बहुत से लोग अंतरिक्ष के लिए निजी दौड़ के पक्ष में नहीं हैं, जिस तरह 1960 में भी पसंद नहीं किया जाता था। कारण यह है कि हमारा ग्रह बेतरतीब, गर्म, असमान और असंगत है। धनाढ्य लोग बजाय इस ग्रह के परे भविष्य की योजनाओं पर पैसा खर्चने के धरती की ही समस्याओं को ठीक करने पर निवेश करने को तरजीह देंगे। करदाता मिलिट्री लॉन्च सिस्टम पर निवेश के लिए पैसा खर्च करते ही हैं, फिर भले ही कुछ लॉन्च किया जाए या नहीं। एक और बात है कि अगर अंतरिक्ष देखना ही है तो सबको बराबर का अवसर मिले। ऐसा नहीं कि जिसके पास पैसा है, वही अपना सपना पूरा करे। आम जन को अंतरिक्ष से विहंगम दृश्य देखने का मौका नहीं मिलता।
हालांकि इस तरह के साहसिक कारनामों का प्रभाव जमीन पर नकारात्मक ही पड़ता है। अंतरिक्ष से अनुसंधानकर्ता को पृथ्वी देखने पर लगता है कि हम सब काफी छोटे आकार में सिमटे हुए हैं। फिर भी जब कभी कोई राष्ट्र किसी पुरुष को चंद्रमा और महिला को तारे पर पहुंचते देखता है तो इस उपलब्धि पर खुशी जताते हैं। इससे किसी अनजान स्थल को रूपांतरित कर उसे अपना बनाया जा सकता है। राष्ट्रों के नेता अंतरिक्ष के बारे में नागरिकों को ऐसे संबोधित करते हैं मानो उन्हें किसी संयुक्त उद्यम में भागीदारी के लिए आमंत्रित कर रहे हों। मानो चंद्रमा पर जाने का विकल्प जॉन एफ. कैनेडी ने नहीं, हमने चुना हो। नासा के अंतरिक्ष यात्री अपने साथ 55 भाषाओं में अभिवादन सहित गोल्डन रिकॉर्ड और चक बैरी से लेकर जोहान सेबेस्टियन बैक तक का चुनिंदा संगीत संग्रह और अजरबैजानी बैगपाइपर ले गए। (मानवता के लिए उत्तम प्रयास)। अपोलो 11 चंद्रयान पर तो लिखा था-‘मानवता के लिए’।
हो सकता है कि ब्लू ओरिजिन बहुत से लोगों को लाभान्वित करे। बेजोस जब सज-संवर कर अंतरिक्ष के लिए रवाना होते हैं, एक मिलियनेयर के 18 साल के बच्चे को जीरो गुरुत्वाकर्षण वाली कैंडी खिलाते हैं और उड़ान के बाद प्रेस के सामने काउबॉय हैट पहनते हैं, तो यह मानवता के लिए न हो कर व्यक्तिगत उपक्रम अधिक लगता है। स्पेस कॉलोनी बनाना, खनन, निर्माण और बड़ी आबादी निस्संदेह इस ग्रह के परे होना असंभव है। मानवता इस छोटे से नीले ग्रह में इस कदर समाई है तभी तो इसे हम अपना घर कहते हैं। कौन जाने अगर हम अंतरिक्ष में पहुंच कर वहां से धरती को देखकर उससे जुड़ाव महसूस करते, शायद जेफ बेजोस से भी!