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द वाशिंगटन पोस्ट से… जलवायु परिवर्तन की हर कहानी निराशाजनक हो, जरूरी नहीं

locationनई दिल्लीPublished: Aug 27, 2021 12:34:32 pm

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Patrika Desk

Climate change : जो फिल्में जलवायु परिवर्तन पर अनुकूल प्रतिक्रिया की टोह लेती हैं, उनमें भी नकारात्मक कल्पनाएं हावी रहती हैं।

The Day After Tomorrow फिल्म का एक दृश्य

The Day After Tomorrow फिल्म का एक दृश्य

एलिसा रोजेनबर्ग

(लेखिका संस्कृति व राजनीति के टकराव के समाज पर प्रभावों पर लेखन करती हैं)

हाल ही आई एक साइंस फिक्शन मूवी ‘रैमिनिसेंस’ (‘reminiscence’) वास्तव में कोई जलवायु परिवर्तन Climate change पर आधारित फिल्म नहीं है, बल्कि एक ऐसी मशीन की कहानी है, जिससे लोग अपने अतीत में पहुंच कर पुरानी यादें ताजा करते हैं। हॉलीवुड की बड़े बजट वाली एक्शन फिल्में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे के समाधान में असमर्थ ही साबित होती हैं। यहां तक कि ‘मुद्दा आधारित’ फिल्में भी इसी श्रेणी में आती हैं। कुछ फिल्में अच्छी भी होती हैं, जैसे जॉर्ज मिलर की ‘मैड मैक्स: फ्युरी रोड’ ऐसी ही एक फिल्म है जो जलवायु तनाव और लैंगिक हिंसा के बीच संबंध पर आधारित है। ‘स्नोपियर्सर’ snowpiercer और ‘द डे आफ्टर टुमारो’ The Day After Tomorrow भी जलवायु परिवर्तन पर आधारित फिल्में हैं। इन सभी फिल्मों में एक बात समान है कि जलवायु परिवर्तन जितना विनाशकारी होगा, उतनी ही मानव प्रतिक्रियाएं भी।

जो फिल्में जलवायु परिवर्तन पर अनुकूल प्रतिक्रिया की टोह लेती हैं, उनमें भी नकारात्मक कल्पनाएं हावी रहती हैं। ‘इंटरस्टैलर’ में भी दिखाया गया है कि मानवता पृथ्वी से कहीं दूर जा कर बसी है, क्योंकि पृथ्वी को बचाया नहीं जा सकता। जेम्स कैमरून की पहली ‘अवतार’ मूवी में दिखाया गया कि संसाधनों के अभाव में मनुष्य जाति पूरी गैलेक्सी पर झपट पड़ती है। सही है कि दर्शकों को यह बताना जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन के परिणाम गंभीर हो सकते हैं, लेकिन सारे राजनीतिक बदलावों के साथ इस संबंध में जागरूकता ही काम आएगी।

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अगर फिल्म निर्माता या राजनेता चाहते हैं कि जनता नई आदतें अपनाए, तो बजाय निराशा के आम आदमी को नया दृष्टिकोण देने की जरूरत है। सच यह है कि आम आदमी फिल्मों से ही सीखे, जरूरी नहीं। बहुत से लोग फिल्में देखते ही नहीं। टेस्ला की ही कहानी ले लीजिए। आसानी से माना जा सकता है कि इससे हर कोई वाकिफ है। इसके सीईओ एलन मस्क ने खुद को सर्वव्यापी नाम बना लिया है। यह गलती है। वॉल स्ट्रीट जर्नल रिपोर्टर टिम हिगिन की टेस्ला पर लिखी गई किताब ‘पावर प्ले’ के मुताबिक टेस्ला का असल नायक कम्पनी का पूर्व तकनीकी अधिकारी जे.बी. स्ट्रॉबैल जैसा कोई व्यक्ति होना चाहिए, जिसने टेस्ला की कारों के शक्तिशाली बैटरी पैक डिजाइन किए। स्ट्रॉबेल की मुख्य भूमिका वाली ‘पावर प्ले’ फिल्म ‘फोर्ड वी फरारी’ जैसी हो सकती है, जिसमें दुनिया को जीवाश्म ईंधन के दुष्प्रभावों से बचाते हुए दिखाया जा सकता है।

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‘द मिनिस्ट्री फॉर द फ्यूचर’ के उपन्यासकार किम स्टैनले रॉबिन्सन ने यह कल्पना करने में दशकों लगा दिए कि मानव प्रतिक्रियाएं क्या होंगी जब कठिन परिस्थितियां सामने होंगी जैसे कि डूबता हुआ न्यूयॉर्क शहर! उनकी ‘मार्स’ ट्राइलॉजी (उपन्यास शृंखला) सदियों से चली आ रही कल्पना का ही शब्द चित्र खींचती है कि कैसे धर्म से लेकर कॉरपोरेट गवर्नेंस तक मंगल ग्रह के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में उसके क्षितिज तले विकसित होंगे।

रॉबिन्सन के ही एक अन्य उपन्यास ‘न्यूयॉर्क 2140’ में भी जलवायु परिवर्तन के भयावह स्वरूप की बात की गई है। रॉबिन्सन के कथानक के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन हमारा जीवन उलट-पलट देगा, लेकिन हम सब धरती के इस रूपांतरण पर अपनी प्रतिक्रिया में कुछ योगदान तो दे ही सकते हैं। ‘रैमिनिसेंस’ का अंत पैसे के बल पर बाढ़ से अपने बचाव का रास्ता निकालने वाले कुलीन वर्ग के खिलाफ विद्रोह की संभावना की ओर इशारा करता है। ह्यू जैकमैन का चरित्र एक संवाद में कहता है – ‘एक रिसाव ने ही बाढ़ की शक्ल ले ली… हो सकता है इस बार यह दुनिया को धो डाले।’ निश्चित ही मनुष्य को साफ-सुथरी स्लेट मिलेगी तो वह उस पर कुछ नया लिखेगा भी।

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