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ट्रैवलॉग अपनी दुनिया : स्थापत्य का बेजोड़ नमूना हुमायूं का मकबरा

16वीं शताब्दी में बनी यह इमारत कहने को तो एक मकबरा है पर भव्यता ऐसी जैसे कि किसी भव्य किले में होती है।

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ट्रैवलॉग अपनी दुनिया : स्थापत्य का बेजोड़ नमूना हुमायूं का मकबरा

ट्रैवलॉग अपनी दुनिया : स्थापत्य का बेजोड़ नमूना हुमायूं का मकबरा

संजय शेफर्ड (ट्रैवल ब्लॉगर)

देश की राजधानी दिल्ली में यों तो वास्तुकला और शिल्पकला के कई बेजोड़ नमूने हैं, लेकिन इनमें सबसे अलग है मुगल बादशाह हुमायूं का मकबरा। आज सैर इसी स्मारक की, जो दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा स्मारक होने के अलावा भी कई तरह की खूबियों को अपने में समेटे हुए है। चाहे बात संस्कृति की हो, इतिहास, स्थल या स्थापत्य की, हर मायने में इसकी विशिष्टता देखते ही बनती है। 16वीं शताब्दी में बनी यह इमारत कहने को तो एक मकबरा है पर भव्यता ऐसी जैसे कि किसी भव्य किले में होती है।

चाहे मुख्य दरवाजा हो या फिर मुख्य इमारत, नजर देखने को उठती और लम्बे समय के लिए ठहर-सी जाती है। जैसे ही हम किले के अंदर पहला कदम रखते हैं, खुद को पांच सौ साल पुराने अतीत में इतिहास के उन पन्नों में पाते हैं जो मुगल सल्तनत के बनते-बिगड़ते इतिहास के दरम्यान तैयार हुए इस मकबरे की कहानी कहते हैं। मकबरे को हुमायूं की याद में उनकी पत्नी हमीदा बानो बेगम ने 1565 में बनवाना शुरू किया था जबकि संरचना का डिजाइन मीरक मिर्जा घीयथ नामक पारसी वास्तुकार ने बनाया था। तब से लेकर अब तक इस स्मारक ने तमाम अच्छे-बुरे दिन देखे, बनने के बाद कई तरह के किस्सों-कहानियों का गवाह बना और अंतत: 1993 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया। वर्तमान में यह मुगल स्थापत्य कला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। यह बगीचे युक्त मकबरा चारों तरफ से दीवारों से घिरा है जिसमें सुन्दर बगीचे, पानी की छोटी नहरें, फव्वारे, फुटपाथ और कई अन्य चीजें शामिल हैं। सबसे अच्छी और खूबसूरत बात यह कि यदि आप इस जगह पर घूमने के लिए आते हैं तो इस चारदीवारी के भीतर कई अन्य समकालीन स्मारकों को भी देख सकते हैं। नाई का मकबरा, नीला गुंबद, ईसा खान का मकबरा, बू हलीमा की कब्र और बगीचा, अफसर वाला मकबरा और मस्जिद हुमायूं के मकबरे से पहले आती हैं।

ये सभी स्मारक मुगलकालीन हैं और अपने आप में उस समय के इतिहास और स्थापत्य कला की गवाही देते हैं। हुमायूं का मकबरा इस्लामिक दुनिया में किसी भी मकबरे से कहीं ज्यादा बड़ा है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में चारबाग शैली का पहला नमूना है जो कि 30 एकड़ में फैला हुआ है और कुरान में लिखित जन्नत की चार नदियों के साथ चार बागों की परिकल्पना को साक्षात रूप में साकार करता है। इस स्मारक के निर्माण से पहले बने किसी भी मकबरे में उद्यान और बाग नहीं मिलते हैं।

इस मकबरे का प्रवेश द्वार 16 मीटर ऊंचा है। मुख्य दरवाजे से अंदर दाखिल होते ही चार बाग और सरोवर का दीदार होता है, जिसमें आकर चार नालिकाएं मुख्य इमारत की शोभा बढ़ाती दिखाई देती हैं। हरे-भरे परिदृश्यों से भरपूर, सुन्दर स्वच्छ वातावरण और दूर देशों से आए सैलानी।

मकबरा आठ मीटर ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है और इसकी नींव में 56 कोठरियां दिखाई देती हैं जिसमें 150 से भी ज्यादा कब्र हैं। यही कारण है कि हुमायूं के मकबरे को मुगलों का शयनागार भी कहा जाता है। इस मकबरे के चारों तरफ दीवारों के बाड़े के अंदर हुमायूं की कब्र के अलावा उसकी बेगम हमीदा बानो तथा बाद के सम्राट शाहजहां के ज्येष्ठ पुत्र दाराशिकोह और कई उत्तराधिकारी मुगल सम्राट जहांदरशाह, फर्रुखसियर, रफी उल-दर्जत, रफी उद-दौलत व आलमगीर द्वितीय आदि की कब्रें हैं।