
समय का फेर। वक्त की आवाज। नारे कैसे बदलते हैं। आजादी से पहले 'नेताजी' ने नारा लगाया था- तुम मुझे खून दो, मैं तुझे आजादी दूंगा। काल का पहिया घूमा और आजादी के बाद नेताजी पुत्र ने आवाज लगाई- तुम मुझे वोट दो, मैं तुम्हें 'घी' दूंगा।
चुनाव आ रहे हैं और वादों का मक्खन लिए नेता घूम रहे हैं। जिसे देखो वही बांटने में लगा है। कोई मोबाइल बांट रहा है तो कोई लैपटॉप। कोई पांच रुपए में भरपेट भोजन की बात कर रहा है तो कोई सस्ते मकान का सपना दिखा रहा है। कोई कह रहा है कि मुफ्त 'वाई-फाई' दूंगा तो कोई स्मार्टफोन का चस्का लगा रहा है ।
वादों की इस आंधी में वोटर सूखे पत्तों की तरह फडफ़ड़ाता उड़ रहा है। नेता बड़ी-बड़ी रैलियां कर रहे हैं। कसम से इतनी लम्बी रैली तो हमने नड़ाल और फेडरर के टेनिस मैचों में भी नहीं देखी।
पत्रकार, नेता, चुनावी विश्लेषक और ज्योतिषी सब अति व्यस्त हैं। हमें तो नरेंद्र भाई से सहानुभूति हो चली है। जिस दिन से प्रधानमंत्री बने हैं न पैरों को आराम मिला है न जुबान को। एक पैर विदेश में तो दूसरा पैर चुनावी सभाओं में फंसा है। करें भी क्या करें। किसी पर विश्वास ही नहीं।
केजरीवाल तो दिल्ली और पंजाब दोनों के मुख्यमंत्री बनना चाह रहे हैं, नरेंद्र भाई को तो देश के प्रधानमंत्री के साथ यूपी और गोवा तक के मुख्यमंत्री का भार संभालना पड़ सकता है। एक अनार सौ बीमार। किस प्रदेश में जाकर क्या वादे करें, याद ही नहीं रहता।
गोवा में गोवा को देश का सर्वोत्तम प्रदेश बनाने का वादा करना पड़ रहा है तो यूपी को देश का सिरमौर प्रांत। वोटर सोच रहा है कि वाह! मुफ्त के माल की बरसात हो रही है।
एक कथा सुनें। नेताजी ने जाकर लोकतंत्र की भेड़ों से कहा- चिन्ता मत करो। सत्ता में आए तो सभी को मुफ्त कम्बल देंगे। भेड़ें खुश। नाचने लगी। जब नाच चुकी तो भेड़ के बेटे ने पूछा- मम्मी! कम्बल बनाने के लिए नेताजी 'ऊन' कहां से लाएंगे। भेड़ तभी से सदमे में है लेकिन 'वोटर' नाच रहा है।
व्यंग्य राही की कलम से
Published on:
31 Jan 2017 03:23 pm
बड़ी खबरें
View Allओपिनियन
ट्रेंडिंग
