
Indian Politics
आम्बेडकर सभी धर्मों का समान रूप से आदर करते थे। वे हिन्दू धर्म के खिलाफ़ नहीं थे वरन् वे इस धर्म की बुराईयों को तथा असमतावादी विचारों को दूर करना चाहते थे। वे लिखते हैं कि जब मैं ब्राह्मणवाद की बात कह रहा होता हूँ तो मेरा मंतव्य ब्राह्मण जाति की शक्ति , विशेषाधिकारों या लाभों से नहीं है वरन् मेरे मुतल्लिक उसका अर्थ है- स्वतंत्रता, समता और भ्रातृत्व को नकारना।
यह तत्व हर वर्ग के लोगों में मौजूद है तथा जातिप्रथा को नष्ट करने के लिए धर्म पर, अंधविश्वासों पर और धार्मिक पाखंडों पर प्रहार करना होगा। वे मानते थे कि धर्म परिवर्तन संबंधी विचारधारा दलितों की मुक्ति का विकल्प नहीं हो सकती। स्त्री मुक्ति की बात और उसे शिक्षा का अधिकार प्रदान करने की बात भी आम्बेडकर ही पहले पहल करते हैं।
इसी संदर्भ में निसंदेह बीता वर्ष भी स्त्री मुक्ति का एक नया अध्याय लिखेगा जब सुप्रीम कोर्ट अनेक मंदिर ट्रस्टों से यह सवाल करता है कि क्या ***** के आधार पर किसी को मंदिर के प्रवेश से वंचित किया जा सकता है।
वर्तमान में राजनीति हर पक्ष पर हावी है ऐसे में अगर वह गैर बराबर समाज व्यवस्था को बदलने में कामयाब होती है तो समाज व्यवस्था के जातिगत ढाँचे की ढहने की कल्पना की जा सकती है और सही मायने में केवल औऱ केवल तब ही डॉ बाबा साहेब आंबेडकर ने जिस जनतांत्रिक समाजवादी व्यवस्था का स्वप्न देखा था वो सही मायने में साकार भी हो सकेगा। आज दलित चेतना के विकास में जिसमें स्त्री भी शामिल है के व्यापक प्रसार की आवश्यकता है । इस चेतना के व्यापक प्रसार में अस्मितावादी आंदोलन और साहित्य सतत रूप से योगदान कर रहा है।
आंबेडकर की वैचारिकी को केन्द्र में रखकर रचा साहित्य ऐसे फलक की चाहना रखता है जो असीम औऱ पंख पसार उड़ने के अवसर प्रदान करता हो। नकार औऱ विद्रोह इस साहित्य के मूल स्वर है। वर्तमान में अनेक संदर्भों में मनुस्मृति के तालिबानी विस्तार को रोकने के लिए नीली रोशनी के प्रसार की सतत आवश्यकता है जिसके लिए आंबेडकर औऱ फूले के चिंतन को व्यावहारिक स्तर पर अपनाना होगा। अराजकता, नैराश्य, स्वार्थपरता सभी का विरोध हो बस । अलग रखिए उन्हें जो धर्म , ***** , अर्थ , रंग, वर्ण आदि के नाम पर इक रूह को दूसरी रूह से अलग करते हैं।
विमलेश शर्मा
फेस बुक वाल से साभार
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