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विश्व ऊंट दिवस : ऊंटों के अस्तित्व पर टिका है रेगिस्तान का पारिस्थितिकी तंत्र

राजस्थान ही नहीं, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में भी कम होती जा रही ऊंटों की संख्या ।ऊंटों की उपादेयता को ध्यान में रखकर ही भारत सरकार ने 1984 में राजस्थान के बीकानेर में राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र की स्थापना की थी।सरकारों को चाहिए कि वह गोशालाओं की तरह ऊंटशाला खोलने की पहल करें। लुप्त होते ऊंटों को बचाने की यह प्राथमिक अनिवार्यता है।

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विश्व ऊंट दिवस : ऊंटों के अस्तित्व पर टिका है रेगिस्तान का पारिस्थितिकी तंत्र

विश्व ऊंट दिवस : ऊंटों के अस्तित्व पर टिका है रेगिस्तान का पारिस्थितिकी तंत्र

भुवनेश जैन, (क्षेत्रीय निदेशक, नेहरू युवा केंद्र संगठन एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए सक्रिय)

गर्म होती धरती, जलवायु परिवर्तन , पीने के पानी की समस्या के साथ जीवन शैली में आए बदलाव ने लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम की है। कोरोना महामारी में भी वायरस का प्रकोप बढऩे का बड़ा कारण कम होती रोग प्रतिरोधक क्षमता को ही माना जा रहा है। विभिन्न शोध के जरिए यह प्रमाणित हो चुका है कि ऊंटनी का दूध न केवल रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है बल्कि यह मधुमेह, क्षय रोग, ऑटिज्म एवं मंदबुद्धि के उपचार के साथ दस्त, गठिया, हेपेटाइटिस के निदान में भी उपयोगी है। संयुक्त अरब अमीरात ने तो ऊंटनी के दूध के लिए पृथक से डेयरी स्थापित कर दी है। वहां ऊंटों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। साथ ही ऊंटनी के दूध का प्रसंस्करण, परीक्षण व वितरण वैज्ञानिक तौर-तरीके से होता है।

हमारे देश में भी एक दौर था जब ऊंट पालकों के लिए ऊंटनी का दूध ही आहार था। ऊंटनी के दूध में गाय के दूध की अपेक्षा ज्यादा लौह तत्व एवं विटामिन सी होता है। फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने ऊंट के दूध को खाद्य आहार के रूप में मान्यता दे दी है। यहां तक कि ऊंट की एंटीबॉडी से विषरोधी दवा तैयार करने का काम भी प्रगति पर है। वर्ष 1984 में भारत सरकार ने राजस्थान के बीकानेर में राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र की स्थापना भी इसी उपादेयता को ध्यान में रखकर की थी। यहां ऊंटों के प्रजनन, पोषण, आनुवांशिकी व स्वास्थ्य की वैज्ञानिक जानकारी के लिए शोध जारी है।

मोटे अनुमान के मुताबिक दुनिया में करीब 47 देशों में 3.5 करोड़ ऊंट हैं, लेकिन भारत समेत अफगानिस्तान, चीन, इजरायल, मंगोलिया, इराक, मोरक्को, तुर्की आदि देशों में ऊंटों की संख्या कम होती जा रही है। वर्ष 2012 में भारत में ऊंटों की संख्या 4 लाख थी, जो वर्ष 2019 में 2.5 लाख ही रह गई। देश भर में सर्वाधिक ऊंट राजस्थान में ही पाए जाते हैं। राजस्थान में 2012 में ऊंटों की संख्या 3.26 लाख थी और 2019 में यह संख्या 2.13 लाख रह गई। गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में भी ऊंटों की संख्या कम होती जा रही है।

राजस्थान में ऊंट को वर्ष 2014 में राज्य पशु का दर्जा दिया गया था। उष्ट्र विकास योजना अब कहीं नजर नहीं आती। इनकी तेज गति से कम होती संख्या से इनके अस्तित्व पर मंडरा रहा संकट साफ दिखाई दे रहा है। ऊंटों के संरक्षण के लिए प्रयास नहीं हुए तो समूचे रेगिस्तान का पारिस्थितिकी तंत्र तो गड़बड़ाएगा ही, ऊंट के माध्यम से भविष्य में सेहत से जुड़ी चुनौतियों का मुकाबला करने की संभावनाएं भी क्षीण हो जाएंगी। आज हालात ये हो गए हैं कि ऊंट पालकों ने भी ऊंटों को भगवान भरोसे छोडऩा शुरू कर दिया है, जबकि कभी ये इन ऊंटों के भरोसे ही जीवन जी रहे थे।

ऐसी विषम परिस्थितियों में सरकारों को चाहिए कि वह गोशालाओं की तरह ऊंटशाला खोलने की पहल करें। लुप्त होते ऊंटों को बचाने की यह प्राथमिक अनिवार्यता है। ऊंटों के स्वास्थ्य, ऊंट डेयरी, ऊंट से जुड़े शिल्प को बढ़ावा देने के साथ ऊंट पालकों को अर्थिक मदद की भी जरूरत है। ओरण गोचर भूमि के संरक्षण व विकास के प्रयासों के साथ ऊंट संरक्षण नीति भी जरूरी है। ऐसा समय रहते नहीं हुआ तो 'रेगिस्तान के जहाज' का विलुप्त होना तय है। जो ऊंट सदियों से रेगिस्तान में मनुष्य जीवन का आधार रहे, विडम्बना है कि आज उन्हीं के जीवन के लिए आधार का संकट पैदा हो गया है।