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बढ़ती आत्महत्या की घटना में सामने अक्सर डिप्रेशन और डयूटी से छूट्टी न मिलना भी सामने आता है। दरोगा विजय कुमार ठेनुआ के मामले में भी यहीं सामने आया है। गाजियाबाद के एसएसपी वैभव कृष्ण ने बताया कि विजय सोमवार को लौटा था। ये वृदावंन में ठाकुर बांके बिहारी जी के दर्शन कर लौटे थे। इन्होंने कविनगर कोतवाली के स्टाफ क्वार्टर में विजय ने रिवॉल्वर से कनपटी पर गोली मारकर आत्महत्या कर ली। रूममेट मुंशी ने मामले की सूचना अन्य पुलिसकर्मियों को दी थी। घायल सब इंस्पेक्टर को यशोदा अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया था। यहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था। एसएसपी वैभव कृष्ण ने बताया कि सामने आया है कि विजय अकसर तनाव में रहते थे। मूलरूप से अलीगढ़ के नया गांव निवासी सब इंस्पेक्टर विजय कुमार ठेनुआ (42) मथुरा की कृष्णा नगर कालोनी में रहने वाले एक युवक पर जानलेवा हमला व बवाल का मुकदमाा चल रहा था। जिसकी वजह से ये डिप्रेशन में चल रहे थे। परिजनों की माने तो ये डिप्रेशन की गोली भी खाते थे। तनाव में आत्महत्या के पहले भी सामने आए है मामले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मार्च 2018 में रिपोर्ट पेश की थी। रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि पिछले 6 सालों में 700 केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल ने आत्महत्या की हैै। वहीं रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 5 साल में दिल्ली पुलिस के 40 से अधिक जवानों ने आत्महत्या की है। इनके अलावा 12 मई 2018 को महाराष्ट्र के पूर्व चीफ हिमांशु राय ने आत्महत्या की थी। कर्नाटक के बेलगावी शहर में जुलाई 2016 को डीसीपी और कोडागू जिले में जुलाई 2016 में डीसीपी रैंक के अन्य अधिकारी ने आत्महत्या कर ली। हालही में दिल्ली पुलिस के सिपाही ज्ञानेंद्र राठी ने भी आत्महत्या कर ली थी। कुछ दिन पहले यूपी पुलिस के एएसपी राजेश साहनी और कानपुर के एसपी सिटी सुरेंद्र दास ने भी आत्महत्या की थी।
डयूटी का रहता है दवाब पुलिसकर्मियों और अधिकारियों पर ड्यूटी व कानून व्यवस्था बनाए रखने, अपराध नियंत्रण और मुकदमों की विवेचनाओं का बोझ अधिक होता है। डयूटी और विवेचनाओं के बोझ से परेशान होकर पुलिसकर्मी मौत को गले लगा रहे हैं। बताया गया है कि दरोगा विजय कुमार ठेनुआ पर भी 100 से अधिक केसों की विवेचनाएं कर रहे थे।
नहीं मिलती थी छूट्टी डीएसपी अभिनव शुक्ला ने बताया कि पुलिसकर्मियोंं पर विवेचनाओं का प्रेशर अधिक रहता है। लिखा-पढ़ी के अलावा कोर्ट कचहरी जाना लगा रहता है। साथ ही विवेचनाओं को लेकर अफसरों का भी दवाब रहता है। टाइम पर विवेचना पूरी न होने पर फटकार भी झेलनी पड़ती है। वहीं छूट्टी भी नहीं मिल पाती है।परिवार के बीच में कभी—कभार की त्यौहार मनाने का मौका मिलता है।उन्होंने बताया कि सालभर में 30 पीएल और 30 ईएल मिलती है। सालभर में 25 छूट्टी भी नहीं कर पाते है।साथ ही 24 घंटे में से 16 घंटे के करीब पुलिसकर्मियों को डयूटी करनी पड़ती है। यह वजह भी डिप्रेशन का शिकार बनाती है।