवाब में मिली कॉपी में साफ़ लिखा हुआ है कि 'अपने उद्योग के लिए कुशल अथवा अकुशल कारीगर /श्रमिक में से 5 प्रतिशत उन ग्रामीणों को नौकरी दी जायेंगी जिनकी ज़मीन लेकर वह औद्योगिक बस्ती बसी है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि कानूनी भाषा में नौकरी देने वाली बात को अनिवार्य माना गया है।

यह भी पढ़ें: निर्भया के दोषियों को फांसी पर लटाकने के बाद पवन जल्‍लाद को मिलेंगे 1 लाख रुपये, उससे करेंगे बेटी की शादी

आज तक लागू नहीं हुई प्रणाली

उन्होंने बताया कि दूसरे प्रश्न में नोएडा प्राधिकरण द्वारा प्लाट की घोषणा करने पर निकाले जाने वाले विज्ञापन अथवा ब्रोशर की धारा 32 में भी उपर्लिखित शर्त उद्योगपतियों को मानने की बात लिखी है। अर्थात विज्ञापन स्तर पर एवं फिर करार स्तर पर प्राधिकरण एवं उद्योगपति इस बात से भली भाँती वाकिफ हैं कि उन्हें पांच प्रतिशत नौकरी ग्रामीणों को दिलवानी ही पड़ेंगी। किन्तु मानता कोई नहीं है। पिछले लगभग चालीस वर्षों से यह प्रणाली कागजों में तो है परन्तु लागू की नहीं गई है।

तोमर ने बताया कि धारा 34 प्राधिकरण की सीईओ को यह अधिकार देता है कि वह आवंटन में बदलाव, संशोधन आदि कभी भी कर सकते हैं और यह आवंटी एवं उनके उत्तराधिकारिओं पर बाध्य होगा। यह बेहद बड़ी शक्ति है, जिसके द्वारा प्राधिकरण आवंटियों को आवंटन की शर्तें मानने को बाध्य कर सकता है। उनका कहना है कि ग्रामीणों के अधिकारों को प्राधिकरण अब उन्हें दे दें या फिर नोवरा और ग्रामीण अपने अधिकारों को लोकतान्त्रिक तरीके से हासिल करने का भी दम रखते हैं।