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हास्य-व्यंग्य विकारों के शमन का माध्यम, दूरी न बनाएं

सच है कि आज की तनाव भरी जिन्दगी में लोग हंसना-हंसाना भूल सा गए हैं। हंसी किसी गूलर के फूल सी हो गई है। सही अर्थों में देखा जाए, तो हास्य से मनुष्य का चित्त निर्मल होता है, थोड़ी देर के लिए ही सही उसके विकारों का शमन होता है।

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Patrika Desk

Mar 06, 2023

हास्य-व्यंग्य विकारों के शमन का माध्यम, दूरी न बनाएं

हास्य-व्यंग्य विकारों के शमन का माध्यम, दूरी न बनाएं


अतुल चतुर्वेदी
लेखक और
साहित्यकार
होली का त्योहार आते ही वातावरण में हास-परिहास और मनोविनोद की लहर सी उठने लगती है। होली सामाजिक विषमताओं और वर्जनाओं से मुक्ति का त्योहार है। समाज में व्याप्त निराशा और मनमुटावों को दूर करके हिलमिल कर रहने का संदेश देता है यह उत्सव। भारतीय शास्त्रो में हास्य को नवरसों में से एक माना गया है। भरत मुनि के अनुसार शृंगार रस की अनुकृति हास्य है, यहां अनुकृति का अर्थ है नकल करना, नकल हंसी की स्वाभाविक जड़ है। हास्य न केवल जीवन का अनिवार्य तत्व है, बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी परमावश्यक है। निदा फाजली का एक शेर है, 'घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूं कर लें किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए। ' यानी कि बच्चे की हंसी का पुण्य ईश्वर की इबादत जैसा ही महत्त्वपूर्ण है और उतना ही पवित्र । एक शायर इसी संदर्भ में कहते हैं कि, 'या तो दीवाना हंसे या तू जिसे तौफीक दे , वरना इस दुनिया में रहकर मुस्कुराता कौन है। ' सच है कि आज की तनाव भरी जिन्दगी में लोग हंसना-हंसाना भूल सा गए हैं। हंसी किसी गूलर के फूल सी हो गई है। सही अर्थों में देखा जाए, तो हास्य से मनुष्य का चित्त निर्मल होता है, थोड़ी देर के लिए ही सही उसके विकारों का शमन होता है।
तुलसीदास की रामचरितमानस के विष्णु नारद प्रसंग से लेकर, केशव की रसिक प्रिया, बिहारी के दोहे आदि में हास्य रस के कई उदाहरण मिलते हैं। स्वास्थ्य के जानकारों के अनुसार हंसने से हमारे शरीर मे एंडोर्फिन नाम का रसायन निकलता है, जो दिल के दौरे से हमारी रक्षा करता है। हंसने से न केवल शरीर में ऑक्सीजन की कमी दूर होती है, वरन् इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है। इन दिनों हास्य योग का भी प्रचलन है, सुबह-सुबह पार्कों में आपको जोर-जोर से हंसते हुए लोग मिल जाएंगे। हास्य योग डायबिटीज और पीठ का दर्द दूर करता है। दिन भर में एक घंटे हंसने से लगभग 400 कैलोरी ऊर्जा कम होती है, जिससे वजन भी नियंत्रित रहता है। हंसना तनाव कम करने का भी माध्यम है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसलिए रघुबीर सहाय के शब्दों में, 'हंसो , हंसो जल्दी हंसो ...।Ó परन्तु आजकल के युग में जब लोगों की भावनाएं जरा-जरा सी बात पर आहत होती हों, क्या किसी पर हंसना इतना सरल रह गया है ? व्यक्ति का अहं बहुत बड़ा हो गया है। आलोचना और विरोध बर्दाश्त करने की क्षमता समाप्त-सी हो गई है, चाहे सरकार हो या व्यक्ति विशेष। हर कोई अपनी स्तुति और प्रशंसा का भूखा है, आत्ममोह से ग्रस्त दुनिया सेल्फी में डूबी हुई है। होली पर चैती, होरी, धमार, रसिया, फाग, जोगिरा गाने और सुनाने की परंपरा प्राय: लुप्त हो चुकी है ।
सामान्य जन हास्य को व्यंग्य से जोड़ देते हैं और दोनों का एक ही अर्थ समझते हैं । व्यंग्य का नाम लेते ही एक मुस्कान सी चेहरे पर तैर जाती है कि कोई मनोरंजक प्रसंग होगा अब, जबकि व्यंग्य उच्चतर कर्म है। इसमे व्यंजना शब्द शक्ति का प्रयोग किया जाता है। गुजराती मे यह कटाक्ष है, तो मराठी में उपरोध और उर्दू में तंज । मेरीडिथ व्यंग्यकार को सामाजिक ठेकेदार मानता है, उसका काम है समाज मे व्याप्त दोषों, विषमताओं और विसंगतियों पर जमकर प्रहार करना, सुधार करना। कार्टून हास्य-व्यंग्य की ही एक विधा है, जो आज खतरे में है। इसका सीधा सा अर्थ है कि न केवल भारतीय समाज, बल्कि राजनेताओं की सहन क्षमता बहुत कमजोर हो चुकी है। वे हर विरोध को दबा देना चाहते हैं, सुनना नहीं चाहते । यह संकीर्णता समाज के लिए घातक है। एक स्वस्थ और लोकतांत्रिक समाज में हास्य के लिए भी जगह होनी चाहिए और आलोचना के लिए भी सम्मानजनक स्थान हो। फिर पैरोडी हो या डार्क ह्यूमर, शारीरिक ह्यूमर या ऑब्जर्वेशनल ह्यूमर उसका काम हंसाना है । लेकिन हंसी द्विअर्थी या फूहड़ नहीं होनी चाहिए। विवशता का मजाक उड़ाने वाली हंसी त्याज्य है। आज मंच की कविता इसी हल्केपन और चुटकुलेबाजी का शिकार हो चुकी है, स्तरीय हास्य की रेखा बारीक हो चुकी है। वाचालता ने कवियों को विदूषक और फतवेबाज का स्थान दे दिया है। हास्य कलाकार चार्ली चैपलिन ने कहा है, 'मेरा दर्द किसी के हंसने का कारण हो सकता है, लेकिन मेरी हंसी कभी किसी के दर्द का कारण नहीं होनी चाहिए।' ये है हंसी का मूल मर्म। इस तरल और निर्मल हास्य भाव को बचाने की कोशिश करें।