तालिबानी सेना ने लड़ाई के ऐतिहासिक क्षेत्रों दक्षिण व पूर्व से हट कर उत्तरी इलाके में अफगान के कमजोर सैनिकों पर हमला कर दिया। सालों तक अमरीकी कमांडरों के साए में रही कई छोटी चौकियां खत्म हो चुकी हैं। अफगान कमान के व्यापक बदलाव से भी निस्संदेह कुछ समस्याएं खड़ी हुई हैं, जैसे भ्रष्टाचार, परन्तु अमरीका की कुछ जिम्मेदारी बनती है। अफगानी सैन्य चौकियां अलग-थलग हो चुकी हैं और अमरीका ने हवाई मार्ग से संसाधनों की आपूर्ति रोक दी है। अफगान की सीमित एयरलिफ्ट क्षमता को देखते हुए सैनिक आश्वस्त नहीं हैं कि अगर युद्ध होता है, तो उन्हें पुन: तैनात किया जाएगा या हटाया जाएगा।
अब भी उम्मीद की किरण बाकी है। यह कहना अतिशयोक्ति होगा कि केवल अफगानी कमांडो लड़ रहे हैं, सेना नहीं। हेलमंड प्रांत में सेना कड़ाई से मुकाबला कर रही है और प्रांतीय राजधानी में जस की तस खड़ी है। एक मित्र ने मुझे बताया कि अफगान सेना ने दूरवर्ती निमरूज प्रांत में तालिबान के हमले के तीन दिन बाद स्थानीय लड़ाकों की मदद से एक जिला वापस ले लिया। यह तालिबान के खिलाफ अफगानिस्तान के डट कर खड़े होने का एक संकेत है। तालिबान विरोधी लड़ाकों को पहले से ही धमकियां दे रहा है। राष्ट्रपति जो बाइडेन कह चुके हैं कि अफगान सरकार की जिम्मेदारी बहुत बड़ी है। इसे प्रतिरोध का नेतृत्व और समर्थन करना चाहिए। एक रणनीति बना कर जनता को भी उससे अवगत करवाना चाहिए।
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी अहमदजई ने बताया कि उनके पास ऐसी रणनीति है। उन्हें इसे सार्वजनिक कर देना चाहिए। अमरीका को भी समझना होगा कि उसके कारण अफगान का मनोबल गिरा है और अब उसे इसे ऊंचा उठाने में भी मदद करनी चाहिए। इतिहास गवाह है कि जब लोग एक पक्ष को जीतते देखते हैं, लड़ाई रोक दी जाती है और युद्ध खत्म हो जाते हैं। 2001 में यही हुआ जब कुछ युद्धों बाद तालिबान का मनोबल गिर गया। अगर अब अफगानिस्तान की सेना हारने लगती है, तो अमरीका की खुद की मुश्किल बढ़ सकती है।
घोषित 11 सितम्बर की अंतिम तिथि से पहले ही अमरीकी सेना का वहां से निकलने का निर्णय चौंकाने वाला था। अफगान द्विभाषियों और अमरीकी सरकार के लिए काम करने वाले अफगानियों को लगा कि अमरीका तालिबान के खिलाफ लडऩे की उनकी क्षमता पर भरोसा खो चुका है। या वे मान सकते हैं कि अमरीका जिम्मेदारी से पीछे हट रहा है। अमरीका अफगानी सुरक्षा बलों का समर्थन करना जारी रखेगा। इसके अलावा मिश्रित संदेशों के कारण अतिरिक्त विमान देने की सहायता की बात भी सही तरीके से उन तक नहीं पहुंची।
तालिबान फिलहाल बड़े शहरों पर हमले नहीं कर रहा है, लेकिन पर्यवेक्षकों का मानना है कि वह शीघ्र ही ये हमले शुरू कर सकता है। अमरीका को तुरंत सांकेतिक कार्रवाई जारी रखकर स्पष्ट रूप से सहायता का संदेश देना होगा। बड़े शहरों में भोजन व हथियारों की हवाई आपूर्ति की जा सकती है। विरोधी बलों की उपकरणों व फंडिंग जरूरतों के अनुसार उन्हें आपात सहायता उपलब्ध करवाई जा सकती है। असल मुद्दा यह है कि अमरीका की कार्रवाई नजर आनी चाहिए।